Swami Viveka Nand : स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

विवेकानंद (Swami Vivekanand) रामकृष्ण परमहंस एक प्रमुख शिष्य और भिक्षु थे उन्होंने भारत के वेदांत और योग दर्शन से पक्षिमी दुनियाँ को परिचय कराया।

Swami Vivekanand (स्वामी विवेकानंद)

वर्ष 1897 में विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद, उन्ही के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन में भारतीय शिक्षा और लोक परोपकारी कार्यो जैसे आपदा में सहायता, चिकित्सा सुविधा, प्राथमिक और उच्च शिक्षा तथा जनजातियों के कल्याण पर बल दिया।

पक्षिमी देशों के विपरीत स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का राष्ट्रवाद भारतीय धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रस है। विवेकानंद ने अध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित किया।

विवेकानंद मानवतावादी चिंतक थें, उनके अनुसार मनुष्य का जीवन ही धर्म है और धर्म ना तो पुस्तकों में है और ना ही धार्मिक सिद्धांतो में प्रत्येक व्यक्ति भगवान् का अनुभव स्वयं कर सकता है। अशोकानंद, विराजानंद, परमानन्दं, अभयानंद, पेरूमल, अलासिंगा, भगिनी निवेदिता, स्वामी सदानंद इनके प्रमुख शिष्य थें।

प्रारंभिक जीवन

वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली अध्यात्मिक गुर स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। बचपन में नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से जान-जाने वाले विवेकानंद 9 भाई बहन थें।

उनके पिता श्री विश्वनाथ, उस समय हाईकोर्ट के प्रसिद्द वकील हुआ करते थें और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी।

इनके दादा दुर्गाचरण फारसी और संस्कृत के विद्वान थें वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधू बन गए थें।

बचपन से ही नरेंद्र कुशाग्र और सरारती रहे हैं, अपने सहपाठियों के अलावे मौका मिलने पर अध्यापकों के साथ सरारत करने से नहीं चुकते थें।

उत्सुकता में माता-पिता से कभी-कभी नरेंद्र इसे सवाल पूछ देते थें की उन्हें ब्राह्मणों के पास जाना पड़ता था।

वर्ष 1884 में पिता का साथ छुट गया और घर के सारे जिम्मेदारियाँ उन आ गए। घर की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी पर फिर अतिथि सेवी थें, वह खुद भूखे रहकर भी अतिथियों को भोजन कराते। बाहर वर्षा में खुद रात भर भीगते-ठिठुरते रहते किन्तु अथितियों को अपने बिस्तर पर सुला देते थें।

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) अपना सारा जीवन गुरु श्री रामकृष्ण को समर्पित कर चुके थें।रामकृष्ण के अंतिम दिनों में गुरु के ही साथ रहकर सेवा किये।

शिक्षा

उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके घर से ही शुरू हुई। वर्ष 1871 में 8 साला की उम्र में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संसथान में में पढाई की उसके बाद 1877 को अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए और लगभग एक साल बाद वापस अपने घर आ गए।

कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, राजनीति विज्ञान, कला, इतिहास और साहित्य जिसे विषयों में शिक्षा प्राप्त किये।

इसके अलावे वेद, उपनिषद्, भगवत गीता, रामायण, महाभारत जैसे कई हिन्दू धर्म ग्रंथों का गहनता से अध्यन किया, इसके बाद वह सिंघित का भी प्रशिक्षण लिया।

स्कांतिश चर्च कॉलेज असेंबली इंस्टिट्यूशन से पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहस का अध्यन किया। 1884 में विवेकानंद ने कला से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

विवेकानंद के बारे में महासभा संस्था के प्रधान अध्यापक कहते हैं की नरेंद्र एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं, मैंने कई सारे अलग अलग जगहों की यात्रा किए हैं पर उनके जैसा प्रतिभाशाली व्यक्ति कभी नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छत्रों में भी नहीं। इसलिए नरेंद्र को सृतिधर कहा जाता हैं जिस अर्थ है विलक्षण स्मृति वाला व्यक्ति।

रामकृष्ण परमहंस

विवेकानंद को बचपन से ही भगवान के प्रति जानने का जिज्ञासा था इसलिए कभी-कभार कुछ ऐसे सवाल पूछ लेते थें की लोग हैरत में पड़ जाते थें।

एक बार बचपन में ही उन्होंने देवेन्द्र नाथ से पूछ लिया की क्या आपने कभी भगवान् को देखा है? इस सवाल को सुनकर देवेन्द्र नाथ आश्चर्य में पड़ गए। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दिए।

उसके बाद नरेंद्र रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु मान लिए और उनके बताए मार्ग पर चलने लगें।

रामकृष्ण से वह इतने प्रभावित हुए की जब 1885 में रामकृष्ण कैंसर से पीड़ित थें तो उन्होंने ने उनकी बहुत सेवा की और अंत तक उनके साथ रहें।

रामकृष्ण मठ की स्थापना

रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद विवेकानंद ने देश के 12 शहरों रामकृष्ण संघ की स्थापना की, जिसे बाद में नाम बदल कर रामकृष्ण मठ कर दिया।

मठ की स्थापना के बाद 25 वर्ष की आयु में घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगें और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे तभी से वह नरेन्द्रनाथ दत्त से विवेकानंद कहलाये।

Swami Vivekanand के सिद्धांत

संघों और मठों को स्थापित कर लोगों को अध्यात्म से जोड़ा। उनका कहना था की अगर मुझे 100 ऐसे युवा मिल जाय जो पूरी तरह से समर्पित हो तो वे देश की तस्वीर बदल देंगे।

शिक्षा ऐसी हो जिससे व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास हो, चरित्र का निर्माण हो और आत्मनिर्भर बने। धार्मिक शिक्षा पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण और संस्कारों द्वारा देना चाहिए।

विश्व धर्म सम्मलेन

1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में, दुनियाँ भर के सभी धर्म गुरुओं ने हिस्सा लिया और सभी लोग अपने धार्मिक किताब रखें। इस सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) ने, भागवत गीता को रखा और भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।

उनके भाषण की शुरुआत में “मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” के साथ शुरू किया इस संबोधन ने सबका दिल जीत लिया। इस संबोधन के साथ ही वह विश्व वहार में लोकप्रिय हो गए।

भारत भ्रमण

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) पैदल ही काशी, प्रयाग, वाराणसी, अयोध्या आदि पुरे देश का भ्रमण किये इस दौरान कई सारे राजा, ब्राह्मण व गरीब के घर ठहरे।

इसी क्रम में 23 दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी पहुँचे और वहाँ तीन दिनों तक समाधी में लीं रहें। उसके बाद गुरुभाई ब्रह्मानंद और तुर्यानंद से मिलने राजस्तान गए।

विश्व भ्रमण

धर्म सम्मलेन ख़त्म होने के तीन साल बाद तक अमेरिका में रहकर हिन्दू धर्म के वेदांगो का प्रचार-प्रसार किया। 1894 को न्यूयार्क में वेदांग सोसाइटी की स्थापना की।

1897 में अम्रीका से श्रीलंका चले गए और फिर रामेश्वरम उसके बाद 1 मई 1897 को कलकत्ता वापस लौट आये।

20 जून 1899 फिर से अमेरिका गए और वहाँ कैलीफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किये, फ्रांसिस्को और न्यूयार्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में पेरिस गए जहाँ कांग्रेस ऑफ़ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिया और लगभग 3 तक फ़्रांस में रहने के बाद वर्ष 1900 के अंतिम महीनों में भारत लौट आये।

इसके बाद वह बोधगया और वाराणसी की यात्रा की। यात्रा के दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया और वो सुगर व अस्थमा जैसे बीमारियों से ग्रसित हो गए। 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में, बेलूर, पक्षिम बंगाल में उनका निधन हो गया।

Swami Vivekanand की जयंती

प्रतिभा के धनी स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) अपने स्वाभाव और समर्पण उन्होंने सभी लोगों को अपनी और आकर्षित किया, विशेषकर युवाओं के लिए विवेकानंद एक आदर्श बन गए। प्रतिवर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।

वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की तथा 1898 को बेलूर मठ की स्थापना की जो आज भी कार्यरत है।

Swami Vivekanand के अनमोल वचन

  • जब तक तुम अपने आप से विशवास नहीं करोगे तब तक भगवान् में विशवास नहीं कर सकते।
  • हम जो भी हैं हमारी सोच हमें बनाती है, इसलिए सावधानी से सोचे शब्द अद्वित्य है पर सोच रहती है और दूर तक याता करती है।
  • उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको।
  • हम जितना बाहर आते हैं और जितना दूसरों का भला करते हैं, हमारा दिल उतना ही शुद्ध होता है और उसमे उतना ही भगवान् का वास होता है।
  • सच हजार तरीके से कहा जा सकता है, तब भी उसका हर एक रूप सच ही है।
  • संसार एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहाँ हम स्वंय को शक्तिशाली बनाने आते है।
  • बाहरी स्वाभाव, आन्तरिक स्वाभाव का बड़ा रूप है।
  • भगवान् को अपने प्रिये की तरह पूजना चाहिए।
  • ब्रह्माण्ड की साड़ी शक्तियाँ हमारी है, हम ही अपने आँखों पर रखकर रोते है की अन्धकार है।

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