जैन और बौद्ध धर्म में अंतर (समानताएँ और असमानताएँ)

जैन और बौद्ध धर्म : छठी शताब्दी में मध्य गंगा के मैदानों में कई सम्प्रदायों का उदय हुआ दो सम्प्रदाय जैन धर्म और बौद्ध धर्म महत्वपूर्ण हैं हालाँकि जैन धर्म की स्थापना ऋषभदेव में बहुत ही पहले कर चुके थें किन्तु इसका विस्तार महावीर स्वामी के समय हुआ जो गौतम बुद्ध के समकालीन थे।

जैन और बौद्ध धर्म

दोनों सम्प्रदायों का विस्तार भले ही एकही काल खंड में हुआ हो लेकिन दोनों सम्प्रदाय जैन और बौद्ध धर्म में कई समानताएँ और असमानताएँ थी।

समानताअसमानता
दोनों क्षत्रिय कुल के थेबौद्ध निर्वाण इसी जीवन में संभव मानते है
दोनों को वेदों की प्रमाणयता पर अनास्था हैजैन शारीर में मुक्ति के पश्चात इसे संभव मानते है
कर्मकाण्ड का फली भूति निषेध कियाबौद्ध मुक्ति मार्ग के लिए मध्य मार्ग का उपदेश देता है
कर्म एवं पुनर्जन्म को मानते हैजैन मुक्ति मार्ग के लिए कठोर साधना पर बल दिया
शुद्र व महिलाओं द्वारा मोक्ष प्राप्ति की संभावना का विरोध कियाबुद्ध में जाती प्रथा की निंदा किया
 महावीर ने जाती प्रथा की निंदा नहीं किया
 महावीर में बुद्ध की तुलना में अहिंसा व अपरिगृह पर अधिक बल दिया
  • जैन और बौद्ध दोनों नास्तिक माना जाता है क्योंकी इन दोनों ने वेदों की प्रमाणिकता को नहीं मानता।
  • जैन में देवताओं के अस्तितिव को स्वीकार किया गया
  • जैन संसार की वास्तविकता को स्वीकार करता है सृष्टिकर्ता के रूप में ईस्वर को नहीं
  • जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं की गई है।
  • महावीर के अनुसार पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य व पाप के आधार पर ही किसी व्यक्ति का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है।
  • जैन पूर्व जन्म एवं कर्मवाद पर विश्वास करता है कर्म फल ही जन्म एवं मृत्यु का कारन है
  • जैन सांसारिक बन्धनों से मुक्ति परत करने के उपाय बताएँ है
  • जैन अहिंसा पर विषेश वल दिया है
  • जैन कृषि व युद्ध में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया है क्योंकी इससे हिंसा होती है
  • स्वयादवाद व सप्रिमंग्नीय जैन धर्म का महत्वपूर्ण दर्शन है जो ज्ञान की सापेक्षिकता की बात करता है।
  • जैन भिक्षुओं के लिए पांच महाव्रत व ग्राहस्तों के लिए पांच अनुव्रत की व्यवस्था है।
  • जैन धर्म में संलेखाना से तात्पर्य है उपवास द्वारा शारीर का त्याग।
  • जैन धर्म के दो सम्प्रदाय तेरापंती (श्वेताम्बर) और समैया (दिगाम्बर)।
  • स्थुलभद्र के अनुयायिओं को श्वेताम्बर कहा गया श्वेताम्बर सफ़ेद वस्त्र धारण करते है इसी सम्प्रदाय ने सबसे पहले महावीर व अन्य तीर्थंकरों की पूजा आरंभ की।
  • भद्रबाहु के अनुयायिओं को दिगाम्बर (नग्न) कहा गया इन्हें दक्षनी जैन कहा जाता है।
  • जैन ग्रन्थ की रचना प्राकृत भाषा में किया गया है किन्तु कुछ ग्रन्थ की रचना अपभ्रंश शैली में भी की गई है।
  • बौद्ध धर्म ईस्वर की आत्मा पर विश्वास नहीं करता इसलिए इसे अनीश्वरवादी और अनात्मवादी कहा गया है।
  • बौद्ध सिद्धांत क्षणभंगवार के अनुसार सृष्टी नश्वर है।

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