करतार सिंह सराभा पर 10 पंक्तियाँ : Kartar Singh Sarabha

Kartar singh sarabha : भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी में से एक करतार सिंह सराभा जिन्होंने देश के लिए 19 वर्ष की आयु में अपने जीवन का बलिदान किया। उनके साहस, शौर्य, त्याग व बलिदान की मार्मिक गाथा आज भी भारतियों को प्रेरणा देती है।

  • करतार सिंह साराभा का जन्म 24 मई 1896 को लुधियाना में मंगल सिंह और साहिब कौर के घर हुआ था।
  • सन 1905 में बंगाल विभाजन के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन प्रारंभ हो चुका था जिससे प्रभावित होकर साराभा भी क्रांतिकारियों में शामिल हो गए। यधपि उन्हें तो बंदी नहीं बनाया गया किन्तु क्रांतिकारी विचारधारा उनके हृदय में अपने जड़ें जमा ली थी।
  • सन 1911 में साराभा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आपने कुछ संबंधियों के साथ अमेरिका चले गए किंतु साराभा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके।
  • वह हवाई जहाज बनाना और चलाना सीखना चाहते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक कारखाने में काम करने लगे। इसी समय उनका संपर्क लाला हरदयाल से हुआ।
  • लाला हरदयाल जो अमेरिका में रहते हुए भी भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रहेंन थें। सराभा हमेशा उनके साथ रहते थे और प्रत्येक कार्य में उन्हें सहयोग देते थे।
  • 1913 में कई भाषाओं में प्रकाशित ग़दर समाचार पत्र के पंजाबी संस्करण के संपादन का कार्य साराभा ही संभालते थे।
  • 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज युद्ध में बुरी तरह फस गए ऐसी स्थिति में गदर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भारत में विद्रोह की योजना बनाई इसमें साराभा भी शामिल थे अंग्रजों को इसके बारे में जानकारी मिल गई अतः सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु साराभा किसी प्रकार बच निकलें।
  • भारत आने के बाद, भारत में रह रहे क्रांतिकारियों से गुप्त रूप से मिलने लगे ताकि भारत में विप्लव की आज जलाए जा सके।
  • लेकिन इस बार भी क्रांतिकारी योजना असफल रही तब रास बिहारी बोस ने उसे लाहौर से काबुल जाने को कहा, लेकिन जब वजीराबाद पहुंचे तो उनके मन में विचार आया की इस तरह से छिपकर भागने से बेहतर है की देश की फांसी पर चढ़ जाए।
  • वजीराबाद के फ़ौज छावनी से उन्हें गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया और अंतत 16 नबम्बर 1915 को फांसी दे दी गई।

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