मौर्य राजवंश : Maurya Vansh

Maurya Vansh : मौर्य वंश के बारे में जानकारी के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार का स्रोत्र मौजूद है।

साहित्यिक स्रोत्र में, अर्थशास्त्र, इंडिया, पुराण, मुद्राराक्षस, बौद्ध घर्म ग्रन्थ, जैन धर्म ग्रन्थ आदि तथा पुरातात्विक स्रोत्र में अभिलेख, स्तंभ, स्तूप, भवन, गुफा, आदि मौजूद है।

Maurya Vansh

मगध साम्राज्य एक शक्तिशाली साम्राज्य था और जब सिकंदर ने भारतीय क्षेत्र को जितने के उद्देश्य से भारत की ओर बढ़ रहता तो चाणक्य ने मगध के वर्तमान राजा घानानंद को बातया की भारत खतरे में है और उसे सुरक्षा दिया जाना चाहिए।

लेकिन घानानंद ने चाणक्य को अपमानित कर उसे बाहर निकाल दिया इसी बात से क्रोधित होकर चाणक्य ने निश्चय की घनानंद को राजगद्दी से हटाकर मगध को एक अच्छा राजा दिलाया गया।

इसी क्रम में चाणक्य का मुलाक़ात चन्द्रगुप्त से होता है चाणक्य ने चाद्र्गुप्त में बचपन से ही राजा बनने के गुण का अनुमान लगा लेता है और कषार्पण से 1000 में चन्द्रगुप्त को खरीद लेता है

खरीदने के बाद चन्द्रगुप्त को अपने साथ तक्षशिला ले जाता है जहाँ उसे राजनीति और युद्ध कौशल आदि सभी विद्यायों में निपुन्य किया जाता है।

यही चन्द्रगुप्त सिंकन्दर से मिलता है और चाद्र्गुप्त कुछ दिनों के लिए सिकंदर के सेना के रूप में कार्य भी करता है आगे चलकर सिकंदर की मृत्यु हो जाती है तथा उत्तरी सिन्धु घाटी में फिलिप द्वितीय की हत्या हो जाता है। इधर भारत के छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजाओं के बीच जो मतभेद रहता है।

चाणक्य की सहायता से इसी का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त सबसे पहले तक्षशिला और फिर अन्य छोटे-छोटे प्रदेशो पर अधिकार लेता है। और अपनी एक बड़ी सेना बनाता है 

इस सेना की मदद से अंतिम नन्द शासक घनानंद के विरुद्ध युद्ध किया और घानानंद को पराजित कर मगध पर मौर्य वंश (maurya vansh) की स्थापना किया।

चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupt Maurya)

मौर्य वंश (maurya vansh) की स्थापन चाद्र्गुप्त मौर्य ने 323-322 ईसा पूर्व में अपने गुरु चाणक्य की सहायत से किया और 298 ईसा पूर्व तक लगभग 25 वर्षो तक मगध पर शासन किया।

राजा बनने के बाद अपने गुरु चाणक्य को प्रधामंत्री बनाया। जोकि राजा के बाद सबसे प्रमुख पद होता था चाणक्य को कौटिल्य या विष्णुगुप्त भी कहा जाता है।

बौद्ध या जैन धर्म में चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय कुल का था जबकि मुद्राराक्षस, पुराण, ब्राहमण ग्रन्थ आदि में चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र बताया गया है। हालाँकि इसके कुल को लेकर स्पस्ट नहीं है।

चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सिकंदर के सेनापति रहे सेल्यूकस निकेटर के बीच 305 ईसा पूर्व में युद्ध हुआ जिसमे सेल्यूकस निकेटर पराजित हुआ। जिसका वर्णन एम्पियानास में किया गया है।

युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस निकेटर के मध्य एक संधि हुआ और संधि के नियम के अनुसार सेल्यूकस निकेटर ने चार प्रदेश काबुल, कंधार, हेरात और मकरान चन्द्रगुप्त मौर्य को सौप दिया।

सेल्यूकस निकेटर के पुत्री कार्नेलिया का विवाह चाद्र्गुप्त मौर्य के साथ हुआ। प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस निकेटर को 500 हाथी उपहार के रूप में दिया।

मगध का विस्तार बंगाल से पक्षिमी ईरान और अफानिस्तान तक और जम्मू-कश्मीर से लेकर कर्नाटक था। यह भारतवर्ष में पहलीवार था जब इतने बड़े क्षेत्र पर किसी एक राजवंश का शासन था अतः चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत के एकीकरण का पहला व्यक्ति के रूप में देखा जाता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य के सबसे बड़ी विशेषता था की यहाँ से व्यवस्थित एकीकरण और प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुआ, प्रशासनिक व्यवस्था में सबसे बड़ी विशेषता था की यहाँ केन्द्रीकरण था जहाँ राजा केंद्र में होता था।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में श्रावणवेलगोला (कर्नाटक) चला गया वहाँ उसने जैनी गुरु भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा लिया और जैन धर्म को अपना लिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म के संलेखन विधि (उपवास कर या भूखे रहकर प्राण देना) द्वारा अपना प्राण त्याग दिया।

जस्टिन और प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पास करीब 6 लाख सेना था जिसके मदद से पुरे भारतवर्ष के कई क्षेत्रों को जीतकर मगध में मिला लिया।

मेगास्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरवार में रहता था यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था मेगास्थनीज के द्वारा लिखी पुस्तक इंडिका ने मौर्य प्रशासन के बारे में जिक्र है।

यूनानी साहित्य में सेन्द्रोकोटस तथा एन्द्रोकोटस शब्द का प्रयोग चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए किया गया इसकी खोज सर्वप्रथम सर विलियम जोन्स के द्वारा किया गया।

बिन्दुसार

बिन्दुसार 298 ईसा पूर्व में मगध का राजा बना और करीब 273 ईसा पूर्व तक मगध का राजा रहा।

बिन्दुसार को अमित्रघात (शत्रु विनाशक) भी कहा जाता है जैन ग्रंथो में इसे सिंहसेन कहा गया है। जवकि वायु पुराण में भाद्र्सार (वासियार) कहा गया है।

बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ जिसे दबाने के लिए अपने पुत्र सुसीम को भेजा जोकि असफल रहा, उसके बाद अशोक को भेजा जिसने पूरी तरह से इस विद्रोह को दबा दिया। अशोक के इस सफलता के बाद इसे एक अच्छे राजा के रूप में देखे जाने लगा।

बिन्दुसार का संवंध सीरिया के शासक एंडीयोकस के साथ था जिससे सूखे अंजीर, मदिरा (शराव) और एक दार्शनिक की मांग किया था। एंडीयोकस ने सूखे अंजीर और मदिरा (शराव) भेजवाया था लेकिन दार्शनिक को नहीं एंडीयोकस के अनुसार दार्शनिक को भेजना परम्परा के विरुद्ध था।

मिस्र के राजा डॉल्फिन-2 फिलाडेस्फास ने डायनोसिस को राजदूत के रूप में बिन्दुसार के दरवार में भेजा था।

अशोक

अशोक 269 ईसा पूर्व में मगध का राजा बना और 232 ईसा पूर्व तक मगध का राजा रहा। नोट करने वाली बात है की बिन्दुसार की मृत्यु 273 ईसा पूर्व में हो जाता है और अशोक 269 ईसा पूर्व में राजा बनता है। इस बीच 4 वर्षो का अंतर है जिसे लेकर बौद्ध ग्रंथो के अनुसार कहा जाता है की इन 4 वर्षो में अशोक और उसके भाइयों के बीच संघर्ष चला इस संघर्ष में अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर दिया। हालाँकि सभी ग्रंह और इतिहासकार इस बाद से सहमत नहीं है।

अशोक राजा बानने से पहले अवन्ती क्षेत्र का राजपाल था। यह 41 वर्षो तक मगध पर शासन किया। अशोक का नाम अशोक मास्की और गुर्जारा अभिलेख से मिला है। पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है। अशोक अपने सुरक्षा और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए राजा बनाने के 9वें वर्ष बाद 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण करता है इस युद्ध में लाखों लोगो की जान गाया और अशोक रणभूमि में पहुँचा तो लोगो को विलाप करते देख उसका हिरदय परिवर्तन हो गया।

उसी समय अशोक ने यह घोषणा किया की आनेवाले समय भेरिघोष (युद्ध) की स्थान पर धम्यघोष (धर्म मार्ग) के नीति को अपनायुंगा।

इस युद्ध के पश्चात अशोक ने उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षुक से बौद्ध धर्म की दीक्षा लिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया।

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उसने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगा बौद्ध धर्म के आजिवकों को रहने के लिए बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं (कर्ज, चोपार, सुदामा तथा विश्व झोपडी) का निर्माण करवाया। तथा अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा।

इसके अतिरिक्त और भी कई कार्य किये जैसे की धर्म महामात्रों की नियुक्ति करना, शिलालेखों का निर्माण करना आदि जिससे की बौद्ध धर्म का प्रचार-परसार हो सके।

कुछ नोट्स – बौद्ध धर्म का सबसे अधिक विस्तार अशोक के शासनकाल में ही हुआ

कुणाल

यह 232 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 228 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा। यह अँधा था हालाँकि बचपन से नहीं था कहा जाता है की कुणाल के सौतेली माँ तिष्यरक्षिता ने इर्ष्या के कारण इनके आँखे निकलवा लिया था।

दशरथ

यह 228 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 224 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा। यह राजकीय शिलालेख जारी करनेवाले अंतिम मौर्य शासक था। दशरथ के मृत्यु होने के बाद चचेरे भाई सम्प्रति शासक बनता है।

सम्प्रति

यह 224 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 215 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा। यह कुणाल का पुत्र था। नाकि दशरथ का

शालिसुक

यह 215 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 202 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा। गार्गी संहिता के युग पुराण खंड में इसे अधर्मी और झगड़ालू शासक में रूप में वर्णित किया गया है।

देववर्मन

यह 202 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 195 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा।

शतधन्वन

यह 195 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 187 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा।

बृहद्र्थ

यह 187 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना और 185 ईसा पूर्व तक मगध का शासक रहा। इसकी हत्या इसी के सेनापति पुष्यमित्र ने 185 ईसा पूर्व में कर दिया और मगध पर शुंग वंश की स्थापना किया। इस प्रकार मगध पर 137 वर्षो तक मौर्य वंश (maurya vansh) का शासन रहा।

प्रमुख पुस्तक –

अर्थशास्त्र अर्थशास्त्र का संवंध राजनितिक विषय से है, इसकी रचना चाणक्य ने किया था चाणक्य को कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है।

इंडिकाइसकी पुस्तक की रचना यूनानी लेखक मेगास्थनीज ने किया था जोकि चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहता था।

मुद्राराक्षस इसकी रचना विशाखदत ने किया है इस पुस्तक में बताया गया है की चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के सहायता से किस प्रकार कुटिल रचना-रचकर घनान्द को पराजित कर मौर्य वंश (maurya vansh) की स्थापन किया।

FAQ Section :

मौर्य वंश की स्थापना किसने किया था?

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से मगध पर मौर्य वंश की स्थपाना की

मौर्य वंश का अंतिम शासक कौन था?

बृहद्र्थ मौर्य वंश का अंतिम शासक था जिसे इसी के सेनापति पुष्यमित्र ने 185 ईसा पूर्व में कर दिया और मगध पर शुंग वंश की स्थापना किया।

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