वैदिक काल का इतिहास : Vaidik kal

हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद लम्बे समय तक भारतीय इतिहास कोई भी ऐसी बड़ी सभ्यता का विकास नहीं हुआ जो हड़प्पा जैसे बड़े और विस्तृत सभ्यता हो। लगभग 200 वर्षों बाद, 1500 ईसा पूर्व के एक नई सभ्यता विकसित हुई, जिसे वैदिक सभ्यता तथा इसके काल खंड को वैदिक काल (vaidik kal) के कहा गया।

वैदिक काल (Vaidik Kal)

वैदिक शब्द वेद से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ज्ञान, क्योंकी इस सभ्यता के निर्माता आर्य थे इसीलिए इसे आर्य सभ्यता कहा गया। वैदिक संस्कृति में आर्य का अर्थ होता है – श्रेष्ठ यानी उत्तम। मानव समुदाय के रूप आर्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1853 ईस्वी में मैक्समुलर ने किया।

इनकी भाषा संस्कृत थी और वेदों की रचना भी संस्कृत में की गयी, वेद चार प्रकार के हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थववेद। जयसंहिता यानी की महाभारत को पांचवां वेद कहा जाता है।

इस काल के बारे में जनकारी का प्रमुख स्रोत्र वेद होने के कारण इसे इसे वैदिक संस्कृति कहा जाता है तथा घटनाओं के उस समय अवधि को वैदिक काल (vaidik kal) कहा गया जिस काल में वेदों की रचना हुई या फिर जिस काल की जानकारी मुख्य रूप से वेदों से प्राप्त हुई, उसे ही वैदिक काल (vaidik kal) कहा गया।

वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी अर्थात भारत में पहले नगरीय सभ्यता आई उसके बाद ग्रामीण सभ्यता आई, क्योंकी इससे पहले भारत में हड़प्पा का विकास हो चूका था जोकि एक नगरीय सभ्यता थी और  उसके पतन के बाद वैदिक सभ्यता आई।

भारत में आर्यों के बारे में अधिक जानकारी ऋग्वेद से मिलती है, ऋग्वेद में आर्य शब्द का उल्लेख 36 बार किया गया है। इसके अलावे इराक से प्राप्त 1600 ईसा पूर्व के कस्साइट अभिलेख एवं सीरिया से प्राप्त 1400 ईसा पूर्व के मितन्नी अभिलेख में भी आर्य शब्द का उल्लेख मिलता है।

स्रोत्र – इस काल के बारे में जनकारी प्राप्त करने के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक स्रोत्र दोनों मौजूद हैं।

पुरातात्विक स्रोत्र

मध्य एशिया से प्राप्त बोगाजकोई अभिलेख में हिती राजा शुब्बिलिम्मा और मितानी राजा मातिऊअजा के बीच हुई संधि के साक्क्षी के रूप में वैदिक देवताओं इंद्र, मित्र, वरुण, नासत्य (अश्वनी) का जिक्र है। इस अभिलेख का निर्माण 1400 ईसा पूर्व में करवाया गया था।

ऋग्वैदिक कालीन मृदभांड को गौरिक मृदभांड (OCP) के नाम से जाना जाता है तथा उत्तर वैदिक कालीन मृदभांड को चित्रित धूसर मृदभांड (PGW) के नाम से जाना जाता है।

साहित्यिक स्रोत्र (Vaidik kal ke Sahityik Srot)

वेद, ब्रह्मण, वेदांग, उपनिषद, स्मृति ग्रंथ, धर्मसूत्र और अरण्यक इन सभी का संबंध वैदिक काल से है अतः इसे वैदिक साहित्य कहा गया। इन सभी से वैदिक काल के बारे में जानकारीयाँ प्राप्त होती है हालाँकि मुख रूप से चरों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थववेद से वैदिक काल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

आर्यों का मूल निवास स्थान

आर्यों का मूल निवास स्थान को लेकर आज भी विद्वानों के बीच मतभेद है अतः अलग-अलग विद्वानों ने आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में अलग अलग बताया है । मैक्समुलर ने मध्य एशिया को आर्यों का मूल निवास बताया और इन्हीं तर्क को अधिक माना जाता है। यह भी बता दें कि कस्साइट अभिलेख जोकि 1,600 ईसा पूर्व का अभिलेख है, में आर्यो की एक समूह को ईरान से भारत आने का जिक्र है।

विद्वानमूल स्थान
दयानंद सरस्वतीतिब्बत
बाल गंगाधर तिलकउत्तरी ध्रुव
गंगानाथ झाब्रहार्षी देश
मैक्समुलरमध्य एशिया (बैक्ट्रिया)
डॉ. अविनाशचन्द्र दाससप्तसैंधव प्रदेश
गाइल्स महोदयहंगरी एवं डेन्यूब नदी घाटी
नेहरिंग एवं प्रो. गार्डन चाइल्डदक्षिणी रूस
डॉ सम्पूर्णानन्दअल्पास पर्वत (युरेएशिया)
फिलिप सेसेटीयूरोप
फेंकास्कैंडिनेविया

वेदों के प्राप्त जानकारी के अधार पर वैदिक काल का समय 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक बताया गया है और इन्ही वेदों के आधार पर वैदिक काल को दो भागो में विभाजित किया गया है। पहला ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ईसा पूर्व) और दूसरा उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ईसा पूर्व)  

नोटजिस काल की जानकारी मूल रूप से ऋग्वेद से प्राप्त होती है उसे ऋग्वैदिक काल कहा जाता है और जिसकी जानकारी अन्य तीनों वेदों यजुर्वेद, सामवेद और अर्थववेद से प्राप्त होती है, उसे उत्तर वैदिक काल कहा जाता है।

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