नन्द वंश का इतिहास – Nand Vansh

शिशुनाग वंश के पतन के बाद 344 ईसा पूर्व में महापद्म्नंद ने चौथी और पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में मगध पर नन्द वंश (nand vansh) की स्थापना किया।

नन्द वंश (Nand Vansh)

महापद्म्नंद एक योग्य और शक्तिशाली शासक था और इसने अपनी सीमाओं का विस्तार कर पहली बार गंगा नदी के मैदानी भागों के पार पहुँचा दिया।

नन्दों के शासनकाल में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सैन्य संम्पन्नता अपने चरम पर था।

  • 2 लाख से अधिक पैदल सेना
  • 80 हजार अश्वरोही सैनिक
  • 8 हजार संग्राम रथ
  • 6 हजार हाथी

जिसकी सहायता से महापद्म्नंद ने बहुत बड़ी विजय प्राप्त की और आस पास के साम्राज्यों नामों निसान तक मिटा दिया था। इस कारण पुराणों में सर्वक्षत्रांक अथवा दूसरा परशुराम कहा गया है। इसके अलावे महापद्म्नंद को ‘एकराट’ भी कहा गया है।

महापद्म्नंद ने भारत के सभी 16 महाजनपदों काशी, कौशल, मल्ल, चेदी, वज्जी, अंग, वत्स, गंधार, कम्बोज, पंचाल, शूरसेन, अश्मक, अवन्ती, कुरु एवं कलिंग इन 15 महाजपदों को जीतकर लिया और एक खुद मगध जहाँ की महापद्म्नंद शासन कर रहा था सभी को सुसंगठित कर प्रथम बार केन्द्रीय प्रशासन की नींव डाली जोकि आधुनिक शासन पद्धति में भी दिखाई देता था इसीलिए सम्राट महापद्म्नंद मो केन्द्रीय शासन पद्धति का जनक माना जाता है।

कलिंग को जितने के बाद कलिंग में ‘तनसुली’ नहरों का निर्माण करवाय जिसका प्रमाण हाथिगुफा अभिलेख में मिलता है। बतादें की हथिगुफा अभिलेख का निर्माण कलिंग नरेश खारवेल के द्वारा करवाया गया था।

यह साम्राज्य किसी स्वंतंत्र राज्यों व सामंतों का संघ ना होकर बल्कि एक शक्तिशाली शासक के सामने नतमस्तक होते थे। यह एक छत्रछाया में एक अखण्ड राजतंत्र था जिसके पास अपार सैन्यबल और धन था।

महापद्म्म नन्द जैन धर्म का अनुयायी था और इसने कलिंग को जीतकर वहाँ से जिनसेन (जैन धर्म) की मूर्ति मगध ले आया।

महाप्द्म्नंद के प्रमुख उतराधिकारी – उग्रसेन, पंडुक, पांडूगति, भूतपाल, राष्ट्पाल, योविषानक, दशासिद्धक, कैवर्त और घनानन्द 

घनानन्द

घनानन्द सम्राट महापद्म्नंद के पहली पत्नी महानंदिनी का पुत्र था। घनानन्द जब युवराज था तभी वह अनेकों शक्तिशाली राजाओं को मगध साम्राज्य में मिला लिया था।

घनानन्द 326 ईसा पूर्व में घनानन्द नन्द मगध का राजा बना यह शक्तिशाली और योग्य शासक था किन्तु भाई नंदराज और कैवर्त के मृत्यु के बाद शोकग्रस्त रहने लगा। पर फिर भी पूर्व में इसकी वीरता और मगध को शक्तिशाली होने के कारण सिकंदर चाहकर भी मगध पर आक्रमण नहीं किया।

नन्द वंश के पतन के कारण (Nand vansh ka Patan)

वैसे तो नन्द वंश के पतन के कई कारन है जैसे की घानानन्द जब भोग विलाश में डूबा रहा और प्रजा के ऊपर कर बड़ा दिया। जिससे लोगों में घानानन्द के प्रति असंतोष था साथी अपने साम्राज्य के ऊपर भी उतना ध्यान नहीं दिया। लेकिन जो सबसे प्रमुख कारण है की

कहा जाता है की घानानन्द के आसन ग्रहण करने से पहले ही आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त) ने बैठ गया इस बात से क्रोधित होकर घानानन्द ने आचार्य चाणक्य को भरी सभा में अपमान के वाहर निकाल दिया।

घानानन्द को इस अपमान की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी क्योंकी चाणक्य ने चन्द्रगुप्त की सहायता से अपनी चपल भरी नीति से नन्द का विनाश कर दिया अतः घानानन्द मौर्य वंश का अंतिम शासक रहा। उसके बाद मगध पर मौर्य वंश की स्थापना हुआ।

अन्य तथ्य

  • महापद्म्म नन्द एक अधिक शक्तिशाली और प्रभाबी शासक था अतः पुरानो में महापद्म्म नन्द को परशुराम का दूसरा अवतार बताया गया है।
  • बौद्ध ग्रन्थ महाबोधिवंश एवं अंगुत्तर निकाय से नन्द वंश (nand vansh) के अधिक प्रमाण मिलता है।
  • वायु पुराण के कुछ पांडुलिपियों के अनुसार नन्द वंश (nand vansh) के प्रथम शासक महापद्म्नंद ने 28 वर्षों तक शासन किया और उनके पुत्रों ने मात्र 12 वर्षों तक ही शासन किया।
  • बृहत्त्कथा के अनुसार नन्दों के शासनकाल में पाटलिपुत्र में लक्ष्मी और सरस्वती दोनों के निवास था अर्थात हर तरफ ज्ञान और समृधि थी।
  • यह नाई (न्यायी) जाति का होने का प्रमाण मिलता है।
  • महापद्म्नंद को भारत का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट होने का गौरव प्राप्त है।

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