गुर्जर प्रतिहार वंश : Gurjar Pratihar Vansh

Gurjar Pratihar Vansh : 5वीं शताब्दी के अंत और 6ठी शताब्दी के प्रारंभ में बर्बर हूणों के आक्रमण और आन्तरिक कलह के कारण गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया। पतन के बाद गुप्तों के अधीन छोटे-छोटे राज्य अपने-आप को स्वतंत्र घोषित कर लिए जिसमे गुजरात के चालुक्य, जिजाजभुक्ति के चंदेल, मध्य भारत के कलचुरी, शागाम्ब्री के चौहान, मालवा के परमार और गुर्जर प्रतिहार वंश आदि प्रमुख है।

इस समय उत्तर भारत के अधिकांस राजपूत वंश के थे, इसलिए इस युग को राजपूत कुलीन इतिहास कहा जाता है।

पृथ्वी राज के दरवारी कवि चन्द्रबरदाई ने अपने पुरस्तक “पृथ्वी राजरासो” में बताया है की राजपूत आबू पर्वत (माउंट आबू) पर वशिष्ट मुनि के के अग्निकुण्ड से उत्पन हुए है। प्रतिहार, चालुक्य, चौहान और परमार वंश के शासकों के बारे में यह उल्लेख किया गया है। कुछ विद्वानों का मानना है की ये भगवन लक्ष्मण के वंशज थे।

गुर्जर प्रतिहार वंश

इस वंश के शासक गुर्जरों के सहायक शाखा से संबंधित थे इसलिए इन्हें गुर्जर कहा जाने लगा। यही गुर्जर आगे चलकर प्रतिहार से संवंधित हो गए इसलिए इसे गुर्जर प्रतिहार वंश कहा जाता है। अग्निकुण्ड से उत्पन राजपूतों में गुर्जर प्रतिहार वंश सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए।

चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में सर्वप्रथम गुर्जरों के उल्लेख मिलता है, वर्तमान समय की बात करे तो यह गुजरात और राजस्थान के क्षेत्र में निवास करते थे।

इसे भी पढ़े – कश्मीर का इतिहास

गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना हरिशचंद्र ने किया परंतु इस वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है।

ग्वालियर अभिलेख के उल्लेख किया गया है की नागभट्ट प्रथम एक शक्तिशाली था और इन्होने लम्बे समय तक अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक रखा था।

वस्तराज

वस्तराज भी का एक शक्तिशाली शासक था और इसे भी गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

नोट – अगर प्रश्न में गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तिक संस्थापक पूछा जाए और विकल्प में नागभट्ट प्रथम और वस्तराज दोनों दिया हो तो उत्तर के वस्तराज होगा।

वस्तराज ने पाल शासक धर्मपाल पर आक्रमण किया उसे युद्ध में हरा दिया, फिर राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वस्तराज पर आक्रमण किया वस्तराज को युद्ध में हरा दिया।

इसे भी पढ़े – मौर्य वंश

इन्ही तीन राजवंश गुर्जर प्रतिहार वंश, पाल वंश और राष्ट्रकूट वंश के मध्य संघर्ष चलता रहा जिसे त्रिपक्षीय संघर्ष के नाम से जाना जाता है।

इस संघर्ष में पाल वंश सबसे कमजोर वंश था, राष्ट्रकूट वंश जोकि गुर्जर प्रतिहार वंश से शक्तिशाली था लेकिनआन्तरिक कलह के कारण वह कमजोर हो गया और अंतत: गुर्जर प्रतिहार वंश यह युद्ध जीतने में सफल रहा।

नागभट्ट द्वितीय

नागभट्ट द्वितीय वस्तराज का पुत्र था इसने कनौज पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया लेकिन राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय नागभट्ट द्वितीय को युद्ध में पराजित कर दिया।

मिहिरभोज प्रथम

इसे तो पहले पाल शासक धर्मपाल ने युद्ध में पराजित किया उसके बाद राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने भी मिहिरभोज प्रथम को युद्ध में पराजित कर दिया। मिहिरभोज प्रथम ने अपने प्रतिष्ठा को बचने के लिए राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय को युद्ध में पराजित किया और मालवा पर अधिकार कर लिया।

यह वैष्णव धर्म का अनुयायी था इन्होने आदिवराह एवं प्रभात की उपाधि धारण किया। जोकि इनके द्वारा चलाये गए चाँदी के सिक्के “द्रम्म” पर अंकित है।

महेंद्र पाल

यह मिहिरभोज प्रथम का पुत्र था इसने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय को युद्ध में पराजित किया।

महेंद्र पाल ने परम भट्टाकर , महाराजाधिराज और परमेश्वर की उपाधि धारण किया। इसके शासनकाल में राजनितिक और सांस्कृतिक का अभूतपूर्व विकास हुआ।

प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर महेंद्र पाल के दरवार में रहते थे और इनके गुरु भी थे, इन्होने ने कई पुस्तकों की रचना किए।

कर्पुर मंजरी, काव्य मीमांसा, बाल रामायण, भूवनकोश, हरविलास, विद्धशाल भंदिका, बाल भारत

महिपाल

इसका शासनकाल शांतिपूर्ण और समृद्ध भरा रहा, इसी शासनकाल में बग़दाद निवासी अलमसुदी भारत आया था।

इनके दरवारी कवि राजशेखर ने इसे आर्यवर्त का महाराजधिराज कहता था।

राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने अपने पिछले हार का बदला लेने के लिए महिपाल पर आक्रमण कर युद्ध में हारा दिया और कनौज को बुरी तरह से लुटा।

महिपाल के इस हार के बाद गुर्जर प्रतिहार वंश धीरे-धीरे अपने पतन की ओर जाने लगा।

पतन

महिपाल के बाद महेन्द्रपाल द्वितीय, देवालय, विनायक पाल द्वितीय,महिपाल द्वितीय जैसे कई कमजोर शासक आए।

963 ई० में जब राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने प्रतिहार शासक को पराजित किया उसके बाद गुर्जर प्रतिहार वंश का विघटन और तेजी से होने लगा।

इस दौरान कई छोटे-छोटे राज्य अपने स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे जिसे की गुर्जर प्रतिहास के पूर्व शासकों ने एक-एक को जोड़कर अपना साम्राज्य स्थापित किया था।

1018 ई० में जब महमूद गजनवी ने इनके राज्य पर आक्रमण किया तो गुर्जर प्रतिहार शासक राज्यपाल ने भाग खड़ा हुआ। और बिना लादे ही महमूद गजनवी ने उके राज्य पर अधिकार कर लिया।

इसे भी पढ़े – मौर्य वंश का पतन कैसे हुआ

इस बात से क्रोधित होकर चंदेक शासक विद्याधर ने एक योजना के तहद राज्यपाल को ढूंडवाकर उसे हत्या करवा दिया और विद्याधर स्वयं महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया।

महमूद गजनवी जोकि अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था उसने विद्याधर के साथ दो बार युद्ध किया। पहला युद्ध अनिर्णायक रहा और जब दूसरी बार युद्ध किया तो दूसरी भी हरा नहीं पाया और अंत में महमूद गजनवी विद्याधर के साथ संधि कर लेता है। संधि के तहत महमूद गजनवी विद्याधर को 15 किला दे देता है। इस प्रकार इस युद्ध का अंत हो जाता है।

त्रिलोचन पाल

राज्यपाल भागते समय 1018 ई० सत्ता अपने पुत्र त्रिलोचन पाल के हाथो में सौप दिया जिसे 1019 ई० में महमूद गजनवी ने हरा दिया।

इस वंश का अंतिम शासक यशपाल था, गुर्जर प्रतिहार वंश त्रिपक्षीय (पाल, राष्ट्रकूट और गुर्जर प्रतिहार वंश) संघर्ष को अंत में जीतने में सफल हो जाते है।

निष्कर्ष

गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों ने काफी लम्बे समय तक शासन किया और भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा अतः भारत में द्वारपाल की भूमिका निभाई।

Leave a Comment