सैय्यद वंश का इतिहास : Sayyid vansh

Sayyid vansh : तुगलक वंशी शासक महमूद शाह के शासनकाल में 1398 ई० में तैमुर ने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया तो खिज्र खां ने तैमुर का साथ दिया था अतः जब तैमुर वापस लौटा रहा था तो मुल्तान, लाहौर तथा दिवालपुर इन तीनों की सुबेदारी खिज्र खां को सौप दिया और इन क्षेत्रों से जो भी राजस्व प्राप्त होता था खिज्र खां उसे तैमुर के पास भेज देता था।

सैय्यद वंश (Sayyid Vansh)

यहीं से खिज्र खां अपनी स्थिति मजबूत करता गया और अंततः 1414 ई० में महमूद शाह के मृत्यु के साथ ही दिल्ली की सत्ता अपने हाथों में लिया और एक नए राजवंश सैय्यद वंश (sayyid vansh) की स्थपाना किया।

खिज्र खां (1414 से 1421 ई०)

खिज्र खां ने रैय्यत-ए-आला की उपाधि धारण किया, सैय्यद खुद को पैगम्बर मुहम्मद के वंशज मानते थे हालाँकि इसका कोई भी प्राण नहीं मिला किन्तु यह स्पस्ट है की यह अरब से भारत आया था।

20 मई 1421 ई० में इसकी मृत्यु हो गया उसेक बाद खिज्र खां का पुत्र मुबारक शाह राजा बनता है।

मुबारक शाह (1421 से 1434 ई०)

इसने सुल्तान की उपाधि धारण किया, सिक्के भी चलाए और मुबारकबाद नामक एक नगर भी वसाया। इसके शासनकाल में कई विद्रोह हुआ किन्तु उसे यह सफलतापूर्वक दवा दिया।

मुबारक शाह के संरक्षण में याहिया-बिन-सर हिन्दी ने तारीख-ए-मुबारक शाही नामक किताब लिखा जिसमे मुबारक शाह के कार्यों का वर्णन मिलता है।

मुबारक शाह से असंतुष्ट लोगों के सिद्धपाल ने नेतृत्व में संगठन बनाया वहीँ मुबारक शाह के वजीर सरवर-उल-मुल्क के नेतृत्व में अपने पक्ष में अमीर लोगों का संगठन बनाया गया किन्तु वास्तव में यह भी मुबारक शाह का विरोधी था। सरवर-उल-मुल्क ने एक षड्यंत्र रचा और सिद्धपाल ने 19 फरवरी 1434 ई० में मुबारक शाह की हत्या कर दिया।

मुहम्मद शाह (1434 से 1445 ई०)

यह सैय्यद वंश का सबसे कमजोर व अयोग्य शासक था अतः इसके राजा बनाने के साथ ही सैय्यद वंश (sayyid vansh) का पतन शुरू हो गया। मुहम्मद शाह ने सरवर-उल-मुल्क को खान-ए-जहाँ की उपाधि दिया।

कहा जाता है की इस समय मुहम्मद शाह केवल एक कठपुतली था दिल्ली के सत्ता का वास्तविक नियंत्रण सरवर-उल-मुल्क के हाथों में था क्योंकी मुहम्मद शाह को छोड़कर सत्ता के प्रमुख पदों पर रह रहे सभी मुबारक शाह का हत्यारा था। किन्तु कमाल-उल-मुल्क ने मुबारक शाह की हत्या का बदला लेने एक गुप्त संगठन बनाया बाद में इस संगठन में मुहम्मद शाह भी शामिल हो गया और एक षड्यंत्र रचा कर सरवर-उल-मुल्क की हत्या कर दिया।

इसी बीच इब्राहीम शार्की ने दिल्ली सल्तनत के पूर्वी सीमा जौनपुर पर आक्रमण कर दिया, तो मुहम्मद शाह ने अपनी कुछ सेना की मदद से यहाँ युद्ध होने लगा। जिस समय जौनपुर में युद्ध हो रहा था उसी समय मालवा के महमूद भी दिल्ली पर आक्रमण करने के उद्देश्य से दिल्ली की ओर बढ़ने लगा।

इस विपरीत प्रस्थति में अफगान के सूबेदार बहलोल ने मुहम्मद शाह की सहायता किया उसके बाद मालवा के महमूद बिना युद्ध लड़े वापस लौट गया। सहयता करने के कारण मुहम्मद शाह ने बहलोल लोदी को खान-ए-खाना की उपाधि दिया। 1445 ई० में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गया उसके बाद अलाउद्दीन आदिलशाह राजा बन गया।

अलाउद्दीन आदिलशाह (1445 से 1451 ई०)

यह भी एक कमजोर और अयोग्य शासक था, बहलोल लोदी जिसका लाभ उठाने का पूरा प्रयास किया राजा बनाने से पहले यह बदायूँ का सुवेदार था। राजा बनाने के बाद अलाउद्दीन आदिलशाह और वजीर हामिद खां के बीच विवाद हो गया। अलाउद्दीन आदिलशाह शांति प्रसंद शासक था इसलिए विवादों से बचने के लिए सुल्तान अलाउद्दीन आदिलशाह राजा होने के बादजूद भी 1447 ई० में बदायूँ चला गया और वहीँ स्थाई रूप से वस् गया।

बदायूँ जाने से पहले दिल्ली की सत्ता अपने पत्नी के दो भाइयों को सौप दिया लेकिन इन दोनों भाइयों शाहना-ए-शहर और अमीर कोहथे के बीच भी विवाद हो गया। इस विवाद के परिणाम स्वरुप अमीर कोहथे ने शाहना-ए-शहर की हत्या कर दिया और जनता ने अमीर कोहथे की हत्या कर दिया।

बहलोल लोदी इस प्रस्थिति का खूब लाभ उठाया और दिल्ली की सत्ता अपने हाथों में ले लिया, पर भविष्य में सत्ता को लेकर कोई समस्या ना हो इसलिए हामिद खां की हत्या करवा दिया और दिल्ली में एक नए राजवंश लोदी वंश की स्थापना किया।

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