खुदीराम बोस का जीवन परिचय : Khudiram Bose

जिस उम्र में लोग मौज मस्ती करते है और नई-नई ख्वायिसे पालते है उस उम्र देश की स्वतंत्रता के खातिर फांसी के फंदे पर झूलने वाले देश के सबसे युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस (khudiram bose) का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम त्रिलोकनाथ बोस तथा माता का नाम लक्ष्मी प्रिया देवी था।

Khudiram Bose

उनका जीवन बचपन से ही संघर्ष भरा रहा वो जब मात्र 6 साल के ही थें तभी उनकी माता लक्ष्मी प्रिया देवी देहांत हो गया और 1 साल बाद यानी 7 साल उम्र में अपने पिता त्रिलोकनाथ बोस को भी खो दिया। उनकी तीन बहनों में बड़ी बहन हटगछा गांव में रहती थी उन्ही के देख-रेख में बोस ने अपनी स्कूली पढ़ाई की और बाद में उन्होंने पासके ही हैमिल्टन हाई स्कूल दाखिला लिया।

Khudiram Bose का बचपन

एक बार मिदनापुर में सार्वजनिक व्याख्यायों का आयोजन किया गया। जिसे अरविंदो और सिस्टर निवेदिता संबोधित कर रहे थे। उनके उस भाषण का खुदीराम बोस (khudiram bose) पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने वहीँ से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का मन बना लिया।

कुछ दिन बाद ही उन्होंने पढाई छोड़ दी और 15 वर्ष की आयु में ही स्वयंसेवक बन गए। इसके ठीक 1 साल बाद खुदीराम बोस (khudiram bose) पूरी तरह से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि वो क्रांतिकारी संगठन “अनुशीलन समिति” से जुड़े थें। यह वही संगठन है जिसने कई सारे भारतीय के मन में राष्ट्रवाद की भावना जगाया और अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए क्रांतिकारी हिंसा का रास्ता दिखाया।

Bose की पहली गिरफ्तारी

फरवरी 1906 जब मिदनापुर में एक औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी जिसे देखने के लिए आसपास के प्रान्तों से सैकड़ो लोग आने लगे। उस समय बंगाल के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी हुआ करते थें सत्येंद्र नाथ, जिनके द्वारा लिखे गए “सोनार बांग्ला” नामक पत्र जोकि राष्ट्रवाद से प्रेरित था। इसी पत्र की प्रतियाँ खुदीराम बोस, प्रदर्शनी में आये हुए लोगों को बाँट रहे थें।

पर्ची को बाटता देख एक पुलिस वाले ने उन्हें पकड़ने के लिए भागा किन्तु बोस ने उस सिपाही के मुंह पर जोर का एक तमाचा मारा और शेष पर्चियों को लेकर वहाँ से भाग गए हालाँकि बाद में उन्हें गिरफ्तार कर उनपर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया लेकिन गवाहों के आभाव में उन्हें छोड़ दिया गया, यह बोस की पहली गिरफ़्तारी थी।

इतिहासबेत्ता मालती मलिक के अनुसार, 28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन वहाँ से वह भाग निकले और लगभग 2 महीने के बाद अप्रैल में फिर से उन्हें पकड़ लिया गया लेकिन साबुत ना होने के कारण उन्हें 16 मई  1906 को छोड़ दिया गया।

इसके बाद भी खुदीराम बोस (khudiram bose) रुके नहीं, 6 दिसंबर 1907 को उन्होंने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की एक विशेष ट्रेन पर हमला किया हालांकि गवर्नर बच गया। सन् 1908 में भी अंग्रेज अधिकारी वॉटसन और पैम्फायल्ट फुलर पर भी हमला किया पर यह दोनों भी किसी प्रकार से बच निकला।

किंग्जफोर्ड

बोस मिदनापुर में ही स्थित “युगांतर” नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संस्था से भी जुड़े हुए थें। साल1905  जब कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा किया तो इस विभाजान के विरोध में हजारों भारतीय सड़कों पर उतर आये। उस समय कलकत्ता के मजिस्ट्रेट रहे किंग्स्फोर्ड विरोध कर रहे भारतीय व अन्य क्रांतिकारियों के साथ काफी क्रूरता से पेश आया।

किंग्स्फोर्ड की इस क्रूरता से खुश होकर अंग्रेजी सरकार ने तो उसे प्रोमोशन देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा दिया किन्तु वह भारतीय क्रांतिकारियों के निशाने पर आ गया।

किंग्जफोर्ड को मारने की योजना

इस घटना के बाद युगांतर दल के क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई जिसमे किंग्स्फोर्ड को मारने का निश्चय किया गया और इस काम के लिए दो युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को चुना गया।

खुदीराम बोस, हरेन सरकार और प्रफुल्ल चाकी, दिनेश रॉय के नाम से दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर में गए और वहाँ के एक जमींदार परमेश्वर नारायण महतो की घर्मशाला में रुक कर किंग्स्फोर्ड की जासूसी करने लगें। दोनों ने किंग्जफोर्ड की बग्घी और घोड़े का रंग देख लिया बोस ने तो सीधा, किंग्जफोर्ड के ऑफिस में ही जाकर उसे देख आये।

30 अप्रैल 1908 दोनों अपने नियोजित काम के लिए बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बंगले के बाहर उनके बग्घी की आने की राह देखने लगे। बंगले की निगरानी कर रहे पुलिस वालों ने उन दोनों को वहां से हटाने का प्रयास किया किंतु पुलिसबाले को जैसे-तैसे समझकर वहीँ रुक रहे।

रात 8:30 बजे बग्घी को आता देख खुदीराम बोस उसके पीछे भागे और गाड़ी को बंगले के सामने आते ही उस पर हमला कर दिया। पर यहाँ एक बहुत बड़ी गलती हो गई दरअसल दोनों ने जिस गाड़ी पर हमला किया था वह गाड़ी किंग्सफोर्ड का नहीं वल्कि उसी की तरह दिखने वाले कोई दूसरा गाड़ी था जिसमे उस समय के एक प्रमुख वकील रहे प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और उसकी बेटी सवार थी। ये हमला इतना जोरदार था दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। यह घटना रातो-रात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई। जिसकी गूंज केवल देश में ही नहीं वल्कि इंग्लैंड में भी सुनाई दिया।

घटना को अंजाम देने के बाद पुलिस दोनों के पीछे लग गई पर दोनों रातो-रात भाग निकले और वहाँ से 24 मील दूर वैनी रेलवे स्टेशन जा पहुँचे। तब तक सुबह हो चुकी थी, थकान अधिक होने के कारण थोड़ा विश्राम करने लगे।

बोस वहीँ स्टेशन पर मौजूद एक चाय की दूकान से पानी मांग रहे थें तभी उनके नंगे पैर, मैले कपड़े और थकान की वजह से स्टेशन पर तैनात दो पुलिसकर्मी फ़तेह सिंह और शेव पार्षद को बोस के चाल-चलन पर शक हुआ और थोड़ी देर सवाल-जाबाब करने के बाद खुदीराम बोस (khudiram bose) को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने अपने आप को छुड़ाने का बहुत प्रयास किया पर असफल रहें।

इधर दूसरी ओर प्रफुल्ल चाकी, खुदीराम बोस से बिछड़ने के बाद वह काफी दूर तक भाग निकलने में सफल रहे और कल के दोपहर के समय, त्रिगुणचर्न घोष नाम का एक व्यक्ति चाकी को भागता हुआ देख यह समझ चूका था की यह वही क्रांतिकारियों में से है जिनसे कल की रात की घटना को अंजाम दिया है घोष ने चाकी अपने घर में पनाह देने का फैसला किया।

उसी रात, चाकी कोलकत्ता रेलवे स्टेशन से वापस जा रहे थें, चाकी जिस ट्रेन में सवार थें उसी ट्रेन में ब्रिटिश इंस्पेक्टर बनर्जी भी सवार था। कुछ समय बाद चाकी को उसकी असलियत के बारे में पता चला तो वह समझ चुके की वे घिरे चुके हैं।

पकड़े जाने से पहले वह वहाँ से भाग निकलना चाहते थें किन्तु अपने-आप को चारो और से घिरा देख खुद को गोली मार कर शहीद हो गए।

वहीँ खुदीराम बोस को गिरफ़्तारी के कुछ दिन बाद 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई। जिस समय उनको फांसी दी गई वह मात्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन के ही थे हाथों में भगवत गीता लिए खुदीराम बोस देश के लिए शहीद हो गए।

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