Vardhan Vansh : 6ठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में कई नए राजवंशो का उदय हुआ, जिसमे मैत्रक, मौखरी, गौढ़ और पुष्यभूति या वर्द्धन आदि इन राजवंशो में पुष्यभूति वंश के शासको ने भारत में सबसे बड़ा विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
वर्द्धन वंश (Vardhan Vansh)
पुष्यभूति वंश जिसे की वर्द्धन वंश के नाम से जाना जाता है इस वंश की स्थापन पुष्यभूति ने किया। और अपनी राजधानी थानेश्वर को बनाया, थानेश्वर वर्तमान में हरियाणा के कर्नाल जिले में स्थित है।
प्रभाकर वर्द्धन इस वंश का प्रथम प्रभावशाली शासक बना, इन्होने परमभट्टाकर और महाराजाधिराज जैसे सम्मान जनक उपाधियाँ धारण की। प्रभाकर वर्द्धन को पुष्यभूति वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता माना जाता है। प्रभाकर वर्द्धन का विवाह यशोमती के साथ हुआ इनके दो पुत्र राजवर्द्धन और हर्षवर्द्धन तथा एक पुत्री राज्यश्री की उत्पन हुई।
राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के राजा ग्रहवर्मा से होता है। कन्नौज का युद्ध मालवा के शासक देवगुप्त से होता है, इस युद्ध में कन्नौज पराजित हो जाता है और देवगुप्त ग्रहवर्मा की हत्या कर देता है तथा राज्यश्री को वंधी बना लेता है।
प्रभाकर वर्द्धन के बड़े पुत्र राज वर्द्धन अपने बहन को छुड़ाने तथा ग्रहवर्मा की हत्या का बदला लेने के लिए मालवा के शासक देवगुप्त की हत्या कर देता है।
देवगुप्त की मित्रता बंगाल के गौढ़ वंश के राजा शशांक से था इसलिए अपने मित्र के हत्या का बदला लेने के लिए शशांक ने राज वर्द्धन की हत्या कर देता है।
इसी प्रस्थितियों के बीच हर्ष वर्द्धन 606 ईस्वी में मात्र 16 की आयु में वर्द्धन वंश (vardhan vansh) का राजा बनता है। हर्ष वर्धन को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता है इनसे परमभट्टाकर नरेश की उपाधि धारण करता है।
राजा बनने के बाद हर्षवर्द्धन शशांक से युद्ध कर शासंक की हत्या कर कर देता है और कन्नौज को अपने क्षेत्र में मिलाकर उसे अपनी राजधानी बना लेता है।
हर्ष वर्द्धन और पुलकेशन-2 बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध होता है इस युद्ध में हर्ष वर्द्धन पराजित हो जाता है जिसका वर्णन पुलकेशन-2 द्वारा निर्मिंत एहोल अभिलेख में मिलता है।
धर्म
पुष्यभूति वंश के सभी शासक भगवान् शिव तथा सूर्य के उपासक थे शुरुआत में हर्ष वर्द्धन भी भगवान् शिव तथा सूर्य के उपासक था लेकिन चीनी यात्री ह्वेनसांग के प्रभाव में इसने बौद्ध धर्म के महायान शाखा को स्वीकार कर लिया।
हर्ष वर्द्धन के समय नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। ह्वेनसांग इसी विश्वविद्यालय में पढ़ने तथा बौद्ध ग्रंथो को संग्रह करने के उदेश्य से भारत आया था।
हर्ष वर्द्धन प्रत्येक 5 वर्षों पर प्रयाग के संगम पर महामोक्षा परिषद् का आयोजन करवाता था। हर्ष वर्द्धन ने एक बार कन्नौज में सभी धर्मो के एक विशाल सभा का भी आयोजन करवाया था।
साहित्य
हर्ष वर्द्धन ने प्रिय दर्शिका, नागानंद एवं रत्नावली नामक तीन संस्कृत नाटकों की रचना किया। इसके संबंध में कहा जाता है कि धावक नामक कवि ने पुरस्कार लेकर हर्ष वर्द्धन के नाम से लिख दिया।
बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के दरवारी कवि थे इन्होंने हर्ष चरित्र एवं कादम्बरी की रचना किया।
प्रशासन
हर्ष वर्द्धन के अधीन शासकों को महाराज या महासामन्त कहा जाता था और मंत्रिपरिषद के मंत्री को आमात्य या सचिव कहा जाता था। हर्ष वर्द्धन ने अपने साम्राज्य को कई प्रान्तों में विभक्त था सबसे बड़ा देश> भुक्ति> विषय> ग्राम> ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी।
भुक्ति (प्रान्त) के प्रधान को रास्ट्रीय, उपरिक या राजस्थानीय, विषय के प्रधान को विषयपति और ग्राम के प्रधान को ग्राम क्षपटलिक कहा जाता था।
पुलिस विभाग के अधिकारी को दण्डपाशिक तथा दाण्डिक अरु पुलिस कर्मियों को चाट या भात कहा जाता था।
Vardhan vansh अन्य तथ्य
- शशांक शैव धर्म का अनुयायी था इसी ने बोधि वृक्ष को कटवाया था
- ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है
- हर्ष वर्द्धन के समय मथुरा सुती वस्त्र उद्योग तथा व्यापार का प्रमुख केंद्र था।
- हर्ष चरित्र में प्रांतीय शासको के लिए लोकपाल शब्द का प्रयोग किया गया है।
- पुष्यभूति वंश के जनकारी के प्रमुख स्रोत
- बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के दरवारी कवि थे इन्होंने हर्ष चरित्र की रचना किए। इसमें मूल रूप से हर्ष वर्द्धन के बारे मे लिखा गया है।
- ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सी यू की में हर्ष वर्द्धन के शासनकाल के दौरान भारत के परिस्थितियों का विवरण दिया गया है।
- पुलकेशन-2 द्वारा एहोल अभिलेख का निर्माण करवाया गया था जिससे हर्ष वर्द्धन तथा पुलकेशन-2 के बीच हुए युद्ध के संबंध मे जानकारी प्राप्त होती है।
- कल्हण ने राजतरंगणी की रचना किया है इसमें मूल रूप से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन वर्द्धन वंश (vardhan vansh) के संबंध में भी कुछ जानकारी मिलती है।
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