शुंग वंश का इतिहास : Shung Vansh

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राहमण साम्राज्य का उदय हुआ इसके अंतर्गत आनेवाले प्रमुख राजवंश – शुंग वंश (shung vansh),कण्व वंश, सातवाहन वंश (आन्ध्र वंश) और चेदी वंश

Shung Vansh

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राहमण साम्राज्य का उदय हुआ इन्ही उदित ब्राहमण साम्राज्य में से एक था पुष्यमित्र द्वारा स्थापित “शुंग वंश”। पुष्यमित्र शुंग खुद भी एक ब्राहमण था जोकि पुनः हिन्दू धर्म का उत्थान किया।

भारत पर यूनानी आक्रमण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा था तो सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने तत्कालीन मौर्य शासक बृहद्रथ इस खतरे से अबगत कराया पर बृहद्रथ इस खतरे को बार-बार नजरअंदाज कर रहा था। इसलिए पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या कर दिया और मगध पर शुंग वंश (shung vansh) की स्थापना किया। भारत को यूनानियों के आक्रमण से सुरक्षित रखा।

पुष्यमित्र शुंग (185 से 149 ईसा पूर्व)

शुंग वंश ब्राह्मण साम्राज्य के अंतर्गत स्थपित होने बाला पहला राजवंश था जिसकी स्थापन 185 ईसा पूर्व में पुष्यमित्र शुंग ने किया। राज्य में किसी प्रकार का कोई खास विद्रोह यादी ना हो इसलिए उन्होंने पाटलिपुत्र और राजगृह के बजाय, विदिशा को अपनी राजधानी बनाया।

पुष्यमित्र शुंग अपने 36 वर्षो के शासनकाल में यूनानियों से दो बार युद्ध किया और दोनों बार यूनानियों को पराजित किया। पहलीबार युद्ध में यवन के सेनापति डेमोड्रेयस को पराजित किया जिसका वर्णन गार्गी संहिता में मिलता है। और दूसरी बार यवन के सेनापति मिनांडर को पराजित किया जिसका वर्णन कालिदास द्वारा रचित “मलिकाग्निमित्रम” में मिलता है।

कालिदास की रचना “मालविकाग्निमित्र” में अग्निमित्र नामक राजकुमार तथा मालविका नामक राजकुमारी के प्रेम विवाह का वर्णन है। कालिदास की यह रचना गुप्त काल में हुआ था और इस रचना में जिस अग्निमित्र का जिक्र किया गया है वह पुष्यमित्र शुंग का पुत्र व शुंग वंश (shung vansh) का दूसरा शासक है।

इस वंश का अंतिम शासक देवभूति था इसकी हत्या 73 ईसा पूर्व में वासुदेव ने कर दी और मगध पर कण्व वंश की स्थापना दी।

धर्म एवं कला

इस वंश के शासनकाल या फिर यूँ कहें की ब्राह्मण साम्राज्य जब स्थपित हुआ तो बौद्ध धर्म और जैन धर्म जो मौर्य वंश के दौराण तेजी से बढ़ रहा था वह धीरे-धीरे कम होता चला गया।

भरहुत स्तूप में निर्माण (निर्माणकर्ता – पुष्यमित्र शुंग) हो या स्तूपों की घेराबन्धी करने के लिए लकड़ी के स्थान पर पत्थरों का प्रयोग पहलीबार शुंगों के ही शासनकाल में किया गया।

शुंग काल के प्रमुख रचनाओं में एक मनुस्मृति की रचना मनु ने किया था, इसका संवंध सामाजिक-कानूनी व्यवस्था से है। पतंजलि, पुष्यमित्र शुंग के दरवार में रहतें थे जिसने पुष्यमित्र के लिए दो बार अश्वमेध यज्ञ करवाएँ।

पुष्यमित्र शुंग के बार में कहा जाता है की राजा बनाने के बाद अशोक द्वारा बनाए गए 84 हजार स्तूपों को नष्ट करवा दिया हालाँकि बाद में पुष्यमित्र शुंग ने ही भरहुत स्तूप व साँची स्तूप का निर्माण करवाया साथ ही पहलीवार स्तूपों की घेराबन्धी करने के लिए लकड़ी के स्थान पर पत्थरों का प्रयोग किया गया।

अन्य महत्वपूर्ण जनकारी

  • मनुस्मृति के वर्तमान स्वरूप की रचना शुंग शासन काल में हुआ।
  • विदिशा का गरुड़ स्तम्भ का निर्माण
  • अजंता के 9वाँ चैत्य मंदिर का निर्माण
  • नासिक और कार्ले के चैत्य मंदिर का निर्माण
  • भारतियों ने यवनों से ज्योतिष विद्या के कुछ गुण सीखें जैसे की सप्ताह में सात दिन होते है और जिसका नाम विभिन्य ग्रहों के नाम पर रखा गया है।
  • नक्षत्रों को देखकर भविष्य देखने की विद्या भी यवनों से सीखें।

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