तुर्रम खान कौन था : Turram Khan

तुर्रम खान ये नाम आपने कई बार सुना होगा लेकिन तुर्रम खान कौन था और उसे तुर्रम खान क्यों कहा गया जानेंगे आज के इस विडियो में।

वीरता और साहस के लिए के प्रसिद्ध तुर्रम खान का वास्तविक नाम तुर्रेबाज खान था और हैदराबाद का निजाम था।

तुर्रम खान (Turram Khan)

इसका जन्म हैदराबाद के बेगम बाजार में हुआ था। लेकिन इसके जन्म की तारीख को लेकर आज भी मतभेद है। क्योंकि इसके शुरूआती जीवन के बारे में बहुत कम ही जानकारी मिलती है।

शुरुआत के दिनों में तो ये बिलकुल ही गुमनाम था लेकिन 1857 के क्रांति के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ एक छोटे से संघर्ष के कारण यह चर्चा में आया।

जैसा आप जानते होंगे की 1857 की क्रांति की जब भी बात चलती है तो उस क्रांति में मेरठ, जगदीशपुर, दिल्ली, लखनऊ जैसे कई जगहों का नाम आता है लेकिन हैदराबाद का नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि हैदराबाद अंग्रेजों का सहयोगी था। पर तुर्रम खान के थोड़े समय के संघर्ष के कारण इस विद्रोह में हैदराबाद का भी नाम जुड़ गया।

जैसा की मैंने बताया की हैदराबाद शुरुआत में अंग्रेजों का सहयोगी था तो इसलिए जब देश में 1857 का विद्रोह छिड़ा तो अंग्रेजों ने हैदराबाद के जमादार रहे चीदा खान को अपने सिपाईयों के साथ दिल्ली कुच करने को कहा। लेकिन चीदा खान ऐसा करने से साफ माना कर दिया।

माना किये जाने के बाद हैदराबाद निजाम के ही एक मंत्री ने धोखे से चीदा खान कैद कर अंग्रेजों को सौप दिया। और अंग्रेज ने उसे रेजीड़ेंसी हाउस में कैद कर लिया।

इस बात की जानकारी जब निजाम तुर्रम खान को मिली तो उसी चीदा खान को छुड़ाने के लिए तुर्रम खान ने रेजीड़ेंसी हाउस पर हमले की योजना बनाई और जुलाई 1857 को रात के समय अपने 500 सिपाहियों के साथ रेजीड़ेंसी हाउस पर हमला किया दिया।

रात को हमला क्यों

तुर्रम खान को लगा की रात के समय अचानक हुए हमले से अंग्रेज हैरान परेशान हो जायेंगे और चीदा खान को आसानी से छुड़ा लेंगे। लेकिन निजाम के वजीर रहे सालारजंग ने निजाम के साथ ही गद्दारी कर दी। तुर्रम खान की इस योजना को वह पहले ही अंग्रेजों को बता दिया। सूचना पाने का बाद उधर अंग्रेज हमले को लेकर पहले से ही तैयार बैठा था।

अंग्रेजों के पास बदूकें और तोपें थी वहीँ तुर्रम खान और उसके साथियों के पास केवल तालबारें पर फिर भी तुर्रम हार नहीं माना और अंग्रजों पर टूट पड़ा। अंग्रेज तुर्रम को किसी प्रकार से पकड़कर कैद करना चाहता था। लेकिन ऐसा कर पता, समय रहते ही तुर्रम वहाँ से बच निकला।

इस घटना के बाद अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई, तुर्रम खान को जल्द-जल्द पकड़ने के लिए उस पर 5000 रुपये का इनाम रखा गया। हर तरफ उसकी तलाश शुरू हुई, तुर्रम कहाँ छुपा हुआ है इसकी जानकारी निजाम के ही मंत्री तुराब अली को जैसे ही पता चला तो उसने यह जानकारी अंग्रेजों को दे दिया। जिसके बाद तुर्रम को गिरफ्तार कर लिया गया। यानी एक बार फिर से तुर्रम खान के मंत्री ने ही तुर्रम के साथ गद्दारी कर दी।

कई कोशिशों के बाद अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर काले पानी की सजा दी लेकिन 18 जनवरी 1859 को सजा की शुरुआत से पहले ही तुर्रम खान अंग्रेजों के गिरफ्त से भाग निकला।

अंतिम दिनों में

हालाँकि कुछ दिनों बाद ही तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग के कारण ‘तुपरण’ के जंगलों से तुर्रम खान को पकड़ लिया गया।

इस बार अंग्रेजों ने तुर्रम खान को तो पहले कैद में रखा और फिर गोली मार दी। उसके शरीर को नगर के बीच चौराहे पर लटका दिया ताकि भविष्य में अंग्रेजों के खिलाफ कोई विद्रोह ना कर सके।

Read More :

FAQ Section :

तुर्रम खान क्यों प्रसिद्ध है?

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक था तुर्रम खान जिसने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हैदराबाद की ओर से नेतृत्व प्रदान किया था।

Leave a Comment