चेर वंश का इतिहास : Cher vansh

चेर वंश (cher vansh) का प्रतीक धनुस था इसका प्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राहमण में मिलाता है इसके अलावे रामायण, महाभारत, संगमकालीन साहित्य, अशोक के शिलालेख एवं कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में मिलाता है।

अशोक के शिलालेख में चेरों का वर्णन केरल पुत्र के नाम से किया गया है शायद ऐसा इसलिए क्योंकी इसका विस्तार आज के मालवर से कोंकण और त्रावन से कोच्ची तक था।

उदियन जेरल (Cher vansh)

प्राप्त जानकारी के अनुसार उदियन इस वंश का प्रथम शासक था जो प्रसिद्ध तेलगु कवि परनार के समकालीन थे। इन्होने महाभारत के युद्ध में लड़नेवाले सभी वीरों को भोजन करवाया था अतः इसे महाभोजक की उपाधि से सम्मानित किया गया।

नेयुन जेरल आदन

इसने अपने पडोसी राज्यों पर आक्रमण कर वहाँ से यवन व्यापारिओं को बंदी बना और इसे छोड़ने के बदले में अधिक धन मांग लिया। अतः चोलों के साथ युद्ध करना पड़ा और इसी युद्ध में नेयुन जेरल आदन की मृत्यु हो गया।

नोट – नेयुन जेरल आदन ने अधिराज की उपाधि धारण किया था।

सेनगुटबन

सेनगुटबन को लालचोर के नाम से भी जाना जाता था यह अपनी नौसेना शक्ति के लिए प्रसिद्ध था इसी नौसेना की मदद से महुर प्रान्त को जीतकर चेर राज्य क्षेत्र में मिला लिया।

इसी ने दक्षिण में पत्नी पूजा (कण्डनी) की शुरुआत किया।

पेंरून जेरल इंनरपोई

इसने सामंतो की राजधानी धर्मकुट को जीतकर अपने चेर राज्य क्षेत्र में मिला लिया।

मारूनडई को अपनी राजधानी बनाया।

इसने अमरयवरम्यन की उपाधि धारण किया जिसका अर्थ होता है जिसकी सीमा हिमालय को छूता हो।

सम्भवतः गन्ना (ईख) की खेती का प्रारंभ भी इसी के शासनकाल में हुआ।

यहाँ से रोम के सिक्के भी मिले है जिससे अनुमान लगाया जाता है की चेर और रोम के व्यापारिक संवंध रहा होगा।

संगम कालीन साहित्य के अनुसार पेंरून जेरल इंनरपोई सम्भवतः यह चेर वंश का अंतिम शासक रहा।

अन्य तथ्य

  • पलयाने शैल्केल कूटबन के पास सर्वाधिक हाथी था।
  • इसमें प्रमुख शासकों का कार्यो के बारे में जनकारी दिया गया है।
  • इनमे कुछ ऐसे शब्द भिन्न हो सकता है।

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