चेदि वंश (chedi vansh), मौर्य वंश के पतन के बाद स्थापित होने बाले भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था इसकी स्थापना लगभग ईस्वी के पहली शताब्दी में यमुना नदी के दक्षिणि भाग में हुआ था जो वत्स और कुरुओं के मध्य था। हालाँकि इससे पूर्व भी इस राजवंश के बारे में जिक्र किया गया है। शिशुपाल इसी वंश का शासक था जिसे वासुदेव श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के दौरान हत्या कर दी।
मौर्य वंश के शासक अशोक के मृत्यु के बाद कलिंग पुनः स्वतंत्र हो जाता है और वहां चेदि वंश (chedi vansh) स्थापित होता है। इस बारे में जनकारी हाथी गुफा अभिलेख से मिलती है।
चेदि वंश (Chedi Vansh)
इस वंश के बारे में बौद्ध, जैन व ब्राह्मणों ग्रंथों में कई बार जिक्र किया गया यहाँ तक की ऋग्वेद में भी चेदि वंश और जातियों का उल्लेख किया गया है लेकिन इस वंश के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती।
इस राजवंश के और भी कई नाम थें जैसे चेता वंश, चेत वंश और महामेघवाहन वंश आदि। महामेघवाहन शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है शक्ति का परिवार या शासकों की शक्ति।
खारवेल (Kheravela)
हथिगुफा का शिलालेख इस वंश के बारे में जानकारी का एक मात्र मुख्य स्रोत्र है, जिसे इस वंश के तीसरे शासक “खारवेल” द्वारा बनबाया गया था।
अतः खारवेल के बारे में ही जानकारी मिलती है बाकी की अन्य शासकों के बारे में नहीं। संभवतः खारवेल चेदि वंश (chedi vansh) का सबसे महान और प्रभावशाली शासक रहा होगा। हथिगुफा शिलालेख के अनुसार खारवेल कई युद्ध किये इन्होने ने सातवाहन शासक शातकर्णी को भी पराजित किया। इस शिलालेख में खारवेल के पराजय के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता हालाँकि समय विस्तार के बार में भी कोई जानकारी नहीं मिलती।
निष्कर्ष
चेदि राजवंश भारत के सबसे महत्वपूर्ण भागों में स्थित था जिसे अलग-अलग नामों चेदि, चेरा, महामेघवाहन आदि से जाना जाता है। सूक्मतिमती इसकी राजधानी हुआ करती थी।
इस वंश की जानकारी का एक मात्र और मुख्य स्रोत्र हथिगुफा शिलालेख है जिसे खारवेल के द्वारा बनाया गया था। इसके अलावे इस वंश के बारे में कोई अधिक जानकारी नहीं मिलती।
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