शिशुनाग वंश का इतिहास – Shishunag vansh

हर्यक वंश के बाद मगध पर शिशुनाग वंश आया इसकी स्थापना शिशुनाग (shishunag vansh) ने 412 ईसा पूर्व में हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदाशक को अपदस्थ करके किया। शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से स्थानांतरन कर वैशाली को बनाया।

Shishunag vansh (शिशुनाग)

यह मगध का राजा बनाने से पहले हर्यक वंश के अंतिम शासक नागादशक का आमात्य था। जोकि एक अयोग्य शासक था जिसका लाभ उठाकर शिशुनाग ने विद्रोह कर दिया और मगध की सत्ता अपने हाथों में लिया।

शिशुनाग वंश (shishunag vansh) की स्थापना 412 ई० पूर्व में शिशुनाग ने किया और राजगृह को अपनी राजधानी बनाया। बाद में अपनी राजधानी को बदलकर पाटलिपुत्र ले आया इसकी दूसरी राजधानी वैशाली थी।

प्राचीन भारतीय इतिहास के अनुसार शिसुनाग वंश मगध पर स्थापित होने वाला तीसरा व हिन्दू पुराणों के अनुसार दूसरा राजवंश था।

अपने बड़े प्रतिद्वंद्वी अवन्ती का विनाश करना शिशुनाग की सबसे उपलब्धि थी। विनाश होने के साथ ही मगध और अवन्ती के बीच करीब 100 वर्षो से चले आये संघर्ष भी समाप्त हो गया। इसके बाद अवन्ती को भी मगध साम्राज्य में मिला लिया।

395 ई० पूर्व में शिशुनाग की मृत्यु हो जाने के वाद इनके पुत्र कालाशोक मगध की राजगद्दी पर बैठा।

कालाशोक

महावंश में कालाशोक को कालाशोक तथा पुराणों में इसे की काकवर्ण कहा गया है। यह 395 ई० पूर्व में में मगध की राजगद्दी पर बैठा। शिशुनाग के शासनकाल में अर्थात राजा बनने से पहले यह वैशाली का राज्यपाल था।

कालाशोक के शासनकाल के दो महत्वपूर्ण घटनाएँ थी –

  • प्रथम : शिशुनाग के शासनकाल प्रथमिक राजधानी पाटलिपुत्र व दूसरी राजधानी वैशाली थी हुआ करती थी उसे पुनः स्थान्तरित कर पाटलिपुत्र ले आया।
  • दूसरा : इसी के शासनकाल में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था।

बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक हर्षचरित में बताया है की कालाशोक अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में में टहल रहा था तभी महापद्म्नंद ने चाक़ू मारकर इसकी हत्या (366 ई० पूर्व) कर दी।

महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे जिसने मगध पर करीब 22 वर्षों तक शासन किया उसके बाद इस वंश का पतन हो गया।

शिशुनाग वंश (shishunag vansh) के अंतिम शासक नंदिवर्धन को इसी के नाजाइज पुत्र महापद्म्नंद ने हत्या कर दिया और और मगध पर नन्द वंश की स्थापना किया।

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