पुर्तगालियों का भारत आगमन : Purtgaliyo Ka Bharat Aagaman

Purtgaliyo Ka Bharat Aagaman : वास्कोडिगामा 17 मई 1498 ई० में भारत के कालीकट नामक स्थान पर कप्पकडाबु नामक बंदरगाह पर पहुँचा, तो वहाँ के स्थानीय राजा जमोरिन ने भव्य स्वागत किया जबकि अरब व्यापारियों ने पुर्तगालियों का विरोध किया उस समय पुर्तगाल पर एमैनुएल प्रथम का शासन था।

Purtgaliyo Ka Bharat Aagaman

इसके साथ ही वास्कोडिगामा जल मार्ग से भारत आनेवाला पहला यूरोपीय व पुर्तगाली नाविक था, वास्कोडिगामा प्रिन्स हेनरिक के प्रतिनिधि के रूप में भारत आया था।

वास्कोडिगामा के वापसी पर जमोरिन ने मसाले और जडीबुटी दिए जिसे यूरोप में बेचा तो लगभग 60 गुना लाभा हुआ जिससे प्रोत्साहित होकर बाद में और भी पुर्तगाली व्यापारियों को प्रोत्साहन मिला।

सन 1500 ई० में पेट्रो अल्वा कैब्राल दूसरा पुर्तगाली व्यापारी था जिसने 13 जहाजी बड़ों के साथ भारत और वास्कोडिगामा का जो विरोध किया गया था, इस कारण सबसे अरबों को पराजित किया। साथ ही कोच्ची  तथा केन्नौर जैसे क्षेत्रिय शासकों के साथ मित्रता कर अपने व्यापारिक जड़ों को मजबूत किया।

पेट्रो अल्वा कैब्राल वापस लौटकर पुर्तगाल के राजा एमैनुएल प्रथम को बताया की भारत में वहाँ के क्षेत्रिय शासकों के बीच मतभेद है, जिसका लाभ उठाकर उन क्षेत्रों पर अधिकार किया जा सकता हैं।

पुर्तगाल की नीति

वास्कोडिगामा 1502 ई० में दूसरी बार व्यापारी के रूप में तथा 1524 में तीसरी बार वायसराय के रूप में भारत आया किन्तु किसी कारण के जल्द ही इसकी मृत्यु हो गयी और इसे कोच्ची  में दफना दिया गया।

1503 ई० में कोच्ची  में पहली तथा 1505 ई० में कन्नूर में दूसरी पुर्तगाली फैक्ट्री स्थापित किया गया। व्यापार को बढ़ावा देने के लिए 1505 ई० में एक नीति बनाई गई, जिस नीति के तहत 3 वर्षो के लिए गवर्नर को नियुक्त किया गया।

फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505 से 1509)

दक्षिण पक्षिम एशिया में अपने व्यापार को सुरक्षित रखना अल्मीडा का मुख्य उद्देश्य था। इसके लिए इन्होने Blue water Policy (शांत जल की नीति) को अपनाया।

इस नीति के तहत अल्मीडा में केवल तटीय भागों में बस्तियाँ बसाई ताकि व्यापार पर उसका एकाधिकार बना रहे भारत के आन्तरिक भागों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था।

भारत में प्रथम पुर्तगाली राज्य स्थापित करने का श्रेय अल्मीडा को दिया जाता है, इन्ही के कार्यकाल में 1505 ई० में तीन पुर्तगाली दुर्ग अंजडीवा, कन्नूर और किलवा भारत में स्थापित हुआ।  

कार्यकाल के अंतिम समय 1509 ई० में चौल या चाउल के युद्ध में गुजरात, मिस्र तथा तुर्क के संजुक्त शक्ति को पराजित कर दमन पर अधिकार कर लिया और हिन्द महासागर का शक्तिशाली नौसेना बन गया और हिन्द महासागर का नाम बदलकर पुर्तगाली सागार रख दिया।

अल्फ़ान्सो दी अल्बुकर्क (1509 से 1515)

अल्बुकर्क 1503 ई० में एक जहाजी बड़े के नायक के रूप में भारत आया, इसी के द्वारा 1503 ई० में कोच्ची  ने पुर्तगाली दुर्ग बनवाया गया था उस समय गवर्नर नहीं था।

अल्बुकर्क 1509 ई० में गवर्नर बना और 1510 ई० में बीजापुर के शासक आदिलशाह से गोवा छिना जो बाद में पुर्तगालियों का गढ़ बना।

1511 ई० में मलक्का तथा 1515 ई० में होर्मुज बंदरगाह (फारस की खाड़ी) पर अधिकार कर लिए। इन्ही सब कार्यों के कारण अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली राज्य स्थापत्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

उद्देश्य – भारत में अपने स्थाई आबादी को बसाने के लिए लोगों को भारतीय महिलायों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया व अपने क्षेत्रों में सती प्रथा को बंद कर दिया। सती प्रथा को बंद किये जाने के कारण अल्बुकर्क को ‘राजा राम मोहन राय’ का पूर्वगामी कहा जाता है।

अल्बुकर्क ने अपनी सेना में भारतियों को सामिल किया किन्तु अरबों (मुसलमानों) को प्रताड़ित किया।

निनो डी कुन्हा (1529 से 1538)

1530 ई० में मुख्य शासन केन्द्र गोवा स्थान्तरित कर दिया जोकि पहले कोच्ची हुआ करता था।

इसने भी मुग़ल शासक हुमायूँ और गुजरात शासक बहादुर शाह के बीच के संघर्ष का लाभ उठाकर 1534 ई० में ‘बेसिन’ तथा 1535 ई० में ‘दीव’ पर अधिकार कर लिया।

गार्सिय द नरोन्ह (1538 ईस्वी)

इसने दमन, साल्सेट, चौल, बम्बई, मद्रास, सेंत थामस, हुवली में भी आना केंद्र स्थापित किया तथा सीलोन (श्रीलंका) के अधिकांस भागों पर भी अधिकार कर लिया।

सिमटता सम्राज्य

1641 ई० में डच और पुर्तगाल के बीच सघर्ष हुआ जिसमे पुर्तगाल बुरी तरह से पराजित हुआ उअर मलक्का का नियंत्रण डचों के हाथों में चला गया।

इसी प्रकार 1658 ई० में सीलोन (श्रीलंका) 1663 में मालाबार का नियंत्रण भी डचों के हाथों में चला गया।

1612 ई० में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों से सूरत को छिना और वहाँ अपनी पहले फैक्ट्री स्थापित की। 1622 ई० में फारस की सहायता से हर्मुज पर भी अंग्रोजों ने विजय प्राप्त कर लिया।

हुबली डाकुओं का केन्द्र बन चूका था जहाँ पुर्तगालियों द्वारा लुटे गए जहाज़ों को रखा जाता था, लेकिन 1632 ई० में शाहजहाँ के आदेश पर सिपहसलार कासिम खान ने हुवली पुर्तगालियों में मुक्त करा लिया, बाद में औरंगजेब में सभी पुर्तगाली लुटेरों को वहाँ से सफाया कर दिया।

1639 ई० मराठों पुर्तगालियों को हराकर साल्सेट और बसीन पर अधिकार कर लिया।

पुनः प्रयास 

पुर्तगालियों ने अपनी सत्ता को पुनः मजबूत करने के लिए 1661 ई० में पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन ब्रैगांज का विवाह तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय से किया। और बम्बई को दहेज़ के रूप में दिया।

कार्टज-आर्मेडा-काफिला व्यवस्था

हिन्द महासागर में पुनः नियंत्रण पाने के लिए इस व्यवस्था को लागु किया जिसके तहत बिना अनुमति के कोई भी अरब सागर में नहीं जा सकता है। भारतीय और अरबी जहाजों को काली मिर्च और गोला बारूद ले जाने की अनुमति नहीं थी

पुर्तगाली स्वंय जो सागर स्वामी कहते थे, जहाजों को समुद्री डाकुओं से रक्षा करने के लिए ‘काफिला व्यवस्था’ थी।

मुख्य उद्देश्य

अरबों और वेनिश के व्यापारियों को हिन्द महासागर से भागना

इसाई धर्म का प्रचार करना

1540 ई० में गोवा, 1573 में बसीन तथा 1587 व 1588 ई० में साल्सेट में मंदिरों को तोडा गया। इसाई धर्म का विरोध करने वाले को दण्ड देने के लिए 1560 में इसाई न्यालय बनाया गया। अर्थात पुर्तगाली धार्मिक रूप पसे असहिष्णु थे और डकैती व लूटपाट इनके व्यापार का ही मुख्य हिस्सा था। इस कारण वे भारत के अलोकप्रिय हो गए जोकि भारत के पुर्तगालियों के पातन का कारण बना।

पतन

इस समय तक 50 से आधिक दुर्ग तथा 100 से अधिक जहाजी बड़े मौजूद था किन्तु अपने साम्राज्य को लम्बे समय तक सुरक्षित नहीं रख सका जिसके कई कारण थे।

योग्य शासक का अब आभाव, भ्रष्ट प्रशासन, स्पेन द्वारा पुर्तगाल का विलय, दोषपूर्ण व्यापारिक प्रणाली, धार्मिक व वैवाहिक नीति मुगलों का विस्तार डच और अंग्रेजों का उदय आदि।

प्रभाव

1556 ई० में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना किया गया तथा भारतीय औषधि व वनस्पति पर प्रथम पुस्तक 1563 ई० में गोवा से प्रकाशित हुई।

मुगफली, अमरुद, आलू, पपीता, बादाम, लीची, संतरा, अन्नानास, काजू मक्का (मक्सिको से) और तम्बाकू (मध्य अमेरिका से) को भारत में उगाना प्रारंभ किया।

अरबों और तुर्कों से सबसे पहले संघर्ष और बल के आधार पर साम्राज्य का विस्तार किया जिसका सर्वाधिक शिकार अरब लोग हुए

  • भारतीय संसाधनों को दोहन करने वाली पहली व्यापारिक शक्ति थी
  • जापान के साथ व्यापर प्रारंभ किया
  • समुद्री गतिविधियों में राजनाति को सामविष्ट किया
  • जहाज निर्माण का प्रारंभ हुआ
  • अधिक संख्या से मिशिनरी भारत आये और तेर्जी से धर्मांतरण कराया गया।
अन्य तथ्य
  • दमन पर 1559 ई० में अधिकार किया।
  • इनके कम्पनी को ‘एस्तादो द इण्डिया’ कहा जाता है।
  • अंग्रेज 1599 ई० में और डच 1602 ई० में भारत आये।
  • इंडोनेशिया को मसाला आईलैंड कहा जाता था।

विशाल साम्राज्य होने के कारण तीन गवर्नर नियुक्त किये जाते थे अरब सागर और उसके आस पास के क्षेत्रो के लिए मोरक्को, इंडोनेशिया और पूर्वी भाग के लिए सुमात्र तथा भारतीय क्षेत्रों के लिए गोवा शासन का मुख्य केन्द्र था।

1580 ई० में स्पेन शासक फिलिप ने पुर्तगाल को स्पेन में विलय कर उनकी स्वतंत्रता को समाप्त कर दी। 1640 ई० तक दोनों संयुक्त रूप से रहें फिर बाद में स्वतंत्र हो गया।

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