भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोक प्रतिनिधि किसी न किसी दल से संबर्द्ध होते हैं।
लोकतंत्र (loktantra par nibandh)
लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि सारे प्रतिनिधि जो राज्यसभा लोकसभा विधानसभाओं और विधान परिषदों में मनोनीत होकर या चुनकर जाए, वे दलगत एवं व्यक्तिगत संक्रमान्यताओं से ऊपर उठकर पूरे देश के बारे में सोचें पर भारत के वर्तमान राजनीति में कुछ दूसरा ही दृश्य दिखाई पड़ रहा है। राजनेताओं के अपने-अपने स्वार्थ की पूर्ति प्यारी है जानता नहीं।
राजनीति में अवसरवादिता
डॉक्टर श्रीमती राजेश जैन ने ठीक ही कहा है – भारत में सिद्धांत विहीन राजनीतिक का दौर अपनी चरम सीमा पर है। ऐसी स्थिति में इस देश का मतदाता आज बहुत भ्रांत है। वह अन्तद्वंद्व की स्थिति में है भारतीय दलीय व्यवस्था में अवसरवादिता के दर्शन होते हैं। समय का महत्त्व पर निबंध
यह अवसरवादिता राजनीतिक विकृति के रूप में उभरी है इसके चलते देश का विकास बाधित हुआ है। सभी दल विघटन एवं फुट के शिकार बने हैं एक दल की सदस्यता छोड़कर दूसरे दल की सदस्यता स्वीकार करने में राजनेताओं को अब थोड़े ही हिचकिचाहट होती है, अब राजनीतिक में संस्कार और आदर्श की बातें व्यर्थ हो गई है।
चुनावी हिंसा
चुनावी हिंसा ने तो भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। राजनीति में अपराधियों की पूछ बढ़ी है। भारतीय लोकतंत्र, राजनीतिक अपराधीकरण से आपराधिक राजनीतिककरण की ओर अग्रसर हुआ है, यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
सारे दलों में बाहुवालियों की पैठ बढ़ी है, राजनीतिक में धन कुबेरों का पिछले दरवाजे से प्रवेश हुआ है। संपूर्ण भारत में कुछ गिने-चुने ही नेता है जिनके चरित्र पर उंगली नहीं उठाई जा सकती बाकी सब के सब स्वार्थ के अंधकूप में पड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में भारत का लोकतंत्र पूर्णता: अंधकारमय दिखाई पड़ रहा है।
इसका कारण
भारत में लोकतंत्र के असफलता के पीछे शिक्षा का अभाव है। वर्ग विहीन समाज का अभाव है, आर्थिक विषमता, नैतिक गुना का अभाव है, प्रजातंत्र में विश्वास का अभाव है, सुसंगठित राजनीतिक दलों का अभाव है, क्षेत्रीय दलों की संख्या में वृद्धि, संगठित जनमत तथा निष्पक्ष समाचार पत्रों का अभाव आदि को प्रमुख कारकीय तत्वों के रूप में देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
इतना होने के बावजूद हमें भारत की लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराश होने की आवश्यकता नहीं है। भारत में लोकतंत्र के सुदृढ़ परंपरा रही है। भारत की जनता ने अपने निर्धनता और अशिक्षा के बावजूद अपनी राजनीतिक प्रौढ़ता का परिचय बार-बार दिया है। प्रजातंत्र में आए अवगुणों का इलाज उत्कृष्ट प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना से ही किया जा सकता है। इसके लिए जनता और राजनेता में संयम, धैर्य, संकल्प और दृष्टि की अपेक्षा है।