सातवाहन वंश का इतिहास : Satvahan Vansh

सातवाहन वंश (satvahan vansh) को आन्ध्र सातवाहन के नाम से जाना जाता है यह भी प्रमुख ब्राह्मण साम्राज्य के अंतर्गत आता है जो लम्बे समय तक शासन किया। इस वंश की स्थापना शिमुक ने 60 ईसा पूर्व में किया और प्रतिष्ठान को राजधानी बनाया। सिमुक को पुराणों में सिन्धुक, शिशुक, शिप्रक, एवं वृषल भी कहा गया है।

शिमुक, शातकर्णी, गौतमी पुत्र शातकर्णी, वशिष्ठ पुत्र पुलुमावी, यज्ञश्री शातकर्णी आदि इस वंश के कई प्रमुख शासक हुए जो सामाजिक, धार्मिक और स्थापत्य कला के क्षेत्र में कई अद्भुत कार्य किए।

भारत में ब्राहमणों और बौद्ध भिक्षुओं को भूमि अनुदान देने की प्रथा की शुरुआत भी सातवाहन शासकों ने किया। जिसकी जानकारी हमें नानाघट अभिलेख से मिलता है। कार्ले का चैत्य (बौद्ध धर्म से संवंधित) और अमरावती कला का विकास सातवाहनों के ही शासन काल में हुआ।

भारत में सामंती व्यवस्था की शुरुआत सातवाहनों के शासनकाल से ही शुरू हुआ। क्योंकी भूमि दान देते-देते किसी ख़ास क्षेत्र ब्राहमणों और बौद्ध भिक्षुओं का अधिकार हो जाता था अर्थात राजा के अंदर राजा (देश के अन्दर देश) जोकि आगे चलकर व्यापक रूप ले लेता है और भारत में सामंती व्यवस्था हो जाता है।

शातकर्णी ने दो अश्वमेध यज्ञ एवं एक राजसूर्य यज्ञ करवाया। माना जाता है की सातवाहन समाज मातृसतात्मक था परंतु राज–काज पितृसतातत्मक था।

हाल तथा गुणाढ्य ये दोनो सातवाहनों के समय दो प्रसिद्ध साहित्यकार थे हाल ने गाथा सप्त्शातक और गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक पुस्तक की रचना किए।

Satvahan Vansh

पुराणों में इसे आन्ध्र व अभिलेखों में इसे सातवाहन कहा गया है अतः इसे आन्ध्र सातवाहन के नाम से भी जाना जाता है। आन्ध्र सातवाहन वंश सामंती व्यवस्था पर आधारित प्रथम राजवंश था क्योंकी सातवाहन वंश (satvahan vansh) के संस्थापक सिमुक पहले अंतिम कण्व वंशी शासक सुर्शर्मन के सामंत हुआ करते थे।

सातवाहन वंश के शासकों को दक्शिनापति और इनके द्वारा शासित क्षेत्रों को दक्षिणा पथ कहा गया। शुरुआत में इसका शासन क्षेत्र मुख्य रूप से महाराष्ट्र और आन्ध्र था हालाँकि आगे चल्रकर इनके राज्य का विस्तार हुआ।

सिमुक

सिमुक कण्व वंश के शासन में हमेश हस्तक्षेप करता रहता था और मौके के लाभ उठाकर सिमुक 60 ईसा पूर्व में सातवाहन वंश (satvahan vansh) की स्थापना किया और प्रतिष्ठान को अपनी राजधानी बनाई।

सिमुक धार्मिक कार्यों में अधित रूचि रखता था किन्तु अंतिम दिनों में काफी अत्याचारी और दुराचारी हो गया इस कारण वहाँ के लोगों ने ही मिलकर इसका वध कर दिया।

कान्ह (कृष्ण)

हत्या के बाद सिमुक का कान्ह राजा बना जिसका जिक्र नासिक गुफा शिलालेख से मिलाता है। इसके शासनकाल में कोई अधिक कार्य नहीं हुआ।

शातकर्णी प्रथम

यह सातवाहन वंश (satvahan vansh) का प्रथम प्रतापी शासक था जिन्होंने दो अश्वमेध यज्ञ व तीन राजसूर्य यज्ञ कराए और दक्शिनापति, अप्रतिहत चार का एक चालक व प्रतिष्ठानपति आदि कई सारे उपाधियाँ धारण किया की।

इसका विवाह अमिय वंश के राजकुमारी रानी नागनिका से हुआ, नागनिका शातकर्णी प्रथम के प्रशानिक कार्यों में हस्तक्षेप किया करती थी और उसे शासन प्रशासन के बारे में जानकारी भी थी। इस कारण जब शातकर्णी प्रथम के मृत्यु हो गया तो नागनिका अपने अल्पायु पुत्र वेदश्री और सतिश्री की संरक्षिका बनकर कुछ समय के लिए प्रशासन चलाया।

शातकर्णी द्वितीय

इसका उल्लेख हाथिगुफा अभिलेख एवं भेलसा अभिलेख में मिलता है इन्ही के शासनकाल में राजशेखर ने काव्य मीमांसा व वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना किए।

हाल

हाल एक कवि प्रेमी था जिसकी जानकारी उसी की रचना गाथासप्तशती से प्राप्त होती है प्राकृत भाषा में लिखा गया यह पुस्तक प्रेमगाथा पर आधारित है। वृहतकथा के रचनाकार गुणाढ़य और कान्तंत्र के रचनाकार सर्वर्मन इन्ही के दरवार में रहते थे।

नोट – हाल ने सेनापति विजयानन्द को प्रशासनिक कार्यों से लंका भेजा जहाँ वह लंका के राजकुमारी लीलावती को देखता है। और बाद हाल से उसके सौन्दर्य के बारे बताता है तो हाल लीलावती से विवाह कर लेता है।

गौतमी पुत्र शातकर्णी

यह सातवाहन वंश (satvahan vansh) का सबसे प्रतापी शासक था अतः इसके शासनकाल में सातवाहन राज्य अपने चरम पर था। इसने विंध्य नरेश, राजा गज व त्रि-समुद्र आदि जैसे कई सारे उपाधियाँ को धारण किया और ये अपने आप को विंध्य, ऋक्षवत व महेंद्र यादी पर्वतों का स्वामी कहता था।

गौतमी पुत्र शातकर्णी को आद्वितुय ब्राहमण कहा जाता है। इसके अलावे स्वंय को कृष्ण, बलराम एवं शंकर्षण का रूप बताते थे।

गौतमी पुत्र शातकर्णी, अपने माता बलश्री की सहायता से प्रशासनिक गतिविधियाँ चलाता था जिसका उल्लेख बलश्री के नासिक अभिलेख में किया गया है।

गौतमी पुत्र शातकर्णी ने शक शासक “नहपान” को युद्ध के हराया और उसका वध कर दिया। शकों के प्रतिवार होने की आशंका के कारण इसने अपने पुत्र वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी का विवाह शक शासक रुद्रदामन के पुत्री से करवाना चाहा।

रुद्रदामन वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी को पहले ही दोबार युद्धों में हरा चूका था इसलिए अपनी पुत्री का विवाह वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी से ना करके, वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी के भाई शिवश्री से किया।

वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी

महाराज एवं दक्षिणेश्वर की उपाधि धारण करने वाला वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी ने आन्ध्र को पूर्ण रूप से जीतकर अपने राज्य क्षेत्र में मिला लिया इसलिए इसे आन्ध्र सम्राट भी कहा जाता है।

अमरावती के बौद्ध स्तूप के वेष्टिनि (नक्कासीदार या डिजाईन या सजावट) का निर्माण करवाया बतादें की इस बौद्ध स्तूप का निर्माण पहले ही हो चूका था इसने बस कुछ इसमें योगदान दिया।

शिव श्री शातकर्णी

वाशिष्ठी पुत्र पुलमावी के बाद यह सातवाहन वंश का राज बना जोकि रुद्रदामन का दामाद था इनके शासनकाल में कोई ऐसे प्रमुख घटना नहीं हुआ।

यज्ञ श्री शातकर्णी

यह सातवाहन वंश (satvahan vansh) का अंतिम महत्वपूर्ण शासक रहा इसने रुद्रदामन के मृत्यु के बाद उनके क्षेत्रों को अपने राज्य क्षेत्र में मिला लिया।

इसके सिक्को पर जलयान का चित्र मिलता है जिससे माना जाता है की इसके शासनकाल में समुद्री व्यापार अधिक होता होगा।

इसके मृत्यु के बाद सातवाह वंश के क्षेत्र कई भागों में विभाजित हो गया जिससे पल्लव वंश, इच्छ्वाकू वंश व वाकटक वंश आदि का उदय हुआ।

नोटपुलुमावी तृतीय सातवाहन वंश का अंतिम शासक था।

अन्य जानकारी

भारत में ब्राहमणों और बौद्ध भिक्षुओं को भूमि अनुदान देने की प्रथा की शुरुआत भी सातवाहन शासकों ने किया। जिसकी जानकारी हमें नानाघट अभिलेख से मिलता है। कार्ले का चैत्य (बौद्ध धर्म से संवंधित) और अमरावती कला का विकास सातवाहनों के ही शासन काल में हुआ।

भारत में सामंती व्यवस्था की शुरुआत सातवाहनों के शासनकाल से ही शुरू हुआ। क्योंकी भूमि दान देते-देते किसी ख़ास क्षेत्र ब्राहमणों और बौद्ध भिक्षुओं का अधिकार हो जाता था अर्थात राजा के अंदर राजा (देश के अन्दर देश) जोकि आगे चलकर व्यापक रूप ले लेता है और भारत में सामंती व्यवस्था हो जाता है।

हाल तथा गुणाढ्य ये दोनो सातवाहनों के समय दो प्रसिद्ध साहित्यकार थे हाल ने गाथा सप्त्शातक और गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक पुस्तक की रचना किए।

सातवाहनों की भाषा प्राकृति एवं लिपि ब्राही थी। इस वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक रहे शातकर्णी ने दो अश्वमेध यज्ञ एवं एक राजसूर्य यज्ञ करवाया।

सातवाहन शासकों ने चाँदी, तांबा, कांसा, सीसा तथा पोटीन के सिक्के चलाये इसमें सीसे के सिक्के सर्वाधिक मात्र में चलाया गया।

विदेशी विवरणों से पता चलता की सातवाहनों के समय में कपास की खेती सर्वाधिक होती थी। भड़ौच (वर्तमान में गुजरात) अंतराष्टीय व्यपार का प्रमुख बंदरगाह था।

गौतिमी पुत्र शातकर्णी ने वर्ण संकर (जाति में भी जाति) व्यवस्था को समाप्त कर चतुर्वर्ण व्यवस्था ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र को स्थापित किया।

बौद्ध धर्म के माहयाण शाखा अपने चरम पर था। 

नोट इसमें सातवाहन वंश (satvahan vansh) से जुड़े प्रमुख राजाओं, कार्य व घटनाएँ के बारे में बताया गया है।

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