लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन परिचय : Lal Bahadur Shastri

सरलता और सादगी की मिसाल भारत दुसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री (lal bahadur shastri) जी का जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ पर अपनी निस्वार्थ सेवा भावना, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी जैसे गुणों के चलते एक अलग ही पहचान बनायी।

Lal Bahadur Shastri

शास्त्री जी एक ऐसे व्यक्ति हुए जो देश की आजादी से पूर्व और बाद में भी की सेवा में अपना योगदान दिया। विनम्र और दृढ इच्छशक्ति के धनी शास्त्री जी लोगों के बीच एक ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे, उन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण और भारत-पाक युद्ध के दौरान उठाये गए क़दमों ने भारत को विश्व पटल पर एक अलग ही पहचान दिलवाई।

इसके अलावे “जय जवान जय किसान” का नारा देकर ना केवल उन्होंने देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढाया वल्कि देश के अन्नदाताओं को भी आत्मबल दिया।

जन्म

ऐसे महान व्यक्तित्व वाले लाल बहादुर शास्त्री (lal bahadur shastri) जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय में स्थित रामनगर गाँव में हुआ था।

घर ने नन्हे के नाम से पुकारे जाने वाले शास्त्री जी का बचपन गरीबी और कष्टों में बिता वह जब डेढ़ वर्ष के थें तभी उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीनिवास्तव जोकि प्राथमिक स्कुल में शिक्षक के पद थे का निधन हो गया। इस कारण उनकी माता रामदुलारी तीनों बच्चों के साथ पिता हजारीलाल के घर आकर मिर्जापुर में ही रहने लगी।

विवाह

वर्ष 1928 में मिर्जपुर में ही गणेश प्रसाद की बेटी ललिता से विवाह हुआ। शास्त्री जी के 6 संतानें थी जिसमे चार बेटे हरिकृष्ण, अनिल, औनिल और अशोक तथा दो बेटी कुसुम और सुमन थी।

शिक्षा

शास्त्री जी की शिक्षा ननिहाल से ही प्रारंभ हुआ पर ननिहाल में उनकी शिक्षा कुछ खास नहीं थी इसलिए उच्च शिक्षा के लिए उन्हें चाचा के साथ वाराणसी भेज दिया गया। वह अपने प्रारंभिक दिनों जहाँ एक ओर दुसरे स्कूली बच्चे नाव से नदी पार कर स्कुल जाते थें तो वहीँ शास्त्री जी पैसे के आभाव के कारन नदी तैर कर स्कुल जाते थें।

शास्त्री जी के आगे की पढाई हरीशचंद्र है स्कूल और फिर वाराणसी विद्यापीठ से संस्कृत में स्नातक की डिग्री प्राप्त की इसी विद्यापीठ में उन्हें “शास्त्री” की उपाधि प्रदान की जिसके बाद उन्होंने अपने नाम से श्रीवास्तव शब्द को हमेशा हमेशा हटाकर शास्त्री जोड़ लिए।

इसके अलावे इस वाराणसी विद्यापीठ से ही शास्त्री जी विद्वानों और राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आने के बाद भारत को विदेशी दस्ता से आजादी लिए देश के संघर्ष में अधिक रूचि लेने लगें।

स्नातक पूरी करने के बाद वह भारत सेवक संह से जुड़ गए और यहीं से मूल रूप से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत मानी जाती है।

Lal Bahadur Shastri का राजनीति में प्रवेश

महात्मा गाँधी जी के विचारों से प्रभावित शास्त्री जी 1920 के असहयोग आन्दोलन के दौरान वह केवल 16 साल के थें लेकिन महात्मा गाँधी की आवाहन पर उन्होंने पढाई को छोड़कर गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिए जिसके चलते वर्ष 1921 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

शास्त्री जी असहयोग आन्दोलन, दांडी मार्च और भारत छोडो आन्दोलन जैसे कई अभियानों जुड़े इस कारण उन्हें लगभग 7 वर्षों तक जेल में बिताना पड़ा इस संघर्ष ने उन्हें और भी परिपक्व बना दिया।

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जब गाँधी जी ने 8 अगस्त 1942 की रात को बम्बई से अंग्रेजों के लिए “भारत छोडो” और भारतियों के लिए “करो या मरो” का नारा दिया तो शास्त्री जी ने चतुराई से करो या मरो की जगह “मरो नहीं मारो” में बदल दिया। इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण 19 अगस्त 1942 शास्त्री जी को गिरफ्तार कर लिया। 

समय के पाबन्द

शास्त्री जी बड़े ही ईमानदार और समय के पावंद थें उनकी ईमानदारी पर टिप्पणी करते हुए राजनीतिक टिप्पणीकार डॉ संदीप शास्त्री ने अपनी पुस्तक “लाल बहादुर शास्त्री: पॉलिटिक्स एंड बियोंड” में यह खुलासा किया की एक बार जब उनकी बेटी “सुमन” गंभीर रूप से बीमार थी उस समय शास्त्री जी को 15 दिनों की छुट्टी मिली थी लेकिन दुर्भाग्वास उनकी छुट्टी समाप्त होने से पहले ही उनकी बेटी सुमन का निधन हो गया। तो वह तुरंत ही जेल वापस लौट गए।

छुट्टी ना बिताने के कारण में उन्होंने बताया की मुझे बेटी की देखभाल के लिए छुट्टी मिली थी और अब बेटी ही नहीं रही तो जेल वापस आना मेरा कर्तव्य है।

Lal Bahadur Shastri की ईमानदारी

सर्वश्रेष्ठ ऑफ़ इंडिया सोसाइटी जो देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब नेताओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती थी। इसी संगठन ने शास्त्री जी के घर खर्च के लिए 50 रुपये प्रतिमाह दिया करती थी। शास्त्री जी को जब इस बारे में पता चला की इसमें भी 10 रुपये बच जाता है तो उन्होंने ने इस संगठन को पत्र लिखकर कहा की मेरे घर का गुजरा 40 रुपये में हो जाता है अतः मेरी आर्थिक मदद घटाकर 40 रुपये कर दी जाए।

मंत्री

शास्त्री जी ब्रिटिश भारत के दौरान ही वर्ष 1937 के प्रांतीय विधान सभा चुनाव में अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश से जीत हासिल की और अपनी राजनीति के माध्यम से देश की दिशा और दशा को बदलने का प्रयास किया।

भारत की आजादी के बाद 1947 में गठित कांग्रेस की सरकार ने शास्त्री जी के महत्त्व को समझा और उन्हें उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल के मंत्री के रूप में शामिल किया।

वर्ष 1951 में वह कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने उसके बाद वह रेलवे एवं यातायात मंत्री बने किन्तु इसी समय 1955 में दक्षिण भारत के “अरियल” के समीप हुई रेल दुर्घटना से कई लोग हताहत हुए जिसके लिए वह स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए तुरंत ही रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 

इस दुर्घटना पर लम्बी बहस चला इस बहस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा –

“शायद मेरे लम्बाई में छोटे एवं विनम्र होने कारण लोगों को लगता है कि मै बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ यधपि शारीरिक रूप से मै मजबूर नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि मै आन्तरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ”

वर्ष 1957 में शास्त्री जी इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से दुबारा चुने गए और उन्हें पुनः यातायात विभाग दिया गया इसके साथ-साथ उन्हें उधोग और वाणिज्य विभागों का मंत्री भी बनाया गया।

वर्ष 1961 में उन्हें भारत के गृहमंत्री और ‘भ्रष्टाचार निरोधक समिति’ के लिए नियुक्त किया गया। इसी समय भारत-चीन युद्ध से सकते में आये नेहरु का साथ देने के लिए, शास्त्री जी को बिना विभाग के मंत्री के रूप में उन्हें मंत्रीमंडल में शालिम किया गया।

यहाँ शास्त्री जी ने देश की जनता से अपील करते हुए कहा कि –

“जब हमारी स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो तो पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्तव्य होता है हमें एकजुट होकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के दृढ़तापूर्वक तात्पर्य रहना चाहिए ताकि उस चुनौती का हम बेहतर तरीके से मुकाबला कर सके”

लाल बहादुर शास्त्री (lal bahadur shastri), लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित सर्वश्रेष्ठ ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के सदस्य बने जहाँ उन्होंने लोगों के उत्थान के लिए कई कार्य किया बाद में इस सोसाइटी के अध्यक्ष भी बने।

प्रधानमंत्री

27 मई 1964 को नेहरु के मृत्यु के बाद 9 जून 1964 को वह भारत के प्रधानमंत्री बने। वह ऐसे समय पर प्रधानमंत्री बने जब देश में भुखमरी के हालत थे और साथ में भारत-चीन युद्ध के कारण भारत के लोगों में आत्मविश्वास की कमी, इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए पाकिस्तान भी साल 1965 में भारत पर आक्रमण कर दिया।

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया जो और आगे चलकर राष्ट्रभक्ति की भावना का प्रतिक बन गया। जय जवान उन सैनिकों के लिए जो देश की सीमापर पाकिस्तान के साथ युद्ध कर रहे थें और जय किसान देश के अन्नदाताओं के लिए।   

इस नारे के पीछे शास्त्री जी का उद्देश्य एक ओर जहाँ देश की सैन्य शक्ति में वृद्धि करना तो वहीँ दूसरी और देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना था।

1965 के युद्ध के समय जब देश भूखमरी के दौर से गुजर रहा था तो उस समय शास्त्री जी ने लोगों से अपने घरों में ही गेहूँ और चावल उगाने का आग्रह किया वल्कि उन्होंने खुद भी अपने आवास पर अनाज उगाकर इस आन्दोलन की शुरुआत की।

उस दौरान शास्त्री जी के परिवारों ने भी एक वक्त का भोजन छोड़ने का विचार किया इसके बाद ऑल इंडिया रेडियो (AIR) पर प्रत्येक नागरिक से सप्ताह में एक बार भोजन ना करने का आवाहन किया।

खाद्दान संकट से निपटने के लिए शास्त्री जी के प्रयासों से ही देश में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड को स्थापित हुआ जिससे देश में श्वेत क्रांति को बढ़ावा मिला और भारत दुग्ध उत्पादन के मामले में अग्रणी देश बनकर उभरा।

इसके बाद अनाजो की कमी से निपटने के लिए इन्हीं के प्रयास से देश में हरित क्रांति आयी जिससे देश के किसान अब इतने अनाजों का उत्पादन करने लग गए की भारत जो पहले खाद्दनो का आयतक हुआ करता था वह एक निर्यातक देश बन कर उभरा।

भारत-पाक युद्ध के समय शास्त्री जी द्वरा दिया गया “जय जवान, जय किसान’ का नारा का ही परिणाम था की देश की सीमा पर भारतीय जवानों ने पाकिस्तान को हराकर उसे सबक सिखाया जिससे लोगों में आत्मविश्वास दुवारा लौटा आया।

पाकिस्तान की हार के बाद, सोवियत संघ की मध्यस्थता से ताशकंद में भारत – पाकिस्तान के बीच शांति समझौता हुआ। 10 जनवरी 1966 को पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान युद्ध समापन हेतु “ताशकंद घोषणापत्र” पर हस्ताक्षर किया। यहाँ तक सबकुछ सही था लेकिन 11 जनवरी को खबर आती है की शास्त्री जी अब इस दुनियाँ में नहीं रहें।

11 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनका निधन हो गया। उनका कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो किन्तु शास्त्री जी के राष्ट्रप्रेम की भावना, ईमानदारी और कार्यों के प्रती समर्पण के कारण 18 महीनो के छोटे से कार्यकाल में ही उन्होंने लोगों के बीच एक अलग ही पहचान बना लिए।

लाल बहादुर शास्त्री (lal bahadur shastri) को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी ने लिए मरणोपरांत 1966 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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