उत्तरवर्ती मुग़ल शासक : Uttarvarti Mugal Shasak

औरंगजेब शासनकाल के दौरान उसके तीनों पुत्रों मुअज्जम काबुल का, आजम गुजरात का व कामबख्श बीजापुर का सूबेदार था लेकिन औरंगजेब के मृत्यु के बाद ही तीनों में उत्तराधिकारी का युद्ध छिड़ गया। औरंगजेव के बाद के मुग़ल शासकों को उत्तरवर्ती मुग़ल शासक (uttarvarti mugal shasak) कहा गया।

बहादुर शाह, 1707 से 12 (Uttarvarti Mugal Shasak)

इस उत्तराधिकारी के संघर्ष में नवाब बाई के पुत्र मुअज्जम (शाहालम प्रथम) सफल रहा। इसका जन्म 14 अक्टूबर 1643 ई० को बुरहानपुर में हुआ।

मुअज्जम ने 1707 ई० में सामुगढ़ के निटक “जजायु के युद्ध” में आजम की हत्या कर ‘बहादुर शाह’ की उपाधि धारण किया और इसी बहादुर शाह के नाम से दिल्ली का शासक बना। अपने दुसरे भाई कामबख्श को भी 1709 ई० में बीजापुर के युद्ध में मार डाला।

  • बहादुरशाह 65 वर्ष की आयु में (सर्वाधिक आयु) गद्दी पर बैठा।
  • बहादुरशाह ने अपनी ‘शांति पूर्ण मैत्री नीति’ के तहत निम्न कार्य किए।
  • 1707 ई० में शम्भाजी के पुत्र शाहू के पुत्र को मुग़ल कैद से स्वतंत्र किए।
  • गुरुगोविन्द सिंह के साथ संधि कर मित्रता की नीति अपनाई।
  • आमेर के उत्तराधिकारी के प्रश्न पर हस्तक्षेप कर जयसिंह को शासक घोषित किया।
  • बुंदेला के छात्रशाल एवं जात सरदारचूडामन के साथ मित्रता नीति अपनाई।
  • जजिया कर को समाप्त का दिया
  • सती प्रथा को समर्थन किया
  • अपने दरबार में होली खेलने की शुरुआअत की।

जोसुआ केटेलार के नेतृत्व में 1711 ई० में एक डच प्रतिनिधि मण्डल बहादुरशाह के दरबार में आया। डचों के स्वागत में जुलियाना (डच स्त्री) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिलियाना को बीबी एवं फिदवा की उपाधि दी गई।

सिख नेता बंदाबहादुर के विरुद्ध सैन्य अभियान के दौरान 27 फरवरी 1712 ई० में बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। और करीब 1 माहीने तक इनका शव् पड़ा रहा फिर बाद में इन्हें दिल्ली के मोती मस्जिद (महरौली) में दफनाया गया।

सिडनी ओवन के अनुसार बहादुरशाह अंतिम मुग़ल बादशाह था जिसके बारे में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं। वहीँ खाफी खां के अनुसार ये अपने शासन के कार्यों में इतना लापरवाह थे इसलिए लोग इसे ‘शाहे वेखाबर कहते थे।

जहाँदार शाह (1712 से 13)

बहादुरशाह का पुत्र जहाँदार शाह अपने भाई अजीम-उश-शान, रफ़ी-उश-शान तथा जहान शाह की हत्या कर मुग़ल बादशाह बना।

इसे बादशाह बनाने में ईरानी अमीर जुल्फिकार खां ने मदद किया इससे मुगलों में एक नई प्रथा शुरूआत हुई मतलब की सत्ता प्राप्ति के लिए अमीरों का हस्तक्षेप। बादशाह बनाने के बाद मददगार रहे जुल्फिकार खां को वजीर बनाया, असद खां का पुत्र जुल्फिकार खां औरंगजेब के समय भी वजीर के पद पर रहा।

अमीरों के हस्तक्षेप के कारण मुग़ल दरबार में अमीरों के अलग-अलग गुट बन गए जैसे की ईरानी, तूरानी, अफगानी व हिन्दुस्तानी आदि।

जुल्फिकार खां के कार्य

  • वित्तीय स्थिति को सुधरने के लिए जुल्फिकार खां ने जागीरों के अंधाधुंध बटवारे पर रोक लगा दी।
  • भूराजस्व की वसूली को ठेके पर दिए जाने की प्रथा को बढ़ा दिया जिससे कृषकों पर और अत्याचार बढ़ गया।
  • जुल्फिकार खां अपने चुतुकार सुभागचन्द्र को दीवान बनाकर राजस्व मामलों का प्रधान बना दिया साथ ही उसे राजा की उपाधि भी दी।

जहाँदार शाह ने दक्कान में मराठों को चौथ एवं सरदेशमुखी की वसूली का अधकार अधिकतर इस शर्त पर दिया की वसूली मुग़ल अधिकारी करेंगे।

जहाँदार शाह ने आमेर के राजा सवाई जयसिंह को ‘मिर्जा राजा की उपाध्त दी व सात हजार मनसब के साथ मालवा का सूबेदार बनाया तथा मारवाड़ के राजा आजत सिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि देकर गुजरात का सूबेदार बनाया।

जहाँदार शाह भ्रष्ट व अन्तिक चरित्र वाला व्यक्ति था, शाह पर इस पर लाल कुवर नाम प्रेमिका (वैश्या) का प्रभाव था।

अजीमुश्शान के पुत्र फर्रुखसियर ने हिन्दुस्तानी अमीर सैय्यद बंधू (अब्दुल्ला खां एवं हुसैन अली खां) के सहयोग से अपदस्त कर दिया। जहाँदार शाह अपनी प्रेमिका लाल कुंवर के साथ भाग कर अपने मित्र असद खां के घर शरण ली। किन्तु फिर भी फर्रुखसियर के आदेश पर 11 फरवरी, 1713 ई० को जहाँदार शाह की हत्या कर दी।

भ्रष्ट व अनैतिक आचरण, गयाकों, नर्तकों व नाट्य कर्मियों के अनुकूल होने के कारण इतिहासकार ताराचंद ‘लम्पट मुर्ख’ कहते है।

जयसिंह को सवाई की उपप्धि 1699 में औरंगजेब ने दिया था।       

फर्रुखसियर (1713 से 19)

‘घ्रणित कायर’ कहे जाने वाले फर्रुखसियर सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खां एवं हुसैन अली खां) के सहयोग से 1713 ई० में बादशाह बना अतः अब्दुल्ला खां को वजीर व हुसैन अली खां को मीर बख्शी (सेनापति) बना।

तूरानी गुट के अमीर चिन्किलीच खां को दक्कन के 6 मुग़ल सूबों की सूबेदार प्रदान की तथा निजामुल मुल्क व खान खाना की उपाधि दी।

फर्रुखसियर 1717 ई० में शाही फरमान जारी कर अंग्रेजों को बिना सीमा शुल्क व्यापार करने की छुट प्रदान की जिसे ‘सत इंडिया कम्पनी का मैग्नाकार्टा’ कहा गया।

अब्दुल्ला खां (हसन अली) ने मराठा पेशवा ‘बालाजी विश्वनाथ’ से 1719 ई० में सन्धि की जिसके तहत दक्षिण के 6 सूबों में चौथ व सरदेशमुखी कर वसूलने का अधिकार दे दिया।

सैय्यद बंधुओं के प्रभाब को कम करने के लिए फर्रुखसियर ने सैय्यद बंधुओं के विरुद्ध षड्यंत्र रचाने लगा किन्तु सैय्यद बंधुओं ने मराठों के सहयोग से अपदस्त कर 1719 ई० में हत्या कर दी।

सैय्यद बंधू

सैय्यद बंधू को राजा बनाने वाला या किंग मेकर कहा जाता है, इसने चार मुग़ल बादशाह बनाए फर्रुखसियर, रफी-उद-जात, रफी-उद-दौला, मुहम्मदशाह रंगीला।

अजीमुश्शान ने हुसैन अली को 1708 ई० में बिहार का नायब सूबेदार बनाया तह तथा 1711 ई० में अब्दुल्ला खां को इलाबाद का नायब सूबेदार नियुक्त किया था।

अब्दुल्ला खां का वास्तविक नाम हसन अली था इसे अब्दुल्ला खां की उपाधि बहादुरशाह प्रथम द्वारा दिया गया।

रफ़ी उद दरजात (28 फरवरी 1719 से 4 जून 1719)

इसने 3 माह 4 दिन तक शासन किया जोकि मुग़ल बादशाहों में सबसे कम समय तक शासन करने बाला शासक बना। इसकी मृत्यु क्षय रोग (टी.बी.) के करना हो गया।

रफ़ी उद दौला (6 जून 1719 से 17 सितंबर 1719)

इसने 3 माह 11 दिन तक शासन किया जोकि मुग़ल बादशाहों में सबसे कम समय तक शासन करने बाला शासक बना। यह अफीम का आदि था, इसकी मृत्यु पेचिस रोग के करना हो गया।

मुहम्मद शाह (1719 से 48)

सैय्यद बन्धुओं ने जहानशाह के प्पुत्र रोशन अख्तर को मुहम्मदशाह की उपाधि के साथ अगल मुग़ल बादशाह बनाया।

मुहम्मदशाह ने सैय्यद बन्धुओं के खिलाफ निजामुल मुल्क, सआदत खां, हैदर खां, मुहम्मद अमिन खां, व एतमादुद्दौला खां के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और 1720 ई० में हुसैन अली की हत्या कर दी।

अपने छोटे भाई हुसैन अली के हत्या का बदला लेने के लिए अब्दुल्ला खां ने सेना एकत्रित की किन्तु हसनपुर नमक स्थान पर 1720 ई० में पराजित हो गया और इसे बन्दी बना लिया गया अंततः 1722 ई० में जहर देकर इसकी भी हत्या कर दी।

1739 ई० में ईरानी शासक नादिर शाह और मुहम्मद शाह के बीच करनाल का युद्ध हुआ, इस युद्ध में मुहम्मद शाह की पराजय हुई।

निजामुल मुल्क ने हर्जाने के रूप में 50 लाख रुपये देकर वापस जाने के लिए सहमत कर लिया किन्तु अवध के नवाब सआदत खां ने नादिर शाह को सलाह दिया की अगर वह दिल्ली पर आक्रमण किया तो उसे 20 करोड़ रुपये मिल सकते हैं।

20 मार्च 1739 ई० में दिल्ली पर आक्रमण किया और 57 दिनों तक लुटता रहा साथ ही ‘तख्ते-ताउस’ व विश्व के सबसे प्रसिद्ध हिरा कोहिनूर हिरा में ईरान ले गया।

सआदत नादिर शाह को 20 करोड़ रुपये नहीं देने के कारण आत्महत्या कर ली।

नादिर शाह के पुत्र अहमद शाह अब्द्ली को दुर्र्रे-दुरानी (युग का मोति) कहा जाता है, इसने भारत पर 7 बार आक्रमण किया।

भारत पर पहला आक्रमण 1748 ई० में माछीवाड़ा के समीप मानपुर के युद्ध में अहमद शाह से पराजित हो गया।

इसके समय उर्दू व संगीत के क्षेत्र में सर्वाधिक विकास हुआ, सदारंग व अदारंग प्रसिद्ध संगीताज्ञ थें।

अति विलाषतापूर्ण जीवन के कारण इसे रंगीला बादशाह कहा जाता है।

1720 ई० में पूर्ण रूप से जजिया कर को समाप्त कर दिया।

मुहम्मद शाह के समय स्वतंत्र हुए राज्य

  • बंगाल – मुर्शिद कुली खां
  • अवध – साआदात खां
  • हैदराबाद – निजामुल मुल्क
  • भरतपुर – बदनसिंह
  • फरुखाबाद – मुहम्मद खां बंगश
  • कटेहर – रूहेला सरदार
  • कर्नाटक – साद्तुल्ला खां

अहमद शाह (1748 से 54)

मुहम्मद शाह के मृत्यु के बाद 1748 ई० में पुत्र अहमाद शाह बादशाह बना और अवध के सूबेदार सफदरजंग को वजीर बनाया।

लेकिन इमादुलमुल्क, मराठा सरदार मल्हार राव के सहयोग से सफदरजंग को अपदस्त कर वजीर बन गया। इमादुलमुल्क का वास्तविक नाम गाजीउद्दीन था और यह निजाम-उल-मुल्क का पुत्र था।

अहमद शाह के समय राजमाता उधम बाई का प्रशासनिक कार्यों में अत्याधिक हस्तक्षेप था तथा जाविद खान (नवाब बहादुर) नमक हिजड़े का भी प्रशासनिक कार्यों पर प्रभाव था।

अर्थात इसके शासन काल में महिलाओं व हिजड़ों के एक वर्ग का प्रभाव था तथा सेना के वेतन चुकाने के लिए अपने बर्तन तक बेचने पड़े।

आलमगीर द्वितीय (1754 से 59)

2 जून 1754 ई० को इमादुलमुल्क अहमद शाह को अपदस्त कर अजीजुद्दीन को ‘आलमगीर द्वीतीय’ की उपाधि के साथ मुग़ल का अगला बादशाह बनाया।

अहमद शाह अब्दाली ने 1756-57 में भारत पर चौथा आक्रमण किया और पंजाब, सिन्ध, कश्मीर व सरहिंद के क्षेत्रों को छीन लिया।

इस समय तक मुगलों की आर्थिक स्थिति इतनी दैनिये हो चुकी थी की सवारी ना होने के कारण बादशाह को पैदल चलना पड़ता था।

29 नबम्बर 1759 ई० को वजीर इमादुलमुल्क आलमगीर द्वितीय की हत्या कर दी।

शाह आलम द्वितीय (1759 से 1806)

आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के समय शाह आलम द्वितीय पटना था और वहीँ अपना राज्यभिषेक करवाया वहीँ दिल्ली में कामबख्य के पोते मुहिउल मिल्लत (शाहजहाँ तृतीय) इमादुलमुल्क की सहायता से दिल्ली में राज्यभिषेक करवाया। जब शाह आलम द्वितीय दिल्ली गया तो इसे वजीर इमादुलमुल्क दिल्ली में प्रवेश नहीं दिया।

हालाँकि मुहिउल मिल्लत (शाहजहाँ तृतीय) 10 दिसंबर 1759 से 10 अक्टूबर 1760 ई० तक शासन किया उस बाद 1761 से 70 तक मीर बख्शी नजीबुदौला एक तानाशाह के रूप में दिल्ली में शासन करता रहा। लेकिन फिर मराठों ने इसे गद्दी से हटा दिया।

शाह आलम द्वितीय का वास्तविक नाम अलिगौहर था।

1764 ई० में हुए बक्सर के युद्ध में शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों के विरुद्ध मीर कासिम का साथ दिया था अतः मीर कासिम को हारने के बाद 1765 ई० में अंग्रेजों से इलाहाबाद की सन्धि कर ली व 1772 ई० तक इलाहबाद में अंग्रेजों का पेंशनर बना रहा। साथ ही बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी भी अंग्रेजों के हाथों में चला गया।

1772 ई० में मराठा सरदार महादजी सिन्धिया ने शाह आलम द्वितीय को अंगेजों से मुक्त करवाया और दिल्ली की गद्दी पर बैठाया।

1788 ई० में रूहेला सरदार गुलाम कादिर इसे अँधा कर गद्दी से हटाकर बेदार वख्त को बादशाह बनाया किन्तु 1788 ई० में पुनः मराठा सरदार महादजी सिन्धिया ने शाह आलम द्वितीय की ओर से दिल्ली पर अधिकार कर लिया।

1803 ई० में अंग्रेजों ने मराठों को हराकर दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और शाह आलम द्वितीय को कैद कर लिया जहाँ 1806 ई० में मृत्यु हो गई।

अकबर द्वितीय (1806 से 37)

अकबर द्वितीय, शाह आलम द्वितीय का पुत्र था जोकि अंग्रेजों के संरक्षण में शासक बना यह पहलीबार था जब मुग़ल बादशाह अंग्रेजों के संरक्षण में गद्दी पर बैठा।

अब मुग़ल बादशाह लाल किले का कैदी मात्र रह गया साथ थी 1835 ई० तक मुग़ल सिक्के भी बंद हो गए।

बहादुर शाह द्वितीय (1837 से 58)

यह अंतिम मुग़ल बादशाह था जिसके पास ना तो कोई साम्राज्य था और ना ही उतनी अधिकार।

यह ‘जफर’ के नाम से शायरी व कविता लिखा करता था इस कारण इसे बहादुर शाह जफ़र भी कहा जाता है।

1857 ई० के विद्रोह के समय अंग्रेजों के विरुद्ध साथ देने के कारण अंग्रेज इसे गिरफ्तार करने के लिए ढूंढ रहे थे किन्तु गिरफ्तारी से बचने के लिए हुमायूँ के कब्र में छुपे थे किन्तु ढूंढ कर गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ्तारी के समय एक हडसन (अंग्रेज) ने कहा था –

‘दमदमे में दम, खैर मांगो जान की ऐ जफ़र ठंडी अब तेग हिन्दुस्तान की।’

जिसपर जफ़र ने कहा था,

‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की तख़्त ए लन्दन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।’

गिरफ्तारी के बाद रंगून भेज दी गई जहाँ 1862 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।

‘ना किसी के आँखों का नूर हूँ, ना किसी के दिल का करार हूँ
जो किसी के काम ना सका, मै बो बुझता चिराग हूँ।’

“कितना है बदनसीब जफ़र ‘कफ़न’ के लिए
दो गज जमीन भी ना मिली कु-ए-आर में।”

मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण

3 मार्च 1707 ई० को अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु के बाद ही तेजी से मुग़ल साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। 1707 के बाद के समय को उत्तरवर्ती मुग़ल काल कहा गया।

  • इसके पतन के कई कारण थे
  • अयोग्य उत्तराधिकारी
  • औरंगजेब की दक्षिणी नीति
  • औरंगजेब की राजपूत व धार्मिक नीति
  • अमीरों का बढ़ता प्रभाव
  • गुटबाजी
  • विदेशी आक्रमण

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