सरदार वल्लभभाई पटेल जीवन परिचय : Sardar Vallabhbhai Patel

Sardar Vallabhbhai Patel : सरदार पटेल (sardar patel) के नाम से प्रसिद्ध वल्लभ भाई झावेरभाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे। पटेल जी को भारत में ना केवल एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनकी भूमिका के लिए बल्कि स्वतंत्रता के बाद देश को एकजुट करने में उनकी भूमिका के लिए भी सम्मानित किया जाता है।

वह भारत के महान दूरदर्शी राजनेता होने के साथ-साथ वे एक प्रतिष्ठित वकील, बैरिस्टर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी थे। जिन्होंने आजादी के पश्चात 1947 से 1950 तक भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर आजादी के बाद भी सरदार पटेल (sardar vallabhbhai patel) का योगदान अविस्मरणीय है पटेल जी के योगदान और उनके दृढ़ व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें भारत का लोह पुरुष तथा भारत के बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता है।

सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)

31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद जन्मे पटेल जी, झावेरभाई पटेल और लाडबा देवी की चौथी संतान थें। इनके पिता झावेरभाई पटेल रानी लक्ष्मीबाई के सेना में सैनिक थें।

पटेल जी 1897 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद कानून की पढाई के लिए इंग्लैंड चले गए। 1913 में जब भारत आये तो गोधरा से अपना अभ्यास शुरू किया। बाद में उन्हें अहमदाबाद हस्तांतरित कर दी गई। वह अहमदाबाद में ही वकालत करने लगे। जहाँ उनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई। गाँधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने वकालत को छोड़ राजनितिक कार्यों में हिस्सा लेने लगें।

वर्ष 1891 में 16 वर्ष की अल्प आयु में उनका विवाह झावेरबेन पटेल से हुआ। वह धन संचय कर अपने परिवार के साथ आरामदायक जीवन जीना चाहते थें। लेकिन दुर्भाग्य से वर्ष 1909 में उनकी पत्नी झावेरबेन पटेल का निधन हो गया, पत्नी की निधन के बाद इन्होने कभी शादी नही की।

खेड़ा आन्दोलन

1917 से 1924 तक पटेल जी अहमदाबाद के पहले भारतीय नगरपालिका आयुक्त के पद पर थें इसी दौरान साल 1918 में पटेल जी ने गाँधी जी और अन्य लोगों के साथ मिलकर खेड़ा आन्दोलन का नेतृत्व किया।

उनके इस आन्दोलन के कारण आखिरकार अंग्रेजी हुकूमत को झुकना पड़ा यह उनकी राजनितिक जीवन पहली सफलता थी। खेड़ा आन्दोलन के सफलता के बाद साल 1920 से 1945 तक वह गुजरात कांगेस कमेटी के अध्यक्ष रहें।

बारडोली सत्याग्रह

लेकिन पटेल जी को प्रसिद्धि बारडोली सत्याग्रह से मिली जब वर्ष 1926 में वहाँ के स्थानीय प्रशासन ने भू राजस्व दरों में 30% की वृद्धि का घोषणा कर दी।

उस समय गुजरात कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे सरदार पटेल ने फरवरी 1928 में किसानों के साथ मिलकर बारडोली सत्याग्रह का आरंभ कर दिया। पटेल जी ने किसानों को बढ़ी हुई दरों पर भू राजस्व ना देने के लिए प्रेरित किया जब तक की उनकी माँगे ना मान ली जाती हो। इसी दौरान पटेल जी ने “कर मत दो” का नारा दिया था।

इस सत्याग्रह के परिणाम स्वरुप एक न्यायिक जाँच बैठाया गया और किसानों से ली गई जमीने लौटा दी गई साथ ही भू राजस्व दर जोकि बढ़ाकर 30% करने की घोषणा की गई थी उसे घटकर 6% कर दी। किसानों का यह आन्दोलन इतना सफल रहा की वहाँ की महिलाओं ने पटेल जी को सरदार की उपाधि प्रदान की और फिर वह सरदार पटेल (sardar vallabhbhai patel) के नाम से देश भर में लोकप्रिय हो गए।

स्वतंत्रता आन्दोलन

गाँधी जी ने 1920 में जब असहयोग आन्दोलन की घोषणा की तो पटेल जी ने उनका समर्थन करते हुए उन्होंने अपने यूरोपीय पोशाकों को त्याग कर खादी अपना ली। इससे पहले पटेल जी जब इंग्लैंड से भारत लौटे थें तो वह यूरोपीय वेसभुसा में रहते थें।

पटेल जी उन गिने-चुने नेताओं में से एक थें जिन्होंने 5 फरवरी 1922 को  हुई चौरा-चौरी घटना के बाद जब गाँधी जी असहयोग आन्दोलन को वापस लिया तो पटेल जी ने उनका समर्थन किया था जबकि चितरंजनदास, मोतीलाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस जैसे अन्य प्रमुख नेताओं ने गाँधी जी के इस फैसले का खुलकर विरोध किया।

1930 के दांडी मार्च के दौरान पटेल जी को गिरफ्तार कर लिया गया पर गाँधी-इरविन समझौते के बाद उनको रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद 1931 में उन्हें करांची सत्र में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। इसी सन्न में मौलिक अधिकार और आर्थिक नीति का प्रस्ताव पारित किया गया था।

तकरीवन एक साल बाद 1932 में गाँधी जी के साथ पटेल जी को फिर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और दो साल वाद 1934 को उनको रिहा किया गया।

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में शामिल होने के कारण 8 अगस्त 1942 के रात्रि को देश ने प्रमुख नेताओं के साथ-साथ पटेल जी को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और फिर जून 1945 को उन्हें रिहा किया गया।

भारत विभाजन और शरणार्थियों की समस्या

1946 में भारत आजादी के दहलीज पर खड़ा था मोहम्मद अली जिन्ना धर्म के आधार पर भारत के विभाजन की मांग तेजी कर दी। पटेल भारत विभाजन के पक्ष में ना होते हुए भी, विभाजन के प्रस्ताव पर मतदान के लिए आयोजित कांग्रेस की बैठक में हिस्सा लिया।

इसी बैठक में पटेल जी ने कहा था की “मै मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हामारे भाईयों के डर की पूरी तरह सराहना करता हूँ। भारत का विभाजन किसी को अच्छा नहीं लगता है और मेरा हिरदय भारी है। लेकिन चुनाव एक प्रभाग और अनेक प्रभागों के बीच है। हमें तथ्यों का सामना करना चाहिए. हम भावनात्मक और भावनात्मकता को रास्ता नहीं दे सकते चाहे हम इसे पसंद करें या नहीं वास्तव में पाकिस्तान पंजाब और बंगाल में पहले से ही मौजूद है। इन परिस्थितियों में मैं एक वैध पाकिस्तान को प्राथमिकता दूंगा जो लीग को और अधिक जिम्मेदार बना सकता है आजादी आ रही है भारत का 70 से 75% हिस्सा हमारे पास है जिसे हम अपनी प्रतिभा से मजबूत बना सकते हैं लीग देश के बाकी हिस्सों का विकास कर सकती है। 

जहां एक ओर स्वतंत्रता मिलने की खुशियां थी तो वहीं दूसरी ओर विभाजन के दौरान हिंसा के अकल्पनीय भयावहता तस्वीरें। शरणार्थियों को इस विभाजन का सबसे बड़ी कीमत चुकाना पड़ा था।

पाकिस्तानी क्षेत्र से आ रहे भारतीय शरणार्थियों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए शरणार्थी शिविरों का निर्माण किया गया और प्रभावित क्षेत्रों में व्यवस्था को बहाल करवया। फिर उन शरणार्थियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था की गई।

भारत का एकीकरण

आजादी के बाद पटेल जी और उनके सचिव बीपी मेनन ने विखरी हुई रियासतों को शांतिपूर्वक भारत में विलय करवाया। किन्तु जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद भारत में मिलने से इनकार कर दिया तो पटेल जी अपनी कुशलता का परिचय देते हुए उसे भी भारत में विलय करवाया।

आजादी के बाद पटेल जी और उनके सचिव बीपी मेनन ने 565 देशी रियासतों को शांतिपूर्वक भारत में विलय करवाया। हालाँकि जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद भारत में मिलने से इनकार कर दिया किन्तु पटेल जी अपनी कुशलता का परिचय देते हुए उसे भी भारत में विलय करवाया।

पटेल जी के भारत एकीकरण के प्रयासों को सम्मान देने के लिए वर्ष 2014 को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में नामित किया गया। 31 अक्टूबर 2018 को 182 मीटर विश्व के सबसे ऊँची प्रतिमा ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’ पटेल जी को समर्पित है। 

संविधान के निर्माण में भूमिका

भारत के संविधान सभा में वरिष्ठ सदस्य होने के नाते सरदार पटेल (sardar vallabhbhai patel) संविधान को आकार देने वाले प्रमुख नेताओं में से एक थे।वे मौलिक अधिकारों पर सलाहकार समिति, अल्पसंख्यकों और जनजातीय व बहिष्कृत क्षेत्रों पर समिति, प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष थें।

तत्कालीन परस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने छुआछुत के उन्मूलन पर बल दिया उनका मानना था कि इसमें कोई संशोधन नहीं होना चाहिए।

अखिल भारतीय सेवा

आजाद भारत में सरदार पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय सिविल सेवाओं के महत्व को बखूबी समझा और भारतीय संघ के लिए उनकी निरंतरता को आवश्यक बताया। भारत के आवश्यकता के अनुसार उन्होंने आईसीएस (ICS) से आईएएस (IAS) को और आईपी (IP) से आईपीएस (IPS) में परिवर्तित किया।

भारत की आधुनिक सिविल सेवाओं की स्थापना में उनकी भूमिका के लिए उन्हें “सिविल सेवाओं का संरक्षक संत” भी कहा जाता है उन्होंने प्रसिद्ध रूप से सेवाओं को देश की सरकारी मशीनरी का स्टील फ्रेम कहा है।

अंतिम दिनों में

आजादी के लगभग 3 साल बाद 75 वर्ष की आयु में, 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई के बिडला हाउस में दिल का दौरा पड़ने से पटेल जी का निधन हो गया। मरणोपरांत वर्ष 1991 को उन्हें भारत के सर्वोच्य नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। साल 2014 से पटेल जी की जयंती यानी 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।  

निष्कर्ष के रूप में

देखा जाए तो सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महान हस्ती थे जिनके दृढ़ शक्ति,  त्वरित निर्णय लेने की क्षमता, राष्ट्रीय गौरव की भावना और कुशल वाक्पटुता उनके मजबूत और ठोस व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम थे। जो उन्हें अन्य नेताओं से विशिष्ट बनाते हैं सरदार पटेल (sardar vallabhbhai patel) ने गांधीवादी आंदोलन में जीवंत भूमिका निभाते हुए आजाद भारत के एकीकरण में अखंडता बनाए रखने में सर्वोपरि योगदान दिया जिसके बाद इतिहासकारों और जीवनीकारों ने उन्हें बिस्मार्क ऑफ इंडिया की संज्ञा दी।

FAQ Section :

सरदार पटेल की मृत्यु कैसे हुई?

आजादी के लगभग 3 साल बाद 75 वर्ष की आयु में, 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई के बिडला हाउस में दिल का दौरा पड़ने से पटेल जी का निधन हो गया।

सरदार वल्लभभाई पटेल का नारा?

पटेल जी ने “कर मत दो” का नारा दिया यह नारा वर्ष 1918 में हुए खेड़ा आन्दोलन के दौरान दिया था।

सरदार वल्लब भाई पटेल जी के माता पिता का नाम?

31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद जन्मे पटेल जी, झावेरभाई पटेल और लाडबा देवी की चौथी संतान थें। इनके पिता झावेरभाई पटेल रानी लक्ष्मीबाई के सेना में सैनिक थें।

सरदार पटेल जयंती कब मनाया जाता है?

साल 2014 से पटेल जी की जयंती यानी की 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

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