सेन वंश का इतिहास : Sen vansh

Sen vansh : पाल वंश के पतन के बाद बंगाल में एक नए राजवंश सेन वंश (sen vansh) का उदय हुआ, इसकी स्थापना सामन्त सेन ने किया था। सामन्त सेन से राढ़ नामक एक राज्य स्थापित किया।

विजय सेन (Sen vansh)

यह सेन वंश का सबसे प्रतापी शासक था इन्होने नव्य (नेपाल) और वीर (मिथिला) को पराजित कर अपने राज्य में मिला लिया। इसने अपने राज्य में विजयपुर और विक्रमपुर नामक दो नगर स्थापित किया।

बल्लाल सेन

इन्हें बंगाल में जाती प्रथा और कुलीन प्रथा को संगठित करने का श्रेय दिया जाता है। इसके लिए कुलिनवाद नामक एक सामाजिक आन्दोलन भी चलाया।

इन्होने दानसागर नामक ग्रंथ की रचना किए और अदभुत सागर नामक ग्रंथ की रचना करते-करते बल्लाल सेन की मृत्यु हो जाती है अतः अदभुत सागर ग्रंथ अपूर्ण रह जाता है।

उपाधि – गौर्डश्वर एवं नि:शक शंकर

लक्ष्मण सेन

लक्ष्मण सेन बल्लाल सेन का पुत्र था इसने प्राचीन राजधानी गौढ़ के निकट ही एक अन्य राजधानी लक्ष्वनवती (लखनौती) की स्थापना किया।

1202 ई० में मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी (कुतुबुद्धीन बख्तियार खिलजी) ने लखनौती पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

बख्तियार खिलजी ने इसी अभियान के समय ही नालंदा में नालंदा विश्व विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था।

लक्ष्मण सेन ने अपने पिता बल्लाल सेन द्वारा आरम्भ किए गया अधभुत सागर नामक ग्रंथ की रचना पूरा किया। अधभुत सागर ग्रंथ की कविताएँ सदुक्क्तिकर्नामृत से मिलती है जिसकी रचना गिरधर दास ने किया है। यह लक्ष्मण सेन का ही दरवारी कवि तथा लेखक था।

हलायुध लक्ष्मण सेन के दरवार में रहता था यह प्रधान न्यायाधीस और मुख्यमंत्री था।

लक्ष्मण सेन ने गढ़वाल शासक जयचंद पर आक्रमण कर उसे युद्ध में पराजित किया। लक्ष्मण सेन के दरवार में अनेक विद्वान तथा लेखक रहते थे।

  • जयदेव – गीत-गोविन्द के रचनाकार
  • धोयी – पवन इत्र के रचनाकार
  • हलायुध – ब्रह्मण सर्वस्व के रचनाकार

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