चोल वंश का इतिहास : Chol vansh

Chol vansh : चोल साम्राज्य का विस्तार उत्तर में पेन्नार नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी के बीच स्थित था। इस पुरे क्षेत्र को चोलमंडलम नाम से जाना जाता है। चोल की प्रारंभिक जनकारी संगम साहित्य से मिलता है इस साहित्य में उल्लेख किया गया है की दक्षिण भारत मे उस समय चोल के शासक का नाम करिकाल था।

चोल वंश (Chol vansh)

तीसरी शताब्दी तक संगम युग था उसके बाद करीब चोल का जिक्र मिलता है उसके बाद चोलो की जानकारी सीधे 9वीं शताब्दी में मिलती है। इस बीच 6 शताब्दी तक जो गैप रहा उसके बारे में किसी प्रकार की जनकारी नहीं मिलती है।

शासकशासनकाल
विजयालय848 से 871 ई०
आदित्य-1871 से 907 ई०
परान्तक-1907 से 950 ई०
राजराज-1985 से 1014 ई०
राजेन्द्र-11014 से 1044 ई०
राजाधिराज-11044 से 1054 ई०
राजेन्द्र-21054 से 1063 ई०
वीर राजेन्द्र1063 से 1067 ई०
अधिराजेन्द्र1067 से 1070 ई०
चोल-चालुक्य वंश 
कोलोतुंग-11070 से 1120 ई०
विक्रम चोल1120 से 1133 ई०
कोलोतुंग-21133 से 1150 ई०
राजाराज-21150 से 1173 ई०
राजाधिराज-21173 से 1182 ई०
कोलोतुंग-31182 से 1216 ई०
राजाधिराज-31216 से 1250 ई०
राजेन्द्र-31250 से 1279 ई०

9वीं शताब्दी में चोल वंश का संस्थापक वियायालय था।

चोल साम्राज्य का स्वतंत्र संस्थापक आदित्य-1 था।

चोल का वास्तविक संस्थापक परान्तक-1 था।

विजयालय (848 से 871 ई०)

विजयालय चोल वंश के संस्थापक थे इस वंश की की स्थापना से पहले विजयालय पल्लव शसकों के सामंत थे।

चोल वंश की प्रथमिक राजधानी उरैयुर था बाद इन्होने तंजौर (तंजावुर) पर विजय प्राप्त कर उसे अपनी राजधानी बनाया। तंजौर पर विजय के उपरांत विजयालय ने ‘नरकेसरी’ की उपाधि धारण किया।

आदित्य-1 (871 से 907 ई०)

इसने अंतिम पल्लव शासक अपराजित वर्मन को हरा कर स्वतंत्र चोल साम्राज्य की स्थापन किया। इस उपरांत “कोदण्डराम” की उपाधि धरण किया।

परान्तक-1 (907 से 950 ई०)

परान्तक-1 ने मदुरै में पाण्ड्य शासक राजसिंह-2 को पराजित कर “मदुरैकोंण्ड” की उपाधि धारण किया। 915 ई० में हुए वेलुर के युद्ध में परान्तक-1 ने पाण्ड्य और श्रीलंका के संयुक्त सेनाओं को पराजित किया। लेकिन इसी युद्ध के बाद चोल और श्रीलंका के बीच एक लम्बा संघर्ष चलता रहा।

949 ई० में हुए तोक्ल्लम के युद्ध में राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण-3 ने पक्षिमी गंग वंश के साथ संधि कर परान्तक-1 को पराजित किया और चोल के उत्तरी सीमा को छीन लिया। इसी हार के कारण 953 ई० में परान्तक-1 की मृत्यु हो जात है।

तंजौर के चिदम्बरम मंदिर का निर्माण परान्तक-1 ने करवाया था।

राजराज-1 (985 से 1014 ई०)

यह चोल वंश का सबसे प्रतापी शासक था इसने चेर वंश के शासक की नौ-सेना को कंड्लुर में पराजित कर “कंड्लुर शालैकलमरुत” की उपाधि धारण किया। चेर वंश की नौ-सेना दक्षिण भारत की सबसे शक्तिशाली नौ-सेनाओं में से एक थी।

इसने श्रीलंका के राजा महेंद्र पंचम को युद्ध में पराजित कर श्रीलंका के उत्तरी भाग को अपने साम्राज्य में मिला लिया और उत्तरी श्रीलंका का नाम बदलकर कर मुम्ड्डीचोल मंडलम रख दिया।

उस समय श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर से पोल्नरुआ स्थानांतरित कर दिया और पोल्नरुआ का नाम बदलकर जयनाथांगलम कर दिया। यहीं पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया और “शिवपाद्शेखर” की उपाधि धारण किया।

प्राप्त प्रमाण के अनुसार व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से राजराज-1 ने कलिंग और कई द्वीपों को जीत लिया था।

राजाराज-1 ने तंजौर में एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे बाद में “वृहदेश्वर मंदिर” कहा जाने लगा।

इतिहास लिखने की विशिष्ट कला “एतिहासिक प्राक्कथन” की शुरुआत राजाराज-1 के समय हुआ।

मोम्मांडि चोलदेव, जयगोंडा और चोलमार्तण्ड की उपाधिय धारण किया।

राजराज-1 ने अपने दूत को चीन भेजा था।

राजेन्द्र-1 (1044 से 1054 ई०)

अपने राजा बनने के पांचवे वर्ष वाद श्रीलंका पर आक्रमण कर श्रीलंका के राजा महेंद्र पंचम को बंदी बना लिया और पुरे श्रीलंका को अपने राज्य में मिला लिया।

पाण्ड्य और चेर राजाओं को हराकर अपने पुर्त “राजाधिराज” को पाण्ड्य प्रदेश का शासक घोषित कर दिया और उसे ‘चोल-पाण्ड्य’ की उपाधि दे दिया।

इन्होने उत्तरापथ की तरफ अभियान चलाया और बंगाल के पाल vवंश के शासक महिपाल को पराजित कर ‘गंगैकोंड’ की उपाधि धारण किया।

1035 ई० में श्रीविजय साम्राज्य के शासक कुलोतुंगवर्मन को पराजित कर मलाया प्रायद्वीप, सुमात्रा एवं जावा को अपने राज्य में मिला लिया।

इसके शासनकाल में वैदिक शिक्षा एवं दर्शन का विकास हुआ, वैदिक साहित्य के अध्यन के लिए विशाल विद्यालय का निर्माण करवाया था।
सिचाई के लिए ‘चोलागंगम’ झील का निर्माण करवाया था।

राजाधिराज-1 (1044 से 1054 ई०)

इसने कल्याणी पर विजय के उपरांत अपना राज्याभिषेक करवाया तथा “विजय राजेन्द्र” की उपाधि धारण किया।

राजाधिराज-1 को युद्ध में पराजित करने के लिए श्रीलंका, चेर एवं पांड्य के शासकों ने संयुक्त रूप से एक सेना बनायीं थी। परंतु राजाधिराज-1 ने इन संयुक्त सेनाओं को युद्ध पराजित कर दिया।

कल्याणी के चालुक्य शासकों के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहा अंततः कोप्पम के युद्ध में राजाधिराज-1 की मृत्यु हो गया।

राजेन्द्र-2 (1054 से 1067 ई०)

राजाधिराज-1 के पुत्र राजेन्द्र-2 ने पोप्पम के युद्ध को जारी रखा और 1062 ई० संगमम के युद्ध में चालुक्य शासक सोमेश्वर-1 को पराजित कर किया।

कोल्हापुर में जयस्तंभ का निर्माण कर “प्रकेसरी” की उपाधि धारण किया।

वीर राजेन्द्र (1063 से 1067 ई०)

इसने राजकेसरी की उपाधि धारण किया और अपने चोल साम्राज्य के विस्तार के लिय अपनी पुत्री का विवाह कल्याणी के चालुक्य वंश में किया।

वीर राजेन्द्र शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण कल्याणी के चालुक्य नरेश सोमेश्वर की युद्ध की चुनौती को अस्वीकार कर देता है। अंततः वीर राजेद्र स्वंय को अपमानित महसूर करने के कारण तुंगभद्र नदी में आत्महत्या कर लिया।

अधिराजेंद्र (1067 से 1070 ई०)

अधिराजेंद्र विजयालय द्वारा स्थापित चोल वंश (chol vansh) का अंतिम शासक था इनकी मृत्यु इन्ही के शासनकाल में हुए जन विद्रोह में हो गया।

चोल-चालुक्य वंश

पूर्वी चालुक्य की रानी मधुरान्तिका और चोल शासक राजेन्द्र-2 के विवाह के उपरांत चोल-चालुक्य वंश की स्थापना हुआ।

कुलोतुंग-1 (1070 से 1120 ई०)

इन्होने कलचुरी के शासक यश: कर्णदेव और कलिंग नरेश अनंत्वर्मन को पराजित किया “

इसी के शासनकाल में श्रीलंका के राजा विजयाबाहू ने अपनी स्वंतत्रता की घोषणा किया

भूराजस्व निर्धारण के लिए पुनः भूमि सर्वेक्षण करवाया।

व्यापार के सुबिधा के लिए चुनगियों और तटकारों को समाप्त कर दिया इसके उपरांत ‘शुंगमतविर्त” की उपाधि धरान किया अर्थात करों को हटाने बाला।

विक्रम चोल (1120 से 1133 ई०)

चिताम्बरम में स्थित नटराज अमंदिर का पुन:जीर्णोद्धार करवाया।

प्रजा से जवरण कर बसूलने और मंदिरों में स्थापित प्राचीन वैष्णव मूर्ति को समुद्र में फेक्वा के कारण इसे “त्याग समुद्र” की उपाधि दिया गया।

कुलोत्तुंग-2 (1133 से 1150 ई०)

इसने भी गोविन्द राज की मूर्ति को समुद्र में फेकबा दिया था, यह और इसके सामंत ने ओट्टाक्कुट्टन, सेक्किलर और कंबन को संरक्षण दिया।

राजाराज-2 (1150 से 1173 ई०)

यह अयोग्य और कमजोर शासक था अतः इसके शासनकाल के समय शक्तिशाली सामंतों का उदय होना शुरू हो गया।

राजाधिराज-2 (1173 से 1182 ई०)

इसके शासनकाल में पांड्य वंश (पडोसी राज्य) में उत्तराधिकारी को लेकर विवाद हो गया, इस विवाद में राजाधिराज-2 ने वीर पाण्ड्य का सहयोग किया। वीर पांड्य शासक बना।

कुलोत्तुंग-3 (1182 से 1216 ई०)

यह चोल वंश (chol vansh) का अंतिम महान शासक था, इसने पाण्ड्य वंश के राजा वीर पांड्य को पराजित किया। वीर पांड्य वही राजा है जोकि राजाधिराज-2 के सहयोग से पाण्ड्य वंश का राजा बना था।

जटावर्मन कुलशेखर के नेतृत्व में 1205 ई० में पाण्ड्यों ने इसे पराजित कर दिया।

राजाधिराज-3 (1216 से 1250 ई०)

यह कमजोर शासक था अतः पाण्ड्य नरेश सुन्दर ने आक्रमण कर राजाधिराज-3 को वंदी बना लिया।

राजेन्द्र-3 (1250 से 1279 ई०)

यह चोल वंश (chol vansh) का अंतिम शासक था, इसके शासनकाल में पाण्ड्य शासकों ने आक्रमण कर चोल साम्राज्य पूरी तरह से अपने राज्य में मिला लिया।

नोट – चोल अपने नौ-सैनिक शक्ति के लिए प्रसिद्ध था

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