सोलंकी वंश का इतिहास : Solanki Vansh

यह का चालुक्य का सोलंकी वंश था, इसे वंश को गुजरात या अन्हिलवाड के सोलंकी वंश के नाम से भी जाना जाता है क्योंकी प्राचीन भारत के इतिहास में गुजरात को अन्हिलवाड के नाम से ही जाना जाता था।

प्राचीन ग्रंथ कुमारपाल चरित और वर्णरत्नाकर से कुल 36 राजपूतों की सूचि मिलती है। कहा जाता है की सोलंकी वंश के राजपूत की उत्पति अग्नि से हुआ है। इस वंश ने जैन धर्म को संरक्षण दीया था।

सोलंकी वंश के इतिहास के जनकारी प्राप्त करने के लिए जयसिंह द्वारा रचित कुमारपाल चरित प्रमुख्य स्रोत्र है।

मूलराज प्रथम (सोलंकी वंश)

इस वंश की स्थापना मूलराज प्रथम ने किया इन्होने गुजरात के एक बड़े भूभाग को जीत लिया और अन्हिलवाड को अपनी राजधानी बनाया।

भीम प्रथम

भीम प्रथम इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था, इसी के शासनकाल में 1025 ई० में गुजरात पर महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ और सोमनाथ मंदिर को लुटने के बाद उसे नष्ट कर दिया।

जिसे भीम प्रथम ने पुनरुद्धार करवाया, इसका वर्णन कुमारपाल चरितम में मिलाता है, जिससे कुछ विद्वानों को मानन है की इसे कुमारपाल ने पुनरुद्धार करवाया था। संभवतः भीम प्रथम एवं कुमारपाल दोनों ने अपने समय में इसका निर्माण करवाया होगा।

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भीमदेव प्रथम के सामन्त विमलशाह ने माउन्ट आबू पर दिलवाडा का जैन मंदिर का निर्माण करवाया इसे 27वाँ जैन मंदिर कहा जाता है।

जयसिंह सिद्धराज

इसका नाम जयसिंह और लेकिन इसने सिंध को जीत लिया इसलिए इसे सिद्धराज कहा जाने लगा।

इसने परमार वंश के शासक यशोवर्मन को युद्ध में पराजित किया, इस उपलक्ष्य में इसने अवन्तिनाथ की उपाधि धारण किया।

यह शैव धर्म के अनुयायी थे किन्तु संरक्षण जैन धर्म को भी संरक्षण दिया था। इसके दरवार में प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचन्द्र रहते थे। जयसिंह के कोई पुत्र ना होने के कारण अपने मंत्री उदयन के बेटे वाहड़ को अपना उतराधिकारी चुना।

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जयसिंह ने माउन्ट आबू पर एक मण्डप का निर्माण करवाया जहाँ साथ-पूर्वजों की गजारोही मूर्तियाँ स्थापिया किया। इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता है की यह मनुष्य द्वारा किया गया सर्वश्रेष्ठ उत्किर्ष कला है।

कुमारपाल

जयसिंह अपना उतराधिकारी वाहड़ को चुना था। कहा जाता है की कुमारपाल गणिका का पुत्र था और उसके गुणों के देखते हुए इसे गोद ले लिया था।

इसके शासनकाल इसके राज्य पर तीनबार पहला चौहान शासक अर्दोराज, दूसरा परमार शासक विक्रमसिंह और तीसरा मालवा शासक बल्लस ने आक्रमण किया। इन तीनों आक्रमण को कुमारगुप्त ने अकेले ही विफल कर दिया।

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जयसिंह को प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र ने जैन धर्म की दीक्षा दीया। इसके बाद इसने परम अर्हत की उपाधि धारण किया और अपने सम्पूर्ण राज्य में अहिंसा के सिद्धांतो लागू किया।

पशु हत्या, धृतकीड़ा और मध्यपान के ऊपर पूरी तरह से प्रतिवंध लगा दिया। इन कार्यों में जो भी लगे थे उनसे 3 वर्षो के अनुमानित कमाई जितना धन दिया गया और कहा गया की कोई इतने समय में कोई और कार्य करें।

अजयपाल (1172 से 1176 ई०)

इसके शासनकाल में शैव धर्म और जैन धर्म के मध्य गृहयुद्ध छिड़ गया, इसी गृहयुद्ध के दौरान अजयपाल के नौकर ने चाक़ू से उसकी हत्या कर दिया।

मुल्कराज द्वितीय

अजयपाल के मृत्यु के बाद मुल्कराज को अस्थाई रूप से राजा बना दिया गया।

भीम द्वितीय (1178 से 1238 ई०)

यह सोलंकी वंश का अंतिम महान शासक था। इसने सोलंकी वंश की परम्पराओं, प्रतिष्ठाओं और शक्तिओं को पुनर्स्थापित किया।

1178 ई० में मुहम्मद गोरी ने भीम द्वितीय के राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भीम द्वितीय ने गोरी को बुरी तरह से पराजित कर दिया।

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1195 में में भीम द्वितीय ने गोरी के गुलाम कुतुबुद्धीन ऐवक को पराजित कर दिया। और इसी वर्ष के अंत में कुतुबुद्धीन ऐवक पुनः गुजरात पर आक्रमण कर अन्हिलवाड पर अधिकार कर लिया।

1201 ई० में भीम द्वितीय ने पुनः अपना राज्य हासिल किया।

भीम द्वितीय गुजरात के चालुक्य वंश के अंतिम शासक रहा इसके मृत्यु के बाद इसके मंत्री लावन प्रसाद ने यहाँ बघेल वंश की स्थापना किया।चालुक्य शासकों के शासनकाल में महिलाओं को उच्य पदों पर नियुक्त किया जाता था।

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