वेंगी के चालुक्य का इतिहास : Vengi ke Chalukya

चालुक्य वंशीय शासकों ने अनेक शाखाओं के माध्यम से शासन किया जैसे की बादामी/वातापी के चालुक्य, कल्याणी के चालुक्य तथा वेंगी के चालुक्य (vengi ke chalukya)।

पुलकेशिन द्वितीय जोकि बादामी के चालुक्य की शाखा का शासक था उसने पल्लव वंश के शासक महेंद्र वर्मन पर आक्रमण कर वेंगी के क्षेत्र को जीत लिया जिससे उनका साम्राज्य और भी बड़ा हो गया। इस पुरे साम्राज्य पर नियंत्रण रख पाना पुलकेशिन द्वितीय के लिए आसान नहीं था अतः उसने साम्राज्य को दो भागों में विभाजित कर दिया और जीते हुए क्षेत्र वेंगी पर, पुलकेशिन द्वितीय ने अपने छोटे भाई विष्णु वर्धन को वहाँ का उप-राजा बना दिया।

आगे चलकर पुलकेशिन द्वितीय जब पल्लव वंश के शासक नरसिंह वर्मन प्रथम के साथ युद्ध में व्यस्त था, तो उसी अवसर का लाभ उठाकर विष्णू वर्धन ने खुद को एक स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया और एक अलग चालुक्य वंश की स्थापना किया। पुलकेशिन द्वितीय ने इस बात को लेकर किसी प्रकार का विरोध नहीं सका।

वेंगी के चालुक्य (Vengi ke Chalukya)

इसे पहले पूर्वी के चालुक्य के नाम से जाना जाता था लेकिन जब से यहाँ के शासकों ने वेंगी को अपना राजधानी बनाया, और यहीं से अपना शासन शुरू किया। तब से इसे वेंगी के चालुक्य (vengi ke chalukya) के नाम से जाना जाने लगा। इसका विस्तार कृष्णा नदी और तुंगभद्रा नदी के मध्य तक था। इसके शासकों के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलता है अतः जो प्राप्त है उसे देने का प्रयास किया गया है।

विष्णु वर्धन (624 से 641 ई०)

पहले यह अपने बड़े भाई पुलकेशिन द्वितीय को युद्ध और अन्य कार्यों में सहायता करता था अतः यह एक अनुभवी और योग्य शासक था। इसी योग्यता के दम पे इन्होने वेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना किया। और अपनी राजधानी वेंगी से शासन करना प्रारंभ किया।

विष्णु वर्धन ने कलिंग के कुछ क्षेत्र को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया उसके बाद इसकी सीमा विशाखापत्तनम से उत्तरी नेल्लोर तक फ़ैल गया।

शारिरीक रूप से कुबड़ा होने के कारण अभिलेखों में इसे कुब्ज विष्णु वर्धन कहा गया है।

जयसिंह प्रथम (641 से 673 ई०)

इसने कई सामंतो को पराजित किया था लेकिन इसका उल्लेख केवल इसी के ही लेख में कहा है इतिसासकार इस बात से सहमत नहीं है क्योंकी इस बात का वर्णन कहीं और नहीं किया गया है।

उपाधि : पृथ्वीबल्लभ, पृथ्वीजयसिंह, सर्वसिद्धि  

इन्द्र भट्टाकर (673 ई०)

इन्द्र भट्टाकर जयसिंह प्रथम का छोटा भाई था कहा जाता है, कि जयसिंह प्रथम के पुत्र एवं अन्य राजकुमारों ने इसके विरुद्ध विद्रोह कर देता है और लगभग केवल 7 दिनों बाद इंद्र भट्टाकर को सत्ता छोडनी पड़ती है।

जयसिंह द्वितीय (706 से 718 ई०)

इसने अपने भाई विजयादित्य वर्धन को कलिंग का गवर्नर नियुक्त किया।

नियुक्त होने के बाद विजयादित्य वर्धन ने जयसिंह द्वितीय को धोखा दे दिया और खुद को स्वतंत्र घोषित कर लिया।

जयसिंह द्वितीय के मृत्यु के बाद सत्ता के लिए भाईओं के बीच संघर्ष होने लगा, जिसमे कोक्क्ली विक्रमादित्य सफल हो जाता है और अगला राजा बनता है।

कोक्क्ली विक्रमादित्य (718 से 719 ई०)

यह लगभग एक वर्ष तक शासन करता है उसके बाद इसके बड़े भाई विष्णु वर्द्धन तृतीय इसे सत्ता से हटाकर राजा बन जाता है।

विजायादित्य प्रथम (755 से 772 ई०)

इसी के शासनकाल के दौरान दन्तिदुर्ग बादामी/वातापी के चालुक्य वंश का अंत कर देता है और राष्ट्रकूट वंश की स्थापना करता है। अब क्योंकी वेंगी के चालुक्यों (vengi ke chalukya) का संवंध भी बादामी/वातापी के चालुक्य वंश से होता है तो इसलिए यहाँ से राष्ट्रकूट और चालुक्यों के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है।

राष्ट्रकूटो के अभिलेख के अनुसार राष्ट्रकूट युवराज गोविन्द द्वितीय ने वेंगी के विरुद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया था। इसी अभियान के दौरान मुसी और कृष्णा नदी के संगम पर वेंगी ने युवराज गोविन्द द्वितीय के समक्ष्य आत्मसमर्पण कर दिया।

विष्णुवर्धन चतुर्थ (772 से 808 ई०)

इसके समय राष्ट्रकूट वंश में सत्ता के लिए दोनों भाई गोविन्द द्वितीय तथा ध्रुव के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है, इस संघर्ष में विष्णुवर्धन चतुर्थ गोविन्द द्वितीय का साथ देता है।

लेकिन ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का अगला शासक बनता है, और जो भी गोविन्द द्वितीय का साथ दिया था उसके विरुद्ध अभियान छेड़ देता है।

ध्रुव ने युद्ध में विष्णुवर्धन चतुर्थ को पराजित कर देता है, और विष्णुवर्धन चतुर्थ अपनी पुत्री “शिल महादेवी” का विवाह ध्रुव से कर मित्रता कर लेता है।

परंतु अगले राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय बनता है तो वेंगी पर आक्रमण कर कुछ समय के लिए अधिकार कर लेता है।

विजायादित्य तृतीय (849 से 892 ई०)

यह वेंगी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी शासक था और इसने वेंगी के चालुक्य (vengi ke chalukya) की प्रतिष्ठा वापस स्थापित करता है।

इसके शासनकाल के अधिकांस समय में आस-पास के पडोसी राज्य जैसे की पल्लव, पाण्ड्य आदि के राजाओं के साथ युद्ध कर पराजित किया इसके अलावे राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया।

चालुक्य भीम प्रथम (892 से 921 ई०)

यह विजायादित्य तृतीय का भतीजा भीम प्रथम के समय राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय वेंगी के चालुक्य (vengi ke chalukya) के बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया और भीम प्रथम को बंदी बना लेता है लेकिन कैसे भी करके भीम प्रथम उसके बंदी से भाग निकलने में सफल रहा।

बाहर आने के बाद कृष्ण द्वितीय को युद्ध में पराजित कर अपने उस पुराने हार का बदला लेता है। कृष्ण द्वितीय भी अपने इस हार का बदला लेने के लिए पुनः वेंगी पर अधिकार करने के उद्देश्य से आक्रमण किया लेकिन भीम प्रथम, कृष्ण द्वितीय के इस प्रयास को विफल कर देता है।

विजयादित्य चतुर्थ (921 ई०)

यह लगभग 6 महीने शासन करता है और राष्ट्रकूटों से युद्ध करते हुए मारा जाता है।

वेंगी के चालुक्य पर कभी राष्ट्रकूटों का तो चोलों का प्रभाब बना रहा, अतः वेंगी के चालुक्य शासकों द्वारा लम्बे समय तक शासन करने के बाद भी इनका इतिहास इतना गौरावशाली नहीं रहा संभवतः इसी कारण वेंगी के चालुक्यों (vengi ke chalukya) के बारे में अधिक जनकारी नहीं मिलती है।

अंत में चोल शासकों ने पूरी तरह से इसे अपने साम्राज्य में मिला और वेंगी के चालुक्यों का अंत हो गया।

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