भारत में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कोई बड़ा साम्रज्य स्थापित नहीं हुआ वल्कि छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजवंशों के रूप था जोकि इतना मजबूत नहीं थे अतः इस समय अवधि के दौरान कई विदेशी आक्रमणकारी भारत में अपना प्रभुत्व जामने का पूरा प्रयास किया। एक लम्बे समय बाद भारत केन्द्रीय सत्ता के रूप में गुप्त वंश (Gupt vansh) का उदय हुआ।
गुप्त वंश (Gupt vansh)
इस साम्राज्य का उदय तीसरी शताव्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ। यह भी पहले एक क्षेत्रीय राजवंश के रूप में हुआ था किन्तु समय के साथ इसके विस्तार हुआ और एक बड़े साम्राज्य के रूप में स्थापित हुआ। कहा जाता है की गुप्त पहले कुषाणों के अधिन कार्यरत थे।
गुप्त साम्राज्य के संवंध में जनकारी के कई श्रोत्र है जैसे की साहित्यिक, अभिलेख, मुद्रा, विदेशी यात्राओं के वर्णन आदि!
श्री गुप्त
श्री गुप्त के द्वारा 240 ईस्वी में स्थापित गुप्त राजवंश पर श्री गुप्त ने 240 ईस्वी से 280 ईस्वी तक शासन किया हालाँकि इसके शासनकाल में साम्राज्य का अधिक विस्तार तो नहीं हुआ लेकिन एक बड़े साम्रज्य के रूप में गुप्त साम्राज्य की नींव जरुर रखा। जिसकी जनकारी प्रयाग प्रशसत्री अभिलेख से मिलता है!
घटोत्कच
श्रीगुप्त के बाद घटोत्कच गुप्त वंश का अगला शासक बना, इन्होने यह 280 ईस्वी से 319 ईस्वी तक शासन किया। घटोत्कच ने गुप्तों में सबसे पहले महाराजा की उपाधि धारण किया।
इनके शासनकाल में भी गुप्त साम्राज्य का विस्तार नहीं हुआ और एक क्षेत्रीय शासक के रूप में ही शासन किया।
चन्द्रगुप्त-1
घटोत्कच के बाद चन्द्रगुप्त-1 शासक बना इसने 319 ईस्वी गद्दी पर बैठने के उपलक्ष्य में इन्होने 319 ईस्वी में गुप्त संवत् का प्रारंभ किया। इन्होने ने 335 ईस्वी तक शासन किया
चन्द्रगुप्त-प्रथम गुप्त वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था अतः इसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य के विस्तार हुआ जिस कारण इसे गुप्त वंश (Gupt vansh) का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इन्होने महाराजाधिराज की उपाधि धारण किए!
चन्द्रगुप्त प्रथम ने वैवाहिक संवंध द्वारा भी साम्राज्य के विस्तार का प्रयास किया इसी क्रम में इन्होने लिच्छवी के राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया।
नोट – भारत में वैवाहिक संवंध द्वारा साम्राज्य विस्तार का प्रयास सर्वप्रथम विम्बिसार ने किया था!
समुद्रगुप्त
समुद्रगुप्त इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था और इन्ही के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार हुआ। इन्होने ने विक्रमंक की उपाधि धारण किए।
समुद्र्गुत 335 ईस्वी से 375 ईस्वी मतलब की करीब 40 वर्षों तक शासन किया। अपने इस अवधि के दौरान इन्होने गुप्त साम्राज्य को विस्तार करने के साथ-साथ साम्राज्य को सुदिढ़ करने का प्रयास किया।
समुद्रगुप्त ने आर्यवर्त (उत्तर भारत) के 9 और दक्षिणावर्त (दक्षिम भारत) के 12 राजाओं को पराजित पर अपने साम्राज्य में मिला लिया। इसी विजय के कारण विसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कह कर संवोधित किया क्योंकी समुद्रगुप्त अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था।
समुद्रगुप्त के दरवारी कवि हरिसेन ने समुद्रगुप्त की प्रशंसा में एक अभिलेख लिखा जिसे प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के नाम से जाना जाता है। इसी अभिलेख में समुद्रगुप्त के सभी विजीत प्रदेशो की सूचि दिया गया है।
हालाँकि इस अभिलेख में वाकटकों के बारे में जिक्र नहीं है क्योंकी वाकटक वंश के राजा रुद्रसेन प्रथम ने समुद्रगुप्त के साथ पहले ही मैत्रीपूर्ण संवंध स्थापित कर लिया था। इसलिए समुद्रगुप्त ने रुद्रसेन प्रथम के राज्य को छोड़ दिया।
वास्तिव में प्रशस्ति अभिलेख को मौर्य शासक अशोक ने बनबाया था और इसी में खुदाई करवा कर समुद्रगुप्त के बारे में अंकित किया गया।
समुद्रगुप्त द्वारा जारी सिक्को में उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया जिसे ज्ञात होता है की समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी भी था।
समुद्रगुप्त संगीत एवं संस्कृति ने इन्हें कविराज भी कहा जाता था।
चन्द्रगुप्त-2
चन्द्रगुप्त द्वितीय भी एक प्रतापी राजा थे इन्होने शकों को पराजित किया इस उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रादित्य की उपाधि धरान किया साथ ही चाँदी के सिक्के भी चलाएँ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय दो राजधानी विकसित हुआ एक उज्जैन तथा दूसरा पाटलिपुत्र, उज्जैन वाले राजधानी में चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरवार में नव-रत्न रहते थे।
चन्द्रगुप्त द्वितीय 375 ईस्वी से 415 ईस्वी तक शासक रहा इसी दौरान चीनी बौद्ध यात्री फाहियान भारत आया था।
महरौली का लौह स्तंभ का निर्माण चन्द्रगुप्त द्वितीय के दौराण करवाया गया था इसकी खास बात है की इसमें अभी तक जंग नहीं लगा है जोकि वैज्ञानिकों को अपनी ओर ध्यान आकर्षित करता है।
कुमार गुप्त
कुमार गुप्त 415 ईस्वी से 455 ईस्वी तक शासन किया, इसी ने नालंदा विश्व विद्यायालय का का निर्माण करवाया था।
हूणों का आक्रमण कुमार गुप्त के शासनकाल में ही शुरू हो गया था जिसे स्कंदगुप्त ने पराजित किया! बतादें की स्कंदगुप्त कुमार गुप्त का पुत्र था और इसी के नेतृत्व में होणों को पराजित किया गया।
नोट – हूण मध्य एशिया के जनजाति था और भारत में लुट-पाट के उद्देश्य में बार-बार भारत पर आक्रमण करता था।
स्कंदगुप्त
स्कंदगुप्त ने 455 ईस्वी में शासक बना, राजा बनने के बाद इसने बुरी तरह से हूणों को पराजित किया की अगले 30 वर्षों तक भारत की कभी नहीं आया। इसका शासनकाल 467 ईस्वी तक शासक रहा।
स्कंदगुप्त ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया जिसे की मौर्य काल में बनाया गया था यह झील गिरनार पर्वत पर स्थित था।
भानुगुप्त
भानुगुप्त के समय 510 ईस्वी में निर्मित एरण के अभिलेख से पहलीबार शती होने का प्रमाण मिलता है!
विष्णु गुप्त
540 ईस्वी में विष्णु गुप्त शासक बना और इसके मृत्यु के साथ ही गुप्त वंश (Gupt vansh) का पतन हो गया।
FAQ Section :
गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे लेकिन सभी ने अन्य धर्मो का बराबर सम्मान किया जैसे की नालंदा में जो विश्व विद्यालय बनाया गया था वह मूल रूप से बौद्धों से संवंधित था।
श्री गुप्त के द्वारा 240 ईस्वी में स्थापित गुप्त राजवंश पर श्री गुप्त ने 240 ईस्वी से 280 ईस्वी तक शासन किया हालाँकि इसके शासनकाल में साम्राज्य का अधिक विस्तार तो नहीं हुआ लेकिन एक बड़े साम्रज्य के रूप में गुप्त साम्राज्य की नींव जरुर रखा। जिसकी जनकारी प्रयाग प्रशसत्री अभिलेख से मिलता है!
इस वंश का अंतिम शासक विष्णु गुप्त था जो 540 ईस्वी में शासक बना और इसके मृत्यु के साथ ही गुप्त वंश का पतन हो गया।
गुप्त काल को भारतीय संस्कृति का स्वर्णिम काल कहा जाता है
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