पल्लव वंश का इतिहास : Pallav vansh

पल्लव वंश (pallav vansh) की स्थापना सिहविष्णु ने 575 ई० में किया और 600 ई० तक शासन किया। पल्लवों की राजधानी काँची थी।

शासक   शासनकाल
सिंहविष्णु(575 से 600 ई०)
महेंद्र वर्मन-1(600 से 630 ई०)
नरसिंह वर्मन-1(630 से 668 ई०)
महेंद्र वर्मन-2(668 से 670 ई०)
परमेश्वर वर्मन-1(670 से 695 ई०)
नरसिंह वर्मन -2(695 से 720 ई०)
परमेश्वर वर्मन-2(720 से 730 ई०)
नन्दिवर्मन-2 यहाँ से पल्लव वंश के सहयोग रहे भीम वंश के लोग शासन करते है।(730 से 795 ई०) भीम वंश
दंतिवर्मन(795 से 847 ई०)
नन्दिवर्मन-3(847 से 872 ई०)
नृपतंग वर्मन(872 से 882 ई०)
अपराजिता वर्मन(882 से 897 ई०)

सिंह विष्णु (Pallav vansh)

सिंह विष्णु पल्लव वंश (pallav vansh) का प्रतापी राजा था इसलिये इसे पल्लवों का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। अपने शासनकाल में दौरान इसने कलभ्र, चेर, चोल और पाण्ड्य शासकों को युद्ध में पराजित किया जिसकी जनकारी वैलूर के पालैयम ताम्रपत्र से प्राप्त हुई है।

सिंह विष्णु वैष्णव धर्म को मानता था इसने मामल्ल्पुरम में वाराहगुहा मंदिर का निर्माण करवाया था।

संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध कवि भारवि इन्ही के दरवार में रहते थे, भारवी के द्वारा किरातार्जुनीय की रचना किया गया है।

महेंद्र वर्मन-1

इसके शासनकाल के दौरान पल्लवों और चालुक्यों के बीच संघर्ष होना आरम्भ होने लगा।

चालुक्य नरेश पुलकेशन-2 ने महेंद्र वर्मन-1 को युद्ध में पराजित किया और कुछ क्षेत्रों पर पुलकेशन-2 ने अधिकार कर लिया लेकिन पुल्ल्लुर के युद्ध में महेंद्र वर्मन चालुक्यों को पराजित किया और उत्तरी भाग को छोड़कर शेष भाग पर पुनः वापस ले लिया।

महेंद्र वर्मन-1 पहले जैन मतावलंबी था किन्तु अप्पर के प्रभाव से उसने शैव धर्म को अपना लिया

महेंद्र वर्मन-1 को मंदिर निर्माण की महेंद्र शैली का जनक माना जाता है इस शैली में गुहा मंदिर, मक्कोडा मंदिर, अनंतेश्वर मंदिर आदि का निर्माण किया गया है।

महेंद्र वर्मन-1 मत्तविलास प्रहसन नामक एक हास्य ग्रन्थ की रचना किए थे इसलिए इन्होने मतविलास की उपाधि धारण किया।  इसके अलावे गुनभर, शत्रुमल्ल, लिलतान्कुर जैसी उपाधियाँ धारण किए।

नरसिंह वर्मन-1

यह 630 ई० में राजा बना यह पल्लव वंश (pallav vansh) का सबसे प्रतापी राजा था इसने तीन बार चालुक्य राजा पुलेकेशन-2 को पराजित किया।

इस सफलता से उत्साहित होकर नरसिंह वर्मन-1 ने 642 ई० में चालुक्य शासक पुलकेशन-2 के साथ युद्ध किया और चालुक्य की राजधानी वातपी पर अधिकार कर लिया। इस उपलक्ष्य में वात्पिकोंड की उपाधि धारण की, इसी युद्ध में पुलकेशन-2 मी मृत्यु हो जाती है।

नरसिंह वर्मन-1 के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांचीपुरम की यात्रा पर आया था।

मंदिर निर्माण

इन्होने धर्मराज मंदिर, सात पेरू मंदिर तथा एकाश्मक रथ मंदिर का निर्माण करवाया इन्हें सप्तगौढा भी कहा जाता है। इसके अलावे महाम्ल्लपुरम (वर्तमान – महावालिपुरम) नामक नगर वसाया।

महेंद्र वर्मन-2

इन्होने 668 से 670तक शासन किया इन दो वर्षो के कार्यकाल में चालुक्यों के साथ संघर्ष चलता रहा। चालुक्य शासक विक्रादित्य-1 के साथ युद्ध में महेंद्र वर्मन-2 की मृत्यु हो गया।

परमेश्वर वर्मन

इसके शासनकाल के दौरान भी चालुक्यों के साथ संघर्ष चलता रहा लेकिन कोई एसी महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई। इसने एकमल्ल, लोक्दित्यु, तथा गुनाभाजन की उपाधि धारण किया

नरसिंह वर्मन-2

इसका शासनकाल शांतिपूर्ण रहा, इसने राजसिंह, अगमप्रय तथा शंकर भक्त की उपाधि धारण किया।

इसे मंदिर निर्माण के राजसिंह शैली का जनक माना जाता है।
इसने काँची के कैलाशनाथ मंदिर, एरावतेश्वर मंदिर, बैकुंठ पेरूमल मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अलावे काँची में संस्कृत महाविद्यालय बनवाया।

संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध कवि दांडी इसी के दरवार में रहते थे। इन्होने दशकुमार चरित की रचना किए थे।

720 ई० अपना एक प्रतिनिधित्व मंडल चीन भेजा था।

परमेश्वर वर्मन-2

परमेश्वर वर्मन-2 ने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य-2 के अपमानजनक संधि प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया अतः विक्रमादित्य-2 ने गंग वंश के सहयोग से परमेश्वर वर्मन-2 की हत्या कर दिया।

हत्या के पश्चात कोई योग्य शासक नहीं होने के कारण चालुक्यों ने पल्लव वंश की राजधानी काँची पर अधिकार कर लिया।

पल्लव वंश इसी के साथ समाप्त हो जाता है लेकिन पल्लव के सहयोग रहे भीम वंश के कारण पल्लव वंश का क्रम आगे भी चलता रहता है लेकिन शासन भीम वंश के लोग करते है। अतः पल्लव वंश का अंतिम शासक के रूप में अपराजित वर्मन को कहा जाता है।

नन्दिवर्मन-2

परमेश्वर वर्मन-2 की हत्या के बाद सत्ता के लिए गृहयुद्ध छिड़ गया उस परिस्थिति में पल्लव के सहयोग, भीम वंश के शासक नन्दिवर्मन-2 सत्ता संभाली और काँची को चालुक्यों से मुक्त कराया।

लेकिन 750 ई० में राष्ट्रकूट वंश के शासक दन्तिदुर्ग ने नन्दिवर्मन-2 पर आक्रमण कर हरा दिया। युद्ध के बाद एक संधि हुई, इस संधि के अनुसार नन्दिवर्मन-2 का विवाह दन्तिदुर्ग की पुत्री रेवा से हुआ।

इसने काँची के मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।

दंतिवर्मन

यह नन्दिवर्मन-2 तथा दन्तिदुर्ग की पुत्री रेवा का पुत्र था। प्रसिद्ध दार्शनिक शंकराचार्य इसी के समकालीन थे।

नन्दिवर्मन-3

इसने पल्लवों की खोई हुए शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए पाड्यों के साथ युद्ध कर पराजित किया।

इसका विवाह राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष की पुत्री शंखा से हुआ।

नृपतंग वर्मन

इसने पांड्य नरेश वरगुण-2 को युद्ध में पराजित किया।

अपराजित वर्मन

यह अयोग्य और कमजोर व अंतिम शासक था। इसी का लाभ उठाकर चोल शासक आदित्य-1 ने नृपतंग वर्मन की हत्या कर दिया और पल्लव वंश के क्षेत्र को अपने चोल साम्राज्य में मिला लिया।

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