हूण आक्रमण का इतिहास : Hun Aakrman

Hun मध्य एशिया में पायी जानेवाली एक क्रूर जनजाति थी जोकि खानावादोश की तरह अपना जीवन व्यतीत करती थी। हूणों की जनसँख्या धीरे-धीरे वृद्धि हो रहा था जिसे वासाने के लिए नए भूमि की तलाश थी। भूमि की तलाश में एक समूह बनाकर निकले तो यह समूह दो शाखाओं में में बट गई एक शाखा पूर्वी शाखा और दूसरी शाखा पक्षमी शाखा कहलाई।

इनकी पक्षमी शाखा युराम पर्वत कर रोम पहुँच गई, जिसे की यूरोप का केंद्र माना जाता था, वहाँ पहुँचने के बाद रोम को बुरी तरह से नष्ट कर दिया।

हूण आक्रमण (Hun Aakrman)

इनकी पूर्वी शाखा ने 458 ई० में भारत पर पहला आक्रमण किया, उस समय भारत में गुप्त शासक कुमार गुप्त का शासन था।

हूण (Hun) ने गुप्त वंश के शासनकाल में बार-बार लुट-पाट करते रहते थे और भाग जाते थे, तब अंत में स्कंदगुप्त ने अपनी सेना के नेतृत्व करते हुए हूणों का नेतृत्व कर रहे बंजारे हुर्ण को बुरी तरह से पराजित कर दिया अतः हूण भारत से वापस लौट गया। और इस हार से हूणों को उभरने में 30 वर्ष लग गया। इस विजय के उपलक्ष्य में स्कंदगुप्त ने विष्णु स्तम्भ का निर्माण करवाया।

जब भारत में गुप्त साम्रज्य कमजोर पड़ गया तब तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर पुनः आक्रमण किया और भारत के उत्तर-पक्षमी सीमा पर अधिर्कार कर लिया। इस उपलक्ष्य में तोरमाण ने महाराधिराज की उपाधि धारण किया।

इनके बारे में जैन ग्रंथ कुवलयमाला से ज्ञात होता है की तोरमाण ने अपनी राजधानी चंद्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर स्थित पवैया नामक स्थान पर वनाया था।

तोरमाण ने जीते जी ही अपने पुत्र महिरकुल को अपना उतराधिकारी बना दिया था।

महिरकुल

महिरकुल 510 ई० में राजा बना और स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया। हूणों का पहले तो कोई धर्म नहीं था लेकिन भारत में आने के बाद इन्होने शैव धर्म को अपना लिया। लेकिन भारत के अन्य राजाओं के तरह अन्य धर्मो का कभी भी सम्मान नहीं किया। महिरकुल अत्यंत ही क्रूर और अत्याचारी राजा था यह बौद्ध और जैन भिक्षुओं से घृणा करता था। इसने कई मठों और स्तूपों का नष्ट करवा दिया।

कल्हण की पुस्तक राजतरंगनी में महिरकुल के अत्याचारों का उल्लेख मिलता है, इनमे महिरकुल की तुलना विनास के देवता से किया है। जैन लेखक महिरकुल को दुष्टों में प्रथम मानतें हैं।

मालवा के शासक यशोधर्मा ने महिरकुल को पराजित किया इस उपलक्ष्य में मंदसौर में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

हारने के बाद महिरकुल कश्मीर चला गया और वहाँ अपना राज्य स्थापित किया लेकिन अधिक समय तक शासन नहीं कर पाया और महिरकुल के साथ ही भारत में इसकी शक्ति समाप्त हो गया।

हूणों के आक्रमण के कारण गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया और जो भारत में एकता स्थापित था वह भी समाप्त हो गया। जिसे आगे हर्षवर्धन ने पुनः स्थापित करने का प्रयास किया।।

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