तुगलक वंश का इतिहास : Tuglak Vansh

Tuglak vansh : इब्बनबतुता तुगलाकों को तुर्क के करौना या कराना शाखा का बताता हिया करौना तुर्क एवं मंगोलों की मिश्रित जनजाति थी।

तुगलक वंश (Tuglak vansh)

तुगलक किसी जाती का नाम नहीं था वल्कि इतिहासकारों ने इनके व्यक्तिगत नाम के आधार पर सम्पूर्ण को तुगलक वंश (tuglak vansh) का नाम दिया है। तुगलक वंशियों ने दिल्ली पार सर्वाधिक 94 वर्षों तक शासन किया।

गयासुद्दीन तुगलक (1320 से 1325 ई०)

गयासुद्दीन तुगलक ने 1320 ई० खिलजी वंश के अंतिम शासक नसीरुद्दीन खुसरों शाह को अपदस्त कर दिल्ली पर तुगलक वंश (tuglak vansh) की स्थापना की। गयासुद्दीन तुगलक सुल्तान बनने से पूर्व दिपालपुर का गवर्नर (राज्यपाल) था।

गयासुद्दीन तुगलक एक सक्षम और योग्य शासक था इसने 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया, इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने इसे मालिक-उल-गाजी की उपाधि दी थी।

गयासुद्दीन तुगलक का पूरा नाम गयासुद्दीन तुगलक शाह था, इसका मूल नाम मालिक गाजी था। इसके अलावे इसे गाजी बेग तुगलक के नाम से भी जाना जाता है। इसके पिता बलबन जोकि गुलाम वंश के शासक था उसके गुलाम थे।

गयासुद्दीन तुगलक और सूफी संत निजामुद्दीन औलिया एक दुसरे के समकालीन थे और दोनों के बीच मतभेद था। क्योंकि खिलजी वंश के अंतिम शासक नसीरुद्दीन खुसरों शाह निजामुद्दीन औलिया को 5 लाख टंका दिया था जिसे गयासुद्दीन तुगलक वापस मांगता था, पर औलिया देने से माना कर दिया।

इसी संवंध में गयासुद्दीन तुगलक ने निजामुद्दीन औलिया से बदले लेने की बात कहा था इसके जबाब देते हुए निजामुद्दीन औलिया ने कहा था की ‘हुजुर दिल्ली अभी दूर है।

गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को जीत कर उसे अपने अधीन कर लिया इसी अभियान से लौटते समय अफगानपुर में लकड़ी का द्वार गिर जाने के कारण 1325 ई० में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गया और इसे तुगलकाबाद में दफनाया गया।

महत्वपूर्ण कार्य

  • गयासुद्दीन ने ‘तुगलकाबाद’ शहर को वसाया।
  • अलाउद्दीन द्वारा छीने गए जागीरों को यह पुनः लौटा दिया।
  • इसने किसानों के हित में बहुत कार्य किया जैसे की नहरों व कुँए का निर्माण करवाया अतः नहरों व कुँए का निर्माण करवाने वाला यह पहला शासक बना।
  • यायातात व्यवस्था को सुदिढ़ किया और 3/4 मील की दुरी पर डाक कर्मचारिओं को नियुक्त किया ताकि सूचनाओं का तेजी से अर्दान-प्रदान हो सके।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325 से 1351 ई०)

इसके बचपन का नाम जुना खां था, गयासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में ही मुहम्मद बिन तुगलक को उलुगा खां की उपाधि देकर अपने साम्राज्य का युवराज घोषित कर दिया था। मृत्यु के 40 दिन बाद यह अपना राज्य अभिषेक करवाया। यह सर्वाधिक विद्वान शासक था और इसे खगोलशास्त्र, गणित, आयुर्वेद आदि जैसे कई विषयों में दक्ष था।

मुहम्मद बिन तुगलक ने गैर तुर्क व भृत्यों मुसलमानों को भी सरकारी पदों पर नियुक्त किया जिसे कारण बरनी ने इसे छिछोरा, माली जैसे अनाव-सनाव शब्दों से संवोधित करता था क्योंकी बरनी केवल तुर्कों का पक्षधर था और दोनों की सोच नहीं मिलती थी।

मुहम्मद बिन तुगलक ने इराक, ट्रांस, खुरासान व अक्सियाना को जीतने के लिए करिव 3 से अधिक सैनिकों एक सेना ब बनाई और इन सैनिकों के एक वर्ष का वेतन भी समय से पूर्व ही दे दिया किन्तु यह योजना धरी की धरी रह गई।

इसके शासनकाल में 23 प्रान्तों का सबसे बड़ा साम्राज्य था और इसी के शासनकाल में सर्वाधिक 34 विद्रोह हुआ जोकि दिल्ली सल्तनत के किसी भी शासक के शासनकाल में नहीं हुआ था। लगातार हो रहे विद्रोह को समाप्त करने के लिए इसने अपने राजधानी दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरी) स्थान्तरित कर लिया ताकि अपने पुरे क्षेत्र पर अच्छी से नियंत्रण कर सके किन्तु यह योजना भी विफल रहा।

iइसने कृषि कार्य व कृषि उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए अलग से दीवान-ए-कोही (कृषि विभाग) को बनाया।

1325 से 1327 ई० में दोयाव क्षेत्र में कर बढ़ा दिया, उसी समय अकाल पड़ गया इसके बाद भी मुहम्मद बिन तुगलक ने कर वसूली जारी रखा जिसे कारण वहाँ के किसानों ने विद्रोह कर दिया। परंतु बाद में कम ब्याज दरों पर किसानों के बीच ऋण (सोनधर) उपलब्ध कराया और विद्रोह शांत हो गया।

गुजरात में तागी के नेतृत्व में एक विद्रोह हुआ जिसे दबाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक गुजरात गया और तागी को पराजित कर वहाँ शांति स्थापित किया। तागी पराजित होकर सिंध भाग गया जिसे हमेशा समाप्त करने के लिए अपनी सेना के साथ सिंध की ओर बढ़ने लगा। किन्तु रास्ते में ही मुहम्मद बिन तुगलक बीमार हो गया और 20 मार्च 1351 ई० में इसकी मृत्यु हो गया। इस मृत्यु पर बदायूँनी लिखा की ‘सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गयी’।

इब्नबतूता (1333 से 1347 ई०)

मोरक्को मूल (देश) का अफ़्रीकी यात्री इब्नबतूता 1333 ई० में भारत की यात्रा पर आया था।

मुहम्मद बिन तुगलक ने 8 वर्षों के लिए दिल्ली में इसे गाजी नियुक्त किया बाद में 1942 ई० में इसे अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा जिसका विवरण किताब-उल-रेहला में मिलता है।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचालन (1329 से 1330 ई०) 

14 वीं शताब्दी में विश्व में चाँदी के कमी होने के कारन मुहम्मद बिन तुगलक ने सोने व चाँदी जैसे बहुमूल्य धातु को बचने के लिए सांकेतिक मुद्रा के रूप में कांसे के सिक्के चलवाया जिसका मूल्य चाँदी के सिक्के के बराबर होता था किन्तु बाजार में नकली कांसे के सिक्के का भी निर्माण शुरू हो गया। इससे परेशान होकर मुहम्मद बिन तुगलक ने चाँदी के मुद्रा का निर्माण करना चालू कर दिया।

महत्वपूर्ण कार्य

  • उश्र और जकात को छोड़कर शेष सभी कर को समाप्त कर दिया।
  • मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा जारी स्वर्ण सिक्को को ‘इब्नबतूता’ ने ‘दीनार’ कहा।

फिरोज शाह तुगलक (1351 से 1388 ई०)

मुहम्मद बिन तुगलक के मृत्यु के बाद 22 मार्च 1351 ई० में दिल्ली के गद्दी पर बैठा, लेकिन दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो चुके राज्यों को वापस मिलाने का प्रयास नहीं किया। कहा जाता है कि हिसार, जौनपुर, फिरोजपुर व फिरोजाबाद आदि शहरों समेत करीब 300 शहरों का निर्माण करवाया। अपनी राजधानी दिल्ली से स्थान्तरण कर फिरोजाबाद कर दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक के द्वारा दिए गए सभी करों को फिरोज शाह तुगलक ने समाप्त कर दिया इसके अलावे 24 अन्य करों को समाप्त कर केवल 4 कर खारज, जकात, जजिया और ख़ुम्स को वसूलता था।

  • जजिया – गैर-मुस्लिम व्यक्ति पर लगाया जाता था
  • जकात – मुस्लिमों पर लगाय जाता था
  • खारज – भूमि पर लगाया जाता था
  • ख़ुम्स – युद्ध में लुटे गए धन पर लगाय जाता था

नोट – ब्राहमणों पर जजिया कर लगाने वाला यह पहला शासक था, इससे पहले ब्राहमणों पर जजिया कर नहीं लगाया जाता था।

इसने कई सारे हिन्दू मंदिरों जैसे की जगन्नाथ मंदिर व ज्वाला मंदिर को नष्ट करवा दिया और उसके निर्माण पर प्रतिवंध भी लगा दिया।

इसने लगभग हर हिन्दू धर्म ग्रंथों को संस्कृत से फारसी भाषा में अनुबाद करवाया कहा जाता ही की ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से प्राप्त 1300 पुस्तकों में से कुछ को फारसी भाषा में अनुबाद करवाया।

सरकारी पद सैनिक व असैनिक सभी पदों को वंशानुगत कर दिया, इसके अलावे जागीर देने की प्रथा को पुनः शुरू किया यानी की अगर वेंतन नहीं दे पाया तो उसके बदले भूमि आदि दिया जाएगा।

इसके शासनकाल में सर्वाधिक 1 लाख 80 हजार दास थे जिसके लिए अलग एक विभाग दीवान-ए-बंदयान बनाया। इसके अतिरिक्त और भी कई सारे विभाग बनाया जैसे की –

दीवान-ए-खैरात – मुसलमानों, स्त्रियों व विधवाओं को आर्थिक सहायता देता था।

दीवान-ए-इस्तिका – असहाय लोगों (अनाथ व अपांग) को आर्थिक सहायता के लिए बनाया गया था।

दरुलशिफा – निशुल्क चिकित्सा के लिए आदि

1388 ई० में इसका मृत्यु हो गया उसके बाद गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय गद्दी पर बैठा।

निर्माण कार्य

आकाशीय विजली से ध्वस्त कुतुबमीनार के 5 वें मंजिल का पुनः निर्माण करवाया।

इसने 5 बड़े नहरों का निर्माण करवाया कहा जाता ही की सिंचाई के लिए इसने नहरों का जाल बिछा दिया था। इस पर कर भी लिया जाता था, जोकि कुल उपज का 10 प्रतिशत होता था।

इसके अलावे अस्पतालों, मस्जिदों, स्कूलों, गुम्बदों, बंधों व पुलों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण करवाया।

महत्वपूर्ण जानकारी

फुतुहत-ए-फिरोजशाही, फिरोज शाह तुगलक का आत्मकथा है।

बरनी इसी के दरवार में रहता था।

इसी के काल संगीत का प्रसिद्ध पुस्तक `गुन्यातुल मुगनिया लिखी गई।

सुल्तान को भेट देने की प्रथा को समाप्त कर दिया। 

फिरोज शाह तुगलक को मध्कालीन भारत का कल्याणकारी निरंकुश शासक कहा जाता है।

हेनरी एलिएट और एल्फिंस्टन ने इसे सल्तनत काल का अकबर कहा है।

गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय

यह तुगलक वंश का (tuglak vansh) अयोग्य तथा कमजोर शासक था अतः तुगलकों की शक्ति क्षीण होने लगी और तुगलक वंश (tuglak vansh) का पतन होना शुरू हो गया। मुहम्मद खां (मुहम्मद शाह) राजसत्ता हथियाने का प्रयास किया पर असफल रहा। कुछ समय बाद जफ़र खां का पुत्र अबु वक्र ने राजसत्ता हथियाने का प्रयास किया पर यह भी असफल रहा किन्तु इनसे एक षड्यंत रचकर 1389 ई० में तुगलक शाह की हत्या कर दिया।

अबु वक्र (1389 से 1390 ई०)

इसका पूरा समय अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्रों को दबाने ले चला गया और मुहम्मद खां (मुहम्मद शाह) जोकि राजसत्ता को हथियाने के पहले प्रयास में असफल रहा था उसने अबु वक्र को गद्दी से हटाकर खुद सुल्तान बन गया।

मुहम्मद शाह (1390 से 1394 ई०)

इसने नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह तृतीय की उपाधि धारण किया। इसके शासनकाल में तीन विद्रोह हुए गुजरात, इटावा और दोआव में गुजरात विद्रोह को जफ़र खां ने दवाया और इटावा व दोआव के विद्रोह को मुहम्मद शाह ने खुद दवाया।

1394 ई० में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गया, उसके बाद हुमायूँ खां शासक बना किन्तु यह केवल 1 माह और 16 दिनों तक ही शासन किया उसके बाद महमूद शाह राजा बना।

महमूद शाह (1394 से 1413 ई०)

इनके शासनकाल में 1398 ई० में मंगोल सेना नायक तैमुर लंग ने आक्रमण किया पर यह बच निकला। इसके अलावे लगातार विद्रोह और षड्यंत्र होते रहे और कई अधीन राज्य गुजरात, मालवा व खानदेश स्वतंत्र हो गया।

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