खिलजी वंश का इतिहास : Khilji Vansh

Khilji vansh : जलालुद्दीन खिलजी अंतिम गुलामवंशी शासक कयूमर्स की हत्या खिलजी क्रांति की शुरुआत की और दिल्ली पर एक नए राजवंश खिलजी वंश (khilji vansh) की स्थापना की।

खिलजी वंश पाठ्क्रम (Khilji vansh)

  • खिलजी वंश (1290 से 1320 ई०)
  • जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296 ई०)
  • अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1310 ई०)
  • अलाउद्दीन खिलजी के अभियान
  • प्रमुख विद्रोह
  • राजत्व सिद्धांत
  • प्रशासनिक सुधार
  • सैन्य सुधार
  • आर्थिक सुधार
  • बाजार नियंत्रण
  • राजस्व व्यवस्था
  • खिलजी के उत्तराधिकारी
    • शिहाबुद्दीन
    • कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी

खिलजी क्रांति : खिलजी क्रांति से तात्पर्य है की दिल्ली की सत्ता पर तुर्क अमीरों वर्ग के एकाधिकार तथा बलबन के लौह एवं रक्त नीति (रक्त की शुद्धता व कुलीनता) को समाप्त किया हलांकि की जलालुद्दीन खिलजी भी तुर्क था, पर इसने गैर तुर्कों को भी प्रशासन में शामिल किया।

खिलजी वंश ( Khilji Vansh, 1290 से 1320 ई०)

खिलजी राजवंश (khilji vansh) के शासकों ने 1290 से 1320 ई० यानी लगभग 30 वर्षों तक शासन किया। इस समय अवधि के दौरान तीन प्रमुख शासकों ने शासन किया।

  • जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296 ई०)
  • अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1310 ई०)
  • मुवारकशाह खिलजी (1316 से 1320 ई०)

जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296 ई०)

खिलजी वंश (khilji vansh) की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी किलूखरी के महल (किला गढ़ी) के महल में राज्याभिषेक करवाया। किलूखरी के इस महल का निर्माण गुलामवंशी शासक कैकुबाद करवाया था।

1296 ई० में मंगोल आक्रमणकारी अब्दुल्ला भारत पर आक्रमण किया किन्तु अब्दुल्ला पराजित हो गया।

जलालुद्दीन खिलजी मंगोलों के प्रति उदारता की नीति अपनाई व अपनी पुत्री का विवाह मंगोल सरदार उलुग खां के साथ कर दिया।

उलुग खां व उलुग खां के अनुयायी इस्लाम दह्र्म को अपना लिए और वे नवीन मुसलमान कहलाये। ये सभी दिल्ली के आस-आस बस गए जो मुगलपुरा बस्ती कहलाई।

जलालुद्दीन खिलजी एक वृद्ध शासक था और केवल 6 वर्षों तक ही शासन किया इस अवधि के दौरांन इन्होने सर्वप्रथम दक्षिण भारत के अभियानों की शुरुआत किया।

1296 ई० में जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे (भतीजा और दामाद दोनों) अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के यादव वंशीय शासक राजा रामचंद्र देव के राज्य देवगिरी को जीत लिया।

जीत के बाद जलालुद्दीन खिलजी अपने भतीजे (भतीजा और दामाद दोनों) अलाउद्दीन खिलजी से मिलने कड़ा पहुँचा। जहाँ अलाउद्दीन खिलजी योजना बनाकर मुहम्मद सलीम और इत्यारुद्दीन हुद्द के जरिये हत्या करवा दी और कड़ा में ही स्वंय को सुल्तान घोषित कर लिया।

जलालुद्दीन खिलजी की विधवा अपने पुत्र कद्र खां को रुकनुदद्दीन इब्राहीम ने नाम से दिल्ली का सुलतान घोषित किया।

अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश (khilji vansh) का सुल्तान बनाने के बाद जलालुद्दीन खिलजी के पुत्र अर्कली खां समेत पुरे परिवार की हत्या कर दिया।

कार्य

अपने निकट संबंधी मालिक अहमद चप को अमीर-ए-हाजिब के पद पर नियुक्त किया। अहमद चप जलालुद्दीन खिलजी के परिवार का बड़ा व शक्तिशाली समर्थक था।

दिल्ली-लखनौती के बीच काफी घने जंगल हुआ करता था और यहाँ से आने-जाने वाले लोगों को डाकुओं और लुटेरों अक्सर लुट पाट करते रहते थें। इसलिए इन्होने दिल्ली-लखनौती के मध्य जंगलों को काट कर डाकुओं एवं लुटेरों से रक्षा की।

अमीर खुसरो, जलालुद्दीन खिलजी के समय शाही पुस्तकालय का अध्यक्ष था।

ख्वाजा खातिर, जलालुद्दीन खिलजी का वजीर था।

दीवाने वकुफ नामक विभाग की स्थापना की।

अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1310 ई०)

यह खिलजी वंश (khilji vansh) का दूसरा शासक था। इसका मूल नाम ‘अली गुर्शास्य’ था, इसने सत्ता व धन के लालच में जलाउद्दीन खिलजी की हत्या कर दिल्ली का सुल्तान बना।

सुल्तान बनते ही इसने जलाउद्दीन खिलजी के दोनों पुत्र अर्काली खां और रुकनुद्दीन इब्राहीम हत्या करवा दिया ताकि उसका सिंहासन सुरक्षित रह सके।

अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बनाने से पहले मानिकपुर व कड़ा का सूबेदार था। कड़ा में ही अलाउद्दीन खिलजी मुहम्मद सलीम और इत्यारुद्दीन जलाउद्दीन खिलजी की हत्या करवाया। हत्या के बाद अलाउद्दीन खिलजी बलबन के लाल महल में राज्याभिषेक करवाया। अलाउद्दीन खिलजी सिरसा नामक शहर वसाया और अपनी राजधानी बनाया साथ ही यामिन-उल-खिलाफत की उपाधि भी धारण किया था।

खिलजी सिकंदर से काफी प्रभावित था अतः इसने सिकंदर-ए-साथी व सिकंदर द्वितीय की उपाधियाँ भी धारण की सिक्कों अंकित करवाया।

यह एक अलग धर्म बनाना चाहता था लेकिन कोतवाल अलाऊल मुल्क के कहने पर इस विचार को भी इसने त्याग दिया। अलाऊल मुल्क अलाउद्दीन खिलजी मित्र था इसके सलाह को सम्मान करता था।

बलबन ने अपने समय जो सल्तनत का सुदीढ़करण किया उसका लाभ अलाउद्दीन खिलजी उठाया अतः सल्तनत का साम्राज्यवादी युग आरंभ हुआ।

मंगोल आक्रमण

अलाउद्दीन खिलजी मंगोलों के प्रति रक्त एवं शुद्धता पर आधारित अग्रगामी नीति अपनाई। सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय हुआ ये आक्रमणकारी मध्य एशिया के मंगोल शासक दावा खां द्वारा भेजे गए थे।

मंगोल आक्रमणवर्षनेतृत्व (मंगोल नेता)
प्रथम आक्रमण1296 ई०कादर खान
द्वितीय आक्रमण1297-98 ई०साल्दी
तीसरा आक्रमण1299 ई०कुतलुग ख्वाजा
चौथा आक्रमण1303 ई०तारगी
पांचवां आक्रमण1305 ई०अली बेग एवं तरकत
छठा आक्रमण1306 ई०कबक खां
सातवाँ आक्रमण1307-08 ई०इकबालमन्द

जफ़र खां मंगोलों के विरुद्ध अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति था जो 1299 ई० में हुए मंगोल आक्रमण के दौरान में कीली के मैदान में मारा गया। जफ़र खां को युग का हीरो कहा जाता है, इसके मृत्यु पर अलाउद्दीन खिलजी कहा कि, बिना अपमानित हुए ही उससे छुटकारा मिल गया।

1303 ई० में तारिक मंगोल 2 माह तक दिल्ली को घेरे रहा। अलाउद्दीन खिलजी तारिक से संधि कर वापस भेजा। यह एक प्रकार से अलाउद्दीन खिलजी की पराजय थी। इसके बाद मगोलों से बचने के लिए 1304 ई० में राजधानी सीरी स्थान्तरित कर, सीरी को किलेबंदी कर दी।

1306 ई० गाजी मालिक (गयासुद्दीन तुगलक) ने मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली को सुरक्षित रखने में सफल रहा। अतः अलाउद्दीन खुश होकर गयासुद्दीन तुगलक को सीमा रक्षक नियुक्त कर दिया।

मालिक नायक नामक एक हिन्दू अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति था जिन्होंने मंगोलों को पराजित किया।

अलाउद्दीन के उत्तर भारत का अभियान

गुजरात आक्रमण (1299 ई०)

अलाउद्दीन खिलजी बनने के बाद गुजरात अभियान खिलजी का पहला अभियान था। उलूगा खां व नुसरत खां राजधानी अन्हिलवाड (पाटन) को लुटा और गुजरात को दिल्ली सल्तनत का एक प्रान्त बन गया।

इस युद्ध में गुजरात के बाघेल शासक कर्ण द्वितीय अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरी में शरण ले ली। जबकि कर्ण द्वितीय की पत्नी कमला देवी आक्रमणकारियों के हाथ लगा बाद में अलाउद्दीन खिलजी उससे विवाह कर “मल्लिका-ए-जहाँ” की उपाधि दी।

गुजरात विजय के दौरान अलाउद्दीन खिलजी के सेना नायक नुसरत खां, धर्म परिवर्तन कर हिन्दू से मुसलमान बने मलिक काफूर (हिजड़े) को हजार दीनार में खरीद लिया। इस कारण मलिक काफूर को “हजार दिनारा’ कहा जाता है।

मलिक काफूर गुजरात (कैम्वे) का रहने वाला था, यह अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण भारत अभियान का सेनापति था। इसी अभियान के दौरान मालिक काफूर, अलाउद्दीन खिलजी से मिला। बाद में मलिक काफूर को मालिक नाइब एवं वजीर नियुक्त किया।

रणथम्भौर अभियान (1301 ई०)

रणथम्भौर आक्रमण का मुख्य कारण रणथम्भौर शासक हम्मीर देव द्वारा मंगोल सेनापति मुहम्मद शाह एवं केहबू को शरण देना माना जाता है।

1301 ई० में नुसरत खां व उलुगा खां के नेतृत्व में हुए रणथम्भौर पर आक्रमण किया। अलाउद्दीन खिलजी ने हम्मीर देव के मंत्री रणमल और रतिपाल को अपने पक्ष में मिलाकर रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया।

युद्ध में हम्मीर देव अपने भाई वीरम के साथ मारा गया और हम्मीर देव की पत्नी रानी रंगदेवी जौहर कर ली।

रणथम्भौर आक्रमण में ही खिलजी का प्रमुख सेनापति नुसरत खां भी मारा गया।

अमीर खुसरों इस आक्रमण के दौरान मौजूद था। खुसरो तारीख-ए-अलाई (खजाइन-उल-फुतूह) में इस जौहर का वर्णन किया। फारसी साहित्यों में जौहर का पहला वर्णन है।

रणथम्भौर आक्रमण का उल्लेख जोधराज हम्मीर रासो तथा नयनचन्द्र की पुस्तक हम्मीर महाकाव्य में किया गया है।

चितौड़गढ़ (1303 ई०)

अलाउद्दीन खिलजी 1303 ई० में चितौड़गढ़ को जीता और चितौड़गढ़ का नाम अपने पुत्र खिज्र खां के नाम पर खिज्राबाद रखा। इससे पहले किसी भी सुल्तान ने चितौडगढ़ का नहीं जीता सका था।

गोरा एवं बादल रतन सिंह के दो प्रसिद्ध सेना नायत थे जो इस युद्ध में मारे गए व पत्नी रानी पद्मवती जौहर कर ली।

मालवा अभियान (1305 ई०)

1305 ई० में अलाउद्दीन के सेनापति आइन-उल-मुल्क मालवा (मांडू) को जीता और सल्तनत सीमा व्यास नदी से सिन्धु नदी तक फ़ैल गई।

इस दौरान मालवा शासक महलक देव तथा सेनापति हरनन्द कोका था।

जालौर

जालौर शासक कान्हड़ देव के विरुद्ध खिलजी अपनी नौकरानी गुले बिहिश्त के नेतृत्व में सेना भेजी बाद में कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सेना भेजी। कमालुद्दीन गुर्ग ही जालौर विजय का सेनापति था।

अलाउद्दीन खिलजी, कमालूद्दीन गुर्ग को जालौर का प्रवेश द्वारा कहे जानेवाले सिवाना का सूबेदार नियुक्त किया। सिवाना का नाम बदलकर खैरवाद रखा।

कमालुद्दीन गुर्ग 1315 ई० में हुए गुजरात विद्रोह के दौरान मारा गया। कमालुद्दीन गुर्ग का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था तथा गुर्ग का अर्थ है – भेड़िया।

जालौर को जीतकर इसका नाम जलालाबाद रखा।

दक्षिण भारत अभियान

लुट-पाट व धन प्राप्ति के उदेश्य से दक्षिण भारत की ओर बढ़ा। अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण के राज्यों में अधिराजस्व की नीति ना की प्रभुसत्ता की।

अर्थात दक्षिण के राज्यों को जीतकर दिल्ली सल्तनत में नहीं मिलाया वल्कि केवल अधीनता स्वीकार करवाई एवं राजस्व अर्जित किया।

मलिक काफूर दक्षिण विजय अभियान का सेनापति था, इनके नेतृत्व में विन्ध्याचल को पार करने अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का पहला सुल्तान था।

वारंगल

अलाउद्दीन खिलजी 1303 ई० में दक्षिण भारत का पहला आक्रमण मालिक छज्जू के नेतृत्व में वारंगल के काकतीयवंशी शासक प्रताप रूद्र देव (लहर देव) पर किया तथा दूसरा आक्रमण मलिक काफूर के नेतृत्व में 1308 ई० में किया।

द्वितीय युद्ध के बाद वारंगल शासक, प्रताप रूद्र देव सोने की मूर्ति बनाकर उसमे कोहिनूर हीरे (गोलकुंडा से प्राप्त) की माला डालकर मलिक काफूर को उपहार स्वरूप दे दी तथा खिलजी की अधीनता स्वीकार कर वार्षिक राजस्व देने लगा।

देवगिरी

अलाउदीन खिलजी दक्षिण भारत का पहला सफल आक्रमण 1306-07 ई० में मलिक काफूर में नेतृत्व रामचंद्र देव शासित क्षेत्र राज्य देवगिरी पर किया। रामचंद्र देव पराजय की बाद अलाउदीन खिलजी से संधि कर लिया।

इस संधि अनुसार रामचंद्र देव एलिचपुर की आय प्रतिवर्ष दिल्ली भेजना का बाद किया किन्तु अधीनता स्वीकार नहीं की और कुछ वर्ष बाद एलिचपुर के आय भी भेजना बंद कर दिया।

1313 ई० में देवगिरी पर पुनः आक्रमण कर रामचन्द्र देव के पुत्र शंकर देव (सिंहलदेव) की हत्या कर हरपाल देव को गद्दी पर बैठाया।

अलाउद्दीन के आदेश पर मलिक काफूर रामचंद्र देव को बंदी बनाकर दिल्ली ले गया। दिल्ली में रामचंद्र देव को सम्मान पूर्वक व्यावहार किया गया और राय रायन की उपाधि दी गई। इसके अलावे 6 महीने बाद 1 लाख सोने का टंका और नवसारी का किला भी रामचंद्र देव दिया गया हालाँकि आगे चलकर रामचंद्र देव में दिल्ली की अधीनता भी स्वीकार कर लिया।

बतादें की 1308 ई० में खिलजी के गुजरात अभियान के दौरान गुजरात शासक कर्ण बघेल पहले युद्ध करता है किन्तु बाद में देवगिरी में शरण ले लिया। उस समय देवगिरी का शासक रामचंद्र देव था।

होयसल

1310 ई० में मलिक काफूर होयसल राज्य पर आक्रमण क्या व बल्लाल तृतीय अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली साथ ही माबर प्रदेश (पाण्ड्य) के मार्ग की भी जानकारी दी।

माबर प्रदेश (पाण्ड्य)

माबर प्रदेश (पाण्ड्य) राज्य में दो भाइयों वीर पाण्ड्य व सुन्दर पाण्ड्य के बीच विवाद था। सुन्दर पाण्ड्य वीर पाण्ड्य के विरुद्ध अलाउद्दीन खिलजी से सहायता मांगी।

मलिक काफूर 1311 ई० पाण्ड्य की राजधानी मदुरा पर आक्रमण कर काफी धन लुटा व रामेश्वरम मंदिर को नष्ट कर वहां मस्जिद बनाई।

धन की दृष्टि से यह सबसे सफल अभियान था किन्तु सैनिक दृष्टि से असफल रहा क्योंकि पाण्ड्य शासकों ने ना तो भी कर दिया और ना ही कभी अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकारी।

अलाउद्दीन के समय हुए प्रमुख विद्रोह

अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर सुल्तान बना था और गद्दी पर कोई खतरा ना हो इसलिए सुल्तान बनते ही जलाउद्दीन फिरोज खिलजी के दोनों पुत्र अर्काली खां और इब्राहीम हत्या करवा दिया।

कारण खिलजी के विरोध में स्वर उठने लगें। विरोधी पक्ष भी मजबूत थी अतः विरोधियों को शक्तिहीन करने के हेतु मंत्रियों को इसके पीछे का कारण जानने को कहा। मंत्रियों ने इस विरोध के पीछे निम्न कारणों को बताया।

  • राजा की गतिविधियों के बारे में जनता को जानकारी नहीं होना
  • जनता के बीच अधिक संसाधन
  • अमीरों व मालिकों के बीच घनिष्ट संवंध
  • मधपान

भविष्य में कोई बड़ा विद्रोह ना हो इसलिए अलाउद्दीन खिलजी चार अध्यादेश जारी किया जो निम्न था : –

  1. अमीरों की संपत्ति, धर्मी व भूमि अनुदान जब्त करना
  2. अमीरों के आपसी मेल-मिलाप और उत्सवों पर रोक व आपसी विवाह से पूर्व सुलतान से अनुमति लेना जरुरी।
  3. दिल्ली में मध्य निषेध।
  4. गुप्तचर प्रणाली का गठन।

अध्यादेश के बावजूद भी अलाउद्दीन खिलजी के परवर्ती के कारण इसके शासनकाल में बहुत सारे विद्रोह हुए – नवीन मुसलमानों (मंगोल) का विद्रोह, अकत खां का विद्रोह, अवध सूबेदार मंगू का विद्रोह, बदायूं सूबेदार मालिक उमर का विद्रोह, हाजी मौला का विद्रोह आदि।

विद्रोहों में नवीन मुसलमानों (मंगोल) का विद्रोह का सबसे पहला व प्रमुख विद्रोह था। नवीन मुसलमानों (मंगोल) ने किया जो जलालुद्दीन खिलजी के समय धर्म परिवर्तन का मुसलमान बना।

अलाउद्दीन खिलजी की सेना 1299 ई० में गुजरात विजय कर नुसरत खां के नेतृत्व में लौट रही तो सेना में अचानक से विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में अलाउद्दीन खिलजी व नुसरत खां के भाई को मार डाला।

इस विद्रोह को नुसरत खां बड़ी ही क्रूरता से दबा दिया। इस क्रूरता के बारे में बरनी तथा इसामी ने लिखा है की अलाउद्दीन ने एकही दिन में बड़ी संख्या में नवीन मुसलमानों (मंगोल) को क़त्ल करवा दिया।

राजत्व सिद्वांत

अलाउद्दीन खिलजी का राजत्व ना तो शरीअत (इस्लामी कानून) पर आधारित था और ना ही इसमें इस्लामी सिद्वान्तों का सहारा लिया। अलाउद्दीन खिलजी का देवी-शक्ति पर नहीं वल्कि ऐसे राजत्व सिद्वांत पर विशवास करता था जो स्वंय अपने अस्तित्व द्वारा अपना औचित्य सिद्ध कर सकें।

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने राजनीती को धर्म से अलग रखा हालाँकि खलीफा को मान्यता दी।

अलाउद्दीन खिलजी स्वंय ही नासिर-आमिर-उल-मोनिन (खलीफा का सहायक) और यामिन-उल-खिलाफत (खलीफा का दायाँ हाथ) की उपाधियाँ धारण की, किन्तु खलीफा के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया और ना हीं खलीफा से अधिकार पात्र के लिए आवेदन किया एवं उलेमा वर्ग से की सलाह नही लिया।

जबकि इस प्रकार की उपाधियाँ खलीफा द्वारा प्रदान किया जाता था। उपाधि धारण करने का उद्देश्य सैद्धांतिक रूप से खिलाफत परम्परा को जीवित रखना था।

खिलजी निरंकुश राजतन्त्र में विश्वास करता था व सुल्तान के पद को कानून से ऊपर मानता था

प्रशासनिक सुधार

व्यापारियों पर नियंत्रण व बाजार सुधर के लये दीवाने रियासत नामक नए विभाग की स्थपाना तथा बरिद-ए-मुमालिक नामक के अधिकारी के अधीने गुप्तचर प्रणाली का पुनर्गठन किया।

बरिद के अतिरिक्त मुहियन या मुन्ही नामक अनेक अनेक सूचनादाताओं की नियुक्ति किये।

सैन्य सुधार

सेना का केन्द्रीकरण व सैनिकों को नकद वेतन देना शुरू किया। मंगोलों से हमेश खतरा रहता था अतः मंगोलों की भांति अपनी सेना को भी दशमलव प्रणाली पर संगठित करने का प्रयास किया।

सैनिकों की भर्ती आरिज-ए-मुमालिक करता था, जिन सैनिकों की भर्ती निरिक्षण कर किया जाता था उसे “मुर्रत्तब” कहा जाता था। घोड़े दागने व सैनिकों की हुलिया लिखने की प्रथा की शुरुआत की।

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसके पास सबसे बड़ी स्थाई सेना थी। फ़रिश्ता के अनुसार सेना में 4,75,000 घुड़सवार सेना थी। एक घुड़सवार सैनिक को एक अस्पा व दो घुड़सवार को दो अस्पा कहा जाता था।

एक अस्पा को 234 टंका वार्षिक वेतन किया जाता था और एक अतिरिक्त घोड़ा रखने पर 78 टंका वार्षिक अतिरिक्त दिए जाते थे। वहीँ पैदान सैनिकों को 78 टंका वार्षिक दिया जाता था।

आर्थिक सुधार

अलाउद्दीन राजनितिक कार्यों के अलावे वितीय एवं राजस्व सुधारों में भी रूचि लेने बला पहला सुल्तान था।

संसाधनें भी सिमित थी और मंगोलों से भी खतरा था अतः कम खर्च में अधिक से अधिक सेना रखना भी एक मुख्य मुद्देश्य था और साथ ही अधिकांस व्यापारी हिन्दू था इस कारण भी इसे परेशान करना व प्रतारित करना भी एक कारण था।

बाजार नियंत्रण

अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने नगद वेतन के आधार पर स्थाई सेना का गठन किया था किन्तु जो वेतन सैनिकों को दिया जाता था उससे सैनिकों खर्च नहीं चल पता था। इसलिए अलाउद्दीन ने बाज़ार नियंत्रण प्रणाली को अपनाया ताकि कम वेतन में भी उनका खर्च चल सके हालाँकि इसके अतरिक्त और भी कई कारण रहें।

फ़रिश्ता के अनुसार मूल्य नियंत्रण या बाजार नियंत्रण प्रणाली सुल्तान शासित अधिकांश प्रान्तों में लागु था जबकि मोरलैंड के अनुसार यह केवल दिल्ली तक ही सिमित था क्योंकि अधिकांस सेनाएँ दिल्ली में ही केन्द्रित थी।

पर वस्तव में मंगोलों से सुरक्षा के हेतु आवश्यक विशाल सेना के रखा-रखाव हेतु बाजार नियंत्रण प्रणाली को अपनाया गया। शेख मुबारक के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी के मृत्यु के साथ ही बाजार नियंत्रण प्रणाली समाप्त हो गई। वस्तु के कीमतों में स्थिरता सबसे महत्वपूर्ण थी।

बाजार नियंत्रण के लिए निम्न अधिकारी नियुक्त किये गए थें।

  • दीवानी रियासत
  • शाहना-ए-मंडी
  • बरिद-ए-मंडी

दीवाने रियासत (वाणिज्य मंत्री) बाजार नियंत्रण का सर्वोच्य अधिकारी होता था। इसका कराय व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण एवं आर्थिक नियमों को लागु करवाने का दायित्व होता था। अलाउदीन खिलजी मलिक याकूब को मुहतसिब के पद पर नियुक्त किया था। याकूब को बाजार नियंत्रण को सफल बनाने का श्रेय दिया जाता है।

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के बदायूं के पास तीन तरह के बाजार बनवाया था।

  1. कपड़े व अन्य वस्तुओं का बाजार आयत व निर्यात हेतु बाजार।
  2. खाद्यान्न या अनाज बाजार
  3. घोड़ो, मवेशियों व दासों का बाजार

राजस्व व्यवस्था

अलाउद्दीन खिलजी के राजस्व व्यवस्था का उद्देश्य शक्तिशाली व निरंकुश राज्य की स्थापना करना था। राजस्व में राज्य का हिस्सा निर्धारित करने के लिए दो तरह के अधिनियम जारी किये।

  • पहला अधिनियम (जाबिता) – भूमि की पैमाइश के आधार पर लगान निर्धारित करने से संबंधित था जोकि सबसे प्रथम व कठिन अधिनियम था।
  • दूसरा अधिनियम – पशु व चारागाह से संबंधित अधिनियम से संबंधित था।

खिलजी पहला सुल्तान था जिसने भूमि की माप करवाई और इसके आधार पर लोगो से कर (लगान) वसूलना शुरू किया वकायदा इसके लिए अलग से एक विभाग “दीवाने-ए-मुस्तकरा” का गठन किया। विस्बा भूमि पैमाइश की मापक इकाई थी जो एक बीघा का 20वाँ भाग होता था।

भूमि की पैमाइश दिल्ली व सीमावर्ती क्षेत्रों में ही लागु की गई थी। अतः अलाउद्दीन खिलजी भारत का पहला मुस्लिम शासक था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया। लोगों से भूमि की वास्तविक आय का 50 प्रतिशत व मुसलमानों से 25 प्रतिशत लगान (कर) के रूप में बसूल किया जाता था।

अमीरों, शासाकीय कर्मचारीयों व विद्वानों को दी गई भूमि को बापस लेकर खालसा में प्रवर्तित कर दिया। इस भूमि पर राज्य कर वसूल करता था।

खम्स कर लुट की वस्तुओं पर लगाया जाता था, अलाउद्दीन जो भी धन लुट कर लता था उसका 20 प्रतिशत धन सैनिकों में बाट देता था और शेष राजकोष में चला जाता था।

इसके अलावे घरिकर (आवास कर), चराई कर (दुधारू पशु पर) तथा करी व करही जैसे अन्य कर भी पहलीबार लगाए गए।

राजस्व वसूलने के लिए ‘दीवाने-ए-मुस्तखराज’ नमक विभाग की स्थापना की साथ ही विचौलियों को हटाकर आमिल, नवसिन्दा सरहंग और मुहस्सिल नामक नामक केंद्रीय कर्मचारिओं की नियुक्ति की।

अलाउद्दीन खिलजी पहला सुल्तान था जिसने राजस्व की नकद अदायगी को अनिवार्य कर दिया। हालाँकि राजस्थान के झाई से अन्नागार हेतु भूराजस्व अनाज के रूप में लिया जाता था। बरनी इसे (झाई) को शहरे नूर कहा।

अलाउद्दीन खिलजी पहला सुल्तान था जिसने ग्रामीण प्रशासन में सीधा हस्तक्षेप करता था और किसानों से सीधा संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। छोटे किसानों से लेकर विचौलिये तक सभी पर सामान्य कर लगाया।

बाजार नियंत्रण को सफल बनाने के लिए राजस्व अधिकारयों पर सख्ती से नियंत्रण लागू किया। जिससे राजस्व अधिकारयों की स्थिति दैनिये हो गई।

खुतों व जमींदारों के विशेषाधिकार छीन लिए गए, बरनी कहते हैं की ये ना तो घोड़े पर बैठ सकते थे और ना ही अच्छे वस्त्र पहन सकते थें।

कृषि एवं भूराजस्व नीति को सफल बनाने का श्रेय नायाब वजीर ‘शर्फ कायिनी’ को दिया जाता है।  

खिलजी के उत्तराधिकारी

शिहाबुद्दीन

अलाउद्दीन खिलजी के मृत्यु के बाद शिहाबुद्दीन खिलजी शासक बना किन्तु कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी जिसे मलिक काफूर सितून महल में कैद कर रखा था। मलिक काफूर की हत्या कर दिया और शिहाबुद्दीन को अन्धा करवा कर स्वंय सुल्तान बन गया।

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316 ई० से 20 ई०)

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने “खलीफतुल्ल अल्लाह” की उपाधि धारण किया। मुबारक शाह खिलजी देवगिरी को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया और देवगिरी का नाम बदलकर कुतबाबाद या खुत्बाबाद रखा।

वारंगल के कुछ हिस्सों को भी दिल्ली सल्तनत में मिलाया इस प्रकार दक्षिण को दिल्ली सल्तनत में मिलाने की शुरुआत मुबारक शाह खिलजी ने किया।

इसने 4 वर्ष का शासन किया फिर नसीरुद्दीन खुसरों ने 1320 ई० इसकी हत्या कर गद्दी पर बैठा किन्तु गयासुद्दीन तुगलक नसीरुद्दीन खुसरों को अपदस्त कर गद्दी पर बैठा और एक नए राजवंश तुगलक वंश की स्थापना किया।

नोट – क्षमा करों और भूल जायो इसकी नीति थी।

नासिरुद्दीन खुसरो शाह (1320 ई०)

नासिरुद्दीन खुसरो शाह, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी की हत्या कर 15 अप्रैल 1320 ई० में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन खिलजी के परिवार के सभी सदस्यों की हत्या कर दी।

नासिरुद्दीन खुसरो शाह पहले हिन्दू था किन्तु परिवर्तन कर मुसलमान बना अतः यह पहला भारतीय मुसलमान था जो दिल्ली सल्तनत का शासक बना।

साम्राज्य विस्तार

अलाउद्दीन खिलजी 1306-07 ई० में रामचंद्र देव के राज्य देवगिरी पर आक्रमण कर उसे जीत लेता है हार के बाद संधि होता है। इस संधि में प्रावधान रहता है की एलिचपुर के आय प्रतिवर्ष दिल्ली को भेजा जएगा।

1308 ई० में गुजरात विजय के दौरान कर्ण वाघेल के राज पर आक्रमण करता है तो कर्ण वाघेल पहले युद्ध करता है किन्तु बाद में देवगिरी में शरण ले लेता है उस समय देवगिरी का शासक रामचंद्र देव था।

मलिक काफूर

गुजरात विजय के दौरान ही खिलजी का सेनापति नुसरत खां ने मलिक काफूर को 1000 दीनार में ख़रीदा, मलिक काफूर (हिन्दू) यह विशाल काय शरीर वाला हिजरा रहता है इसी विशालकाय शरीर के कारण इसे 1000 दीनार में ख़रीदा।

रामचंद्र देव जोकि संधि के अनुसार अलाउद्दीन को प्रतिवर्ष एलिचपुर के आय को भेजता था उसने 1305 और 1306 ई० में यह आय नहीं भेजा तो मलिक काफूर के नेतृत्व में रामचंद्र देव को बंदी बनाकर दिल्ली ले जाया गया। दिल्ली में रामचंद्र देव को सम्मान पूर्वक व्यावहार किया गया और राय रायन की उपाधि प्रदान किया इसके अलावे 6 महीने बाद 1 लाख सोने का टंका और नवसारी का किला भी दिया गया हालाँकि आगे चलकर रामचंद्र देव में दिल्ली की अधीनता स्वीकार कर लिया।

मलिक काफूर लुट-पाट और साम्राज्य विस्तार के उदेश्य से दक्षिण भारत की ओर बढ़ा, इस दौरान बरंगल के काकतीय वंशीय शासक प्रताप रुड कोहिनूर (हीरा) जोकि गोलकुंडा के खान से प्राप्त हुआ था वह उपहार स्वरुप मलिक काफूर को दे दिया।

इसके बाद एक-एक कर जैसलमेर, रणथम्भौर, चितौड़गढ़, मेवाड़, होयसल, और पाण्ड्य पर आक्रमण कर जीत लिया। फिर लिंग महादेव मंदिर और रामेश्वर को भी लुटा और नष्ट दिया।

1306 ई० गाजी मालिक (गयासुद्दीन तुगलक) ने मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली को सुरक्षित रखने में सफल रहा। अतः अलाउद्दीन खुश होकर गयासुद्दीन तुगलक को सीमा रक्षक नियुक्त कर दिया।

खिलजी प्रशासनिक व्यवस्था

अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलाउद्दीन फिरोज खिलजी की हत्याकर गद्दी पर बैठ था इसलिए इसने राजा बनते ही जलाउद्दीन फिरोज खिलजी के दोनों पुत्र अर्काली खां और इब्राहीम हत्या करवा दिया ताकि उसका सिंहासन सुरक्षित रह सके।

इसके अलावे राज बनते ही जनता में विरोध के स्वर उठने लगा थे जिसे दबाने के लिए अपने मंत्रियों को इसके कारण के जानने पता लगाने कहा।

मंत्रियों ने इस विरोध के पीछे निम्न कारणों को बताया।

  • राजा की गतिविधियों के बारे में जनता को जानकारी नहीं होना
  • जनता के बीच अधिक संसाधन
  • अमीरों व मालिकों के बीच घनिष्ट संवंध
  • मधपान

इस स्वर को दबाने के लिए उठाये गए कदम

  • जनता के बारे में जनकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर को लगा दिया
  • राजकीय भूदान व पुरस्कार समेत सभी भूमियों को छिनकर उसे खालसा भूमि में बदल दिया
  • अमीरों और मालिकों को मिलने पर रोक लगा दिया
  • पुरे राज्य में मध्य निषेध कर दिया

भूमि सुधार

भूमि को नाप (पैमस) करवाया और इसी आधार पर लोगो से कर (लगान) वसूलना शुरू किया वकायदा इसके लिए अलग से एक विभाग दीवाने-ए-मुस्तकरा बनाया और भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व 50 प्रतिशत रखा गया अतः अलाउद्दीन खिलजी भारत का पहला मुस्लिम शासक था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया।

इसके अलावे चरी और चराई कर, चरी कर जोकि माकन पर लगाया जाता था और चराई कर जोकि दुधारू पशुओं पर लगाया जाता था।

बाज़ार नियंत्रण

अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने नगद वेतन के आधार पर स्थाई सेना का गठन किया था किन्तु जो वेतन सैनिकों को दिया जाता था उससे उनका खर्च नहीं चल पता था।

इसलिए अलाउद्दीन ने बाज़ार नियंत्रण पर्णाली को अपनाया ताकि कम वेतन में भी उनका खर्च चल सके हालाँकि इसके अतरिक्त और भी कई कारण रहें।

अलाउद्दीन चार प्रकार के बाज़ार बनता है  

  • पहला – अनाज (चावल और गेहूँ आदि) मिलता,
  • दूसरा – पशुओं का बाज़ार
  • तीसरा – कपडा व मेवा 
  • चौथा – अन्य छोटे-छोटे वास्तु

इन सभी बाज़ारों मूल्य हमेशा नियंत्रण में रहे इसलिए मलिक काफूर को बाज़ार का अधीक्षक नियुक्त किया।

नोट – अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वाजनिक वितरण प्रणाली को भी अपनाया।

स्थापत्य क्षेत्र

  • गुजरात विजय के दौरान कुतुवमीनार के सामने अलाई दरवाजा का निर्माण करवाया
  • हौजखास, हजार खम्भा महल, शिरी कोर्ट, जमात खाना मस्जिद व अलाई किला (कोसेके सिटी) आदि का निर्माण करवाया।

अन्य तथ्य

  • इसके दरवार में अमीर खुसरो व हसन निजामी जैसे प्रसिद्ध कवि रहते थे।
  • अमीर खुसरो जिसे की तोता-ए-हिन्द या तोता-ए-हिंदी कहा जाता है, इसने सात सुल्तानों के काल को देता था।
  • खुसरो ने सितार का अविष्कार किया साथ ही विणा में शंशोधन किया
  • घोड़े दागने की प्रथा व हुलिया प्रथा लागू किया।
  • अलाउद्दीन जो भी धन लुट कर लता था उसका 20 प्रतिशत धन सैनिकों में बाट देता था और शेष राजकोष में चला जाता था।

1316 ई० में बीमारी के कारण अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गया, इसके बाद पुत्र शियाबुद्दीन उमर मलिक काफूर के संरक्षण में गद्दी पर बैठता है। किन्तु खिलजी के दुसरे पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी इसकी हत्या कर 1316 ई० में गद्दी पर बैठता है।

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने अलिफतुल्ल्हा की उपाधि धारण किया। इसने 4 वर्ष का शासन किया फिर नसीरुद्दीन खुसरों ने 1320 ई० इसकी हत्या कर गद्दी पर बैठा किन्तु गयासुद्दीन तुगलक नसीरुद्दीन खुसरों को अपदस्त कर गद्दी पर बैठता और एक नए राजवंश तुगलक वंश की स्थापना किया।

खुसरो शाह (1320 ई०)

खुसरो शाह 1320 ई० में दिल्ली सल्तनत का शासक बना पहले यह हिन्दू था किन्तु परिवर्तन कर यह मुसलमान बना अतः यह पहला भारतीय मुसलमान था जो दिल्ली सल्तनत का शासक बना।

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