औरंगजेब के मृत्यु के बाद मुग़ल शक्ति कमजोर पड़ने लगी जिससे सुदूरपूर्वी क्षेत्र धीरे-धीरे होकर स्वतंत्र होने लगें उन्हीं स्वतंत्र राज्यों में से एक राज्य बंगाल था। पूर्ण रूप से स्वतंत्र बंगाल की स्थापना का श्रेय अलीवर्दी खां को दिया जाता है हालाँकि इसकी नींब मुर्शीद कुली खां ने रखी थी।
स्वतंत्र बंगाल की स्थापना
बंगाल शुरुआत में पूर्ण रूप से स्वंतंत्र नहीं हुए क्योंकि राजस्व दिल्ली दरवार में भेजते रहें किन्तु इनका व्यवहार एक स्वतंत्र राज्य के रूप में रहा। बाद में ये पूरी तरह में मुग़ल से स्वतंत्र हो गए। जिनमे कई सूबेदारों व नायाब सूबेदारों आदि ने ने अपना योगदान दिया।
मुर्शीद कुली खां (1717 से 1727 ई०)
बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की नींब मुर्शीद कुली खां ने रखी हालाँकि यह केवल नाम मात्र का स्वतंत्र था क्योंकी राजस्व मुग़ल दरवार में भेजता रहा।
मुर्शीद कुली खां 1701 ई० में औरंगजेब द्वारा नियुक्त होने वाला अंतिम नायाब सूबेदार था, उस समय औरंगजेब का पौत्र अजीमुश्शान बंगाल का सूबेदार था।
अजीमुश्शान और मुर्शीद कुली खां के बीच कडबाहट होने के कारण 1704 ई० में मुर्शीद कुली खां राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद स्थान्तरण कर दिया।
1717 ई० में मुर्शीद कुली खां मुग़ल बादशाह फरूखसियर द्वारा बंगाल ने नियुक्त होनेवाला अंतिम सुबेदार रहा इसके बाद यह पद वंशानुगत हो गया।
1719 ई० में उड़ीसा को भी बंगाल के अधीन कर दिया गया।
राजस्व व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए छोटे जमींदारों का उनमुलन व बड़े जमींदारों को प्रोत्साहीत किया तथा खालसा भूमि का विस्तार किया व इजारेदारी प्रथा को बढ़ावा दिया।
मुर्शीद कुली खां के समय तीन विद्रोह हुए
- पहला विद्रोह सीताराम राय उदय नारायण और गुलाम मुहम्मद ने किया
- दूसरा विद्रोह शुजात खां
- तीसरा नजात खां
शुजाउद्दीन (1727 से 39 ई०)
यह मुर्शीद कुली खां का दामाद था, इसी के समय मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने 1733 ई० में बिहार को भी बंगाल के अधीन कर दिया।
1732 ई० में शुजाउद्दीन अलीवर्दी खां को बिहार का नयाव सूबेदार बनाया।
सरफराज (1739 से40 ई०)
शुजाउद्दीन का पुत्र सरफराज बंगाल का अगला नवाब बना, इसने आलम-उद-दौला हैदर जंग की उपाधि धारण की ।
सरफराज को बिहार के नायाब सूबेदार अलीवर्दी खां ने 1740 में घेरिया (गिरिया) के युद्ध में पराजित कर हत्या कर बंगाल का नबाव बना।
अलीवर्दी खां (1740 से 56 ई०)
अलीवर्दी खां ने बंगाल को दिल्ली से पूर्ण स्वतंत्र हो गया अतः इसे बंगाल की वास्तविक स्वतंत्रता का जन्मदाता कहा जाता है। हालाँकि प्रारंभ में नजराने के रूप में दो करोड़ रुपये दिल्ली दरवार में भेजे बाद में नजराने भेजने तथा नियुक्तियों के लिए अनुशंसा प्राप्त काना बंद कर दिया।
मराठा सरदार रघुजी भोंसले ने अपने वित्त मंत्री भास्कर पंत को चौथ वसूली के लिए भेजा दो 1744 ई० में भास्कर पंत की हत्या कर दी। अतः मराठों ने बंगाल पर आक्रमण कर दिया जिससे परेशान होकर अलीवर्दी खां ने 1751 में मराठों से सन्धि कर ली।
सन्धि के तहत वह मराठों को 12 लाख रुपये प्रतिवर्ष देने को तैयार हो गया तथा उड़ीसा को इस शर्त पर दिया की वह बंगाल में कभी प्रवेश नहीं करेगा।
अलीवर्दी खां ने अंग्रेजों द्वारा कलकाता तथा फ्रांसिसियों द्वारा चन्द्रनगर की किलेबंदी का विरोध किया जिसे फ़्रांसिसी मान गए किन्तु अंग्रेज नहीं माने।
मृत्यु के पूर्व ही अलीवर्दी खां अपने नाती सिराजुद्दौला को उत्तराधिकारी नियुक्त किया किन्तु पुर्णियां के फौजदार शौकत जंग तथा अलीवर्दी खां की बेटी घसीटी बेगम ने इसका विरोध किया और षड्यंत्र रचने लगा जिसका लाभ अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी मजबूत कर ली।
अलीवर्दी खां ने यूरोपीय के बारे में कहा था कि ‘ये मधुमक्खी के सामान है, न छेड़ा जाय तो शहद देंगी और यद् छेड़ा जाय तो वो डंक मारेगी।
अलीवर्दी खां ने कहा ‘वह अंग्रेजों को बंगाल भूमि से निकाल तो सकता है, परंतु समुद्र में आग लग जाएगी’
सिराजुद्दौला ने कहा “अंग्रेज, फ़्रांसिसी और डच को एक साथ निर्बल मत करना, तीनों में अंग्रेज सबसे सशक्त है, पहले उसका अंत करना।
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