इस संथाल विद्रोह (santhal vidroh) जिसे क्षेत्रीय तौर पर ‘संथाल हूल’ के नाम से जाना जाता है। झारखंड के इतिहास में होने वाले सभी जनजातिये आंदोलनों में संभवत सबसे व्यापक और प्रभावशाली विद्रोह था। जो वर्तमान झारखंड के पूर्वी क्षेत्र जिसे संथाल परगना (भागलपुर और राजमहल पहाड़ियों के आसपास के क्षेत्र) में वर्ष 1855-56 में हुआ था।
संथाल विद्रोह के कारण (Santhal Vidroh)
यह स्थल संथालों के मूल निवास था। संथालों के विद्रोह करने के पीछे मुख्य कारण था की साहूकार और अंग्रेजी प्रशासन दोनों ही उनका शोषण करते थें। संथाल जनजाति के लोग जबब इनसे ऋण लेते थें उन ऋण पर इनलोगों से 50% से लेकर 500% तक ब्याज बसुलते थें और भी कई तरीके से शोसन किया जाता था। अब क्योंकि ये जनजाति पढ़े-लिखे नहीं होते थें तो शाजिस के जरिये इनका जमीने भी हड़प लेते थें और जब भी ऐसी शिकायत लेकर पुलिस-प्रशासन के पास जाते तो भी उन्हें निराशा ही हाथ लगती। इतना ही नही बल्कि जबरन उनसे काम भी करवाते थें। यही सब तात्कालिक कारण रहे जिसने संथाल विद्रोह (santhal vidroh) को जन्म दिया।
अत्याचारों से तंग आकर संथालों ने पहले दरोगा महेश लाल दत्त और प्रताप नारायण की हत्या कर दी इस हत्या के साथ ही विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी। 30 जून 1855 को 400 गाँवों के लगभग 6000 आदिवासियों ने एक सभा की। इसी सभा में सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव नाम के चार भाई तथा फूलो और झानों नाम की दो बहनों के नेतृत्व में यह घोषणा किया की विदेशों के राज्य को समाप्त कर सतयुग राज्य स्थापित करने के लिए विद्रोह किया जाए।
इसी विद्रोह के दौरान सिद्धू और कान्हू ने घोषणा किया की भगवान् ने उन्हें निर्देश दिया है की “आजादी के लिए हथियार उठा लो”
विभिन्न संस्थानों पर हमला
विद्रोह कर रहे लोगों ने सिद्धू को राजा, कान्हू को मंत्री, चाँद को प्रशासक और भैरव को सेनापति घोषित किया। लोगों ने ब्रिटिश दफ्तरों एवं संस्थानों, डाकघरों और अन्य सभी संस्थानों पर हमला करना शुरू कर दिया । संथालों का विद्रोह इतना आक्रमण था की भागलपुर और राजमहल के बीच सभी सरकारी सेवाएँ तुरंत ही ठप्प हो गई।
अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए उन सभी क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगा दिया और साथ ही मेजर बरो के नेतृत्व में सेना की 10 टुकड़ियाँ भी भेजी लेकिन विद्रोह कर रहे लोगों ने मेजर बरो को हरा दिया। विद्रोह दबाने की अंग्रेजों की यह कोशिस नाकाम रहने के बाद अंग्रेजों ने विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए 10 रुपये के इनाम की घोषणा की।
समाप्ति
घोषणा के बाद सिद्धू को गिरफ्तार कर 5 दिसम्बर को फांसी दे दी वहीँ चाँद और भैरव पुलिस की गोली से शहीद हो गये अंततः कान्हू को भी गिरफ्तार कर लिया गया और 23 फरवरी 1856 को फांसी दे दी गई। कान्हू के साथ ही संथाल विद्रोह (santhal vidroh) का अंत हो गया। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को भले ही दबा दिया था किन्तु इस विद्रोह ने आदिवासियों को जागरूक करने का कार्य किया।
सरकार ने संथाल लोगों के लिए एक अलग संथाल परगना बनाकर शांति स्थापित किया और बाहरी लोगों के प्रवेश और उनके गतिविधियों को नियंत्रित किया गया।
कार्ल मार्क्स ने इस विद्रोह को भारत की प्रथम जनक्रांति की संज्ञा दी इसकी चर्चा उन्होंने अपने पुस्तक द कैपिटल में किया है।
FAQ Section :
झारखंड के पूर्वी क्षेत्र जिसे संथाल परगना (भागलपुर और राजमहल पहाड़ियों के आसपास के क्षेत्र) में
वर्ष 1855-56 को
सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में वर्ष 1855-56 को
सिन्धु और कान्हू के नेतृत्व में (सिद्धू को राजा, कान्हू को मंत्री, चाँद को प्रशासक और भैरव को सेनापति घोषित किया)
अंग्रेजों, जमींदारों और साहूकारों द्वारा आर्थिक रूप से शोषण ने इस विद्रोह को जन्म दिया दिया विद्रोह के अंत होने के बाद संथालों के मांगों को स्वीकार किया गया।
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