राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन परिचय : Rajendra Prasad

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (Rajendra prasad) भारत के राष्ट्रवादी आंदोलनों के उन प्रमुख नेताओं में से एक थें, जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने करियर और खुशाल जीवन को छोड़ देश के लिए समर्पित हो गए।

राजेन्द्र प्रसाद उस संविधान सभा के अध्यक्ष बने जिसे देश के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने का काम सौपा गया था अगर दुसरे शब्दों में कहा जाए तो राजेन्द्र प्रसाद (Rajendra prasad) भारतीय गणराज्य के निर्माण में एक प्रमुख व्यक्ति थे और देश के लिए उनका योगदान व्यापक रहा है।

वह अपने कर्तव्यों के प्रति इसने समर्पित थें की 24 जनवरी 1950 को वह जैसे ही देश के राष्ट्रपति बने उन्होंने दुनियाँ भर के कई देशों की यात्रा कर उन देशों के साथ भारत के राजनितिक संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। वह स्वतंत्र भारत के एक मात्र राष्ट्रपति थें जिन्होंने दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति के पद पर कार्य किया।

राजेन्द्र प्रसाद (Rajendra Prasad)

3 दिसंबर 1884 बिहार के सिवान जिले में स्थित जीरादेई नामक गाँव में जन्मे राजेन्द्र प्रसाद अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटे थें। इनके पिता महादेव सहाय श्रीवास्तव जोकि संस्कृत और फारसी भाषा के विद्वान थें वहीँ इनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी जो बेटे को रामायण और महाभारत के किस्से सुनाया करती थी।हालाँकि बचपन में ही इनकी माता कमलेश्वरी देवी का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनका पालन पोषण उनकी बड़ी बहन भगवती देवी ने किया

शिक्षा और वकालत

इनकी शिक्षा गाँव से ही प्रारंभ हुई उसके बाद उन्हें छपरा जिला स्कुल में दाखिला लिया और आगे के दो साल अपने बड़े भाई महेन्द्र प्रसाद के साथ पटना में रहकर शिक्षा ग्रहण किया।

सन् 1896 को मात्र 12 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह राजवंशी देवी के साथ हुआ कम उम्र में विवाह के बाद भी उन्होंने पढाई को जारी रखा।

आगे की पढाई के लिए वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में दाखिला के लिए प्रवेश परीक्षा दिया जिसमे वह प्रथम आये और उन्हें 30 रूपये प्रतिमाह की छात्रवृत्ति मिली भले ही आज के हिसाव से 30 रुपये भले ही कम हो किन्तु उस समय 30 रुपये अच्छी खासी राशी थी।

राजेन्द्र प्रसाद ने अपने पेशे की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में किया उन्होंने देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में काम किया। बाद में कोलकता के रिपन कॉलेज में क़ानूनी की पढाई करने के उद्देश्य कॉलेज को छोड़ दिया हालाँकि कोलकत्ता में कानून की पढाई करते रहने के दौरान भी सन् 1909 में कलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रफेसर के रूप में भी कार्य किया।

1915 में कोलकत्ता विश्वविद्यालय के कानून विभाग में मास्टर ऑफ़ लॉ की परीक्षा पास की और 1916 में राजेन्द्र प्रसाद को बिहार और ओडिशा के उच्च न्यायालय में नियुक्ति मिली।

समाज सेवा

राजेन्द्र प्रसाद ने हमेशा से लोगों की सहायता की चाहे 1914 के बंगाल और बिहार की भीषण बाढ़ हो या 1934 में बिहार में आया भूकंप या फिर 1935 में क्वेटा भूकंप, राजेन्द्र प्रसाद ने लोगों की सहायता के लिए हमेशा और हर संभव प्रयास किया।

15 जनवरी, 1934 में जब बिहार में भूकंप आया था तो उस समय राजेन्द्र प्रसाद जेल थें पर फिर भी उन्होंने 17 जनवरी को बिहार केन्द्रीय राहत समिति का गठन कर लोगों के लिए लगभग 38 लाख रुपये का धन जुटाया। इसी वर्ष यानी की 1934 में ही राजेन्द्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र प्रसाद का निधन हो गया।

1935 के क्वेटा भूकंप के दौरान ब्रिटिशों ने उन्हें क्षेत्र को छोड़ने से रोकने के बहुत प्रयास किया इसके बाबजूद भी लोगों की सहायता के लिए पंजाब के क्वेटा सेंट्रल रिलीफ कमेटी की स्थपाना की।

राजेन्द्र प्रसाद उस समय के प्रसिद्ध वकील हुआ करते थें। राजेन्द्र प्रसाद और उनके परिवार का जीवन सामान्य रूप से गुजर रहा था लेकिन समय को तो कुछ और ही मंजूर था। राजेन्द्र प्रसाद जी का मन भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों के प्रति आकर्षित हो रहा था और भारत की स्वतंत्रता की भावना उनके हिर्दय में धीरे-धीरे जगह बना रही थी।

कांग्रेस से संबंध

कोलकत्ता में अध्ययन के दौरान ही राजेन्द्र प्रसाद एक स्वंयसेवक के रूप में पहलीबार सन् 1906 के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लिया और दूसरी बार वर्ष 1911 में जब कांगेस का वार्षिक अधिवेशन कोलकत्ता में आयोजित किया गया तो वह आधिकारिक तौर पर कांग्रेस से जुड़ गए।

कांग्रेस के सदस्य बनाने के बाद पहलीबार सन् 1934 को मुंबई में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता करने का अवसर मिला। दूसरी बार वर्ष 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में अध्यक्षता करने का अवसर मिला जब सुभाषचंद्र ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।

इसके अलावे स्वतंत्रता के बाद जब जेबी कृपलानी के कांग्रेस के पद से इस्तीफा दे दिया तो राजेन्द्र प्रसाद 17 नवम्बर 1947 को तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

राजेन्द्र प्रसाद, गाँधी जी के विचारधारा से बहुत प्रभावित थें इन दोनों की पहली मुलाकात कांग्रेस के 1916 के लखनऊ अधिवेशन में हुआ।

आन्दोलन

1917 के चंपारण सत्याग्रह हो या 1920 के असहयोग आन्दोलन हो या फिर 1942 के भारत छोड़ों आन्दोलन गाँधी जी के हर आन्दोलन में राजेन्द्र प्रसाद ने बढ-चढ़कर भाग लिया।

साल 1920 गाँधी जी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन के दौरान, जब गाँधी जी ने लोगों से विदेशी वस्तुओं को बहिष्कार करने के अपील की तो राजेन्द्र प्रसाद अपने वकालत को छोड़-छाड़ कर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़ें। इतना ही नहीं वल्कि अपने बेटे मृत्युंजय को भी उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर, बिहार विद्यापीठ में दाखिला करवा दिया और लोगों से भी इस आन्दोलन में भाग लेने की अपील की।

8 अगस्त, 1942 को कांगेस के बम्बई अधिवेशन में जब भारत छोडो आन्दोलन प्रस्ताव को पारित किया तो अंग्रेजों ने 8 अगस्त की रात को ही ऑपरेशन जीरो आवर को चलाकर सभी प्रमुख भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी ऑपरेशन के तहत राजेन्द्र को भी गिरफ्तार पर बांकीपुर सेंक्ट्रल जेल भेज दिया गया जहाँ से लगभग 3 साल वाद 15 जून, 1945 को रिहा किया गया।

संविधान सभा

2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में 12 नामांकित मंत्रियों की अंतरिम की स्थापना के बाद उन्हें खाद्य एवं कृषि विभाग को सौंपा गया।

11 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा की दूसरी बैठक के दौरान राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया। संविधान सभा को ही देश के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने का काम सौपा गया था।

राष्ट्रपति

24 जनवरी 1950 को राजेन्द्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए, वह भारत के एक मात्र राष्ट्रपति रहे हैं जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति के पद पर रहें उनका पहला कार्यकाल 1952 से 1957 तक और दूसरा कार्यकाल 1957 से 1962 तक रहा।

हिन्दू कोड बिल के मामलों पर राजेन्द्र प्रसाद और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के बीच विवाद हो गया दरअसल जवाहरलाल नेहरु हिन्दू कोड बिल लाना चाहते थें। इस बिल में तुष्टीकरण वाले राजनीती की छवि स्पस्ट रूप से दिख रही जिसे राजेन्द्र प्रसाद ने विरोध किया किन्तु विरोध के बाबजूद भी हिन्दू कोड बिल पास हो गया।

12 वर्षों तक राष्ट्रपति के पद पर रहने के बाद 1962 में राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत्त हो गए सेवानिवृत्त के उपरांत सन् 1962 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अंतिम दिनों में

कर्मठ और अपने कार्य के प्रति समर्पित राजेन्द्र प्रसाद 14 मई 1962 को अपने अंतिम दिनों में वापस पटना लौट आये और बिहार विद्यापीठ में रहने लगे।

राजेन्द्र प्रसाद (Rajendra prasad) की पत्नी राजवंशी देवी के मृत्यु के लगभग 4 माह उपरांत 28 फरवरी 1963 को 78 वर्ष की आयु में हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया उन्हें पटना के महाप्रयाण घाट में दफनाया गया।

इंडिया डिवाइडेड, चंपारण में सत्यागाह, महात्मा गाँधी एंड बिहार उनकी चर्चित रचनाओं में के एक है।

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