भारतीय राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री रहे “वी के कृष्ण मेनन” का जन्म 3 मई 1896 को मद्रास में एक नायर परिवार में हुआ था। उन्होंने मद्रास से ही स्नातक और कानून की परीक्षाएं पास की और आगे की पढ़ाई के लिए 1924 में वे लंदन चले गए। लन्दन में ही उन्होंने एमए, एमएससी बैरिस्टर तथा अध्यापन में डिप्लोमा किया और भारत की आजाद मिलने तक (1947) तक वह लन्दन में ही रहे।
एनी बेसेंट के विचारों से प्रभावित मेनन इंग्लैंड में ही रहकर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में विचार करते रहे। ब्रिटेन की लेबर पार्टी के पक्षधर मेनन लन्दन में “इंडिया लीग” का गठन किया। यह संस्था एक प्रकार से वहां भारतीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में काम कर रही थी।
वी के कृष्ण मेनन
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्ति के बाद 1947 में जब भारत स्वतंत्र हो गया तो वह भारत आए। पंडित जवाहरलाल नेहरू गहरे मित्र रहे वी के कृष्ण मेनन ने विशेष दूत के रूप में यूरोपीय देशों का भ्रमण किया इसके अलावे संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1947 से 1952 तक वह लन्दन में भारत के हाई कमिश्नर के पद पर रहें। 1957 और 1962 में वह लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। 1957 में पंडित नेहरु ने उन्हें देश के रक्षा मंत्री का कार्यभार दिया गया परंतु रक्षा मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बहुत ही विवादित रहा। उन्होंने देश की रक्षा तैयारी की यहां तक उपेक्षा की एक बार तो देश के तीनों सेना अध्यक्षों ने त्यागपत्र तक दे दिया था।
मेनन विदेशी खतरों से बेखबर रहकर “आयुद्ध कारखानों” में भी वह घरेलू उपयोग के लिए कुकर तक बनाने लगे थे। जब 1962 में चीन का भारत पर आक्रमण हुआ तब सेना की तैयारी की उपेक्षा का परिणाम सामने आया, साधनहीन रही भारतीय सेवा को इस युद्ध में पीछे हटना पड़ा। इसके बाद चारों ओर से मेनन के आलोचना होने लगी। मेनन के गहरे मित्र रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उन्हें बचा ना सके और उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
सम्मान
इतने सारे विवादों के बाद भी, वी के कृष्ण मेनन को वर्ष 1954 में भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया। इस सम्मान से सम्मानित होने वाला यह पहला व्यक्ति थे। बीके कृष्ण मेनन का 6 अक्टूबर 1974 को दिल्ली में निधन हो गया।
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