बौद्ध धर्म : Baudh Dharm in hindi

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में मध्य गंगा के मैदानों में कई सम्प्रदायों का उदय हुआ जिसमे बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) उन्हें में से एक है जिसकी स्थापना सिद्धार्थ ने किया जो ज्ञान के प्राप्ति के बाद बुद्ध कहलाए।

Baudh Dharm

इस धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे बुद्ध का अर्थ होता है ‘जाग्रत’ अथवा प्रकाशमान। गौतम बुद्ध का जन्म शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के समीप लुम्बनी (नेपाल) में हुआ था।

इस लेख में दी गई जानकारी

  • बौद्ध धर्म का परिचय
  • धर्म चक्र प्रवर्तन
  • महापरिनिर्वाण
  • बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ व प्रतीक चिन्ह
  • अष्टांगिक मार्ग
  • त्रिरत्न
  • दस शील
  • बौद्ध संघ
  • स्तूप चैत्य एवं विहार
  • बौद्ध धर्म का प्रचार एवं संगीति
  • हीनयान
  • महायान
  • हीनयान और महायान में अंतर
  • वज्रयान सम्प्रदाय
  • बौद्ध साहित्य
  • बौद्ध धर्म के पतन के कारण
  • बौद्ध धर्म अन्य तथ्य

गौतम बुद्ध का जन्म छठी शताब्दी में 563 ई० पूर्व में नेपाल के लुम्बनी में हुआ इनके के बचपन का नाम सिद्धार्थ था इनके पिता सुधोधन कपिल वास्तु के राजा थे उनकी पत्नी अर्थात गौतम बुद्ध के माना का नाम महामाया देवी थी जोकि कोलिय वंश से संबंधित थी, सिद्धार्थ के जन्म के 7वें दिन ही महामाया देवी की मृत्यु हो गई। तब पिता सुधोधन ने बच्चे के लालन-पालन के लिए प्रजापति गौतमी (सिद्धार्थ के मौसी) से विवाह किए अतः उनका पालन-पोलण सौतेली माता प्रजापति गौतमी के द्वारा किया गया।

सिद्धार्थ के जन्म पर पिता सिधोधन कालदेव तथा कौन्डिल नामक ब्राह्मण से सिद्धार्थ सिद्धार्थ की कुंडली दिखाई तो ऋषि कौन्डिल ने भविष्वाणी किया की यह वालक चक्रवर्ती राजा या सन्यासी, सन्यासी की बात सुनकर सुधोधन काफी चिंतित रहने लगें। अतः पिता सुधोधन ने अपनी संकाओं को दूर करने के लिए मात्र 16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से करवा दिया, गौतम बुद्ध को एक पुत्र की प्राप्त हुई जिसका नाम राहुल था राहुल का अर्थ होता है “एक और बंधन”।

एक दिन सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) जब वगीचे बैठे थे, तब उन्होंने चार दृश्य देखे जिसे देखने का बाद उनमे वैराग की भावना जाग गई।

  • वृद्ध व्यक्ति
  • बीमार व्यक्ति
  • मृत व्यक्ति
  • प्रसन्न मुद्रा में एक सन्यासी (प्रसन्न)

अतः उन्होंने 29 वर्ष की आयु में संन्यास लेने के लिए घर त्याग कर दिए जिसे बौद्ध धर्म में माहानिष्कर्मण कहा गया।

गृह त्याग के वाद सर्वप्रथम वह अनुपिय नामक आम्र उद्याण में कुछ दिनों के लिए रुकें। उसके बाद वैशाली के समीप उनका मुलाक़ात सांख्य दर्शन के आचार्य अलार कलाम से हुआ और उनके सांख्य दर्शन की शिक्षा लिए अतः अलार कलाम उनके संन्यास जीवन के प्रथम गुरु बने। आगला मुलाक़ात राजगृह में रुद्राकरामपुत्र से हुए और उनसे भी शिक्षाएँ प्राप्त किए यह उनके दुसरे गुरु थे लेकिन सिद्धार्थ इतने से भी संतुष्ट नहीं थे।

अतः सिद्धार्थ ने बोधगया (बिहार) में 6 वर्षों के अथक परिश्रम व कठोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात पीपल वृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् वह ‘बुद्ध’ नाम से प्रसिद्ध हुएं इस घटना को बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया।

ज्ञान की प्राप्ति को बुद्ध धर्म में बुद्धत्व व तथागत कहा गया, बुद्धत्व अर्थात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गया और तथागत अर्थात सत्य है ज्ञान जिसका इसके अलावे गौतम बुद्ध को लाइट ऑफ़ एशिया, शाक्यमुनि आदि भी कहा जाता है।

धर्म चक्र प्रवर्तन

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् बुद्ध में सारनाथ में अपना पहला उपदेश पांच ब्राह्मण सन्यासियों को दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्म चक्र प्रवर्तन कहा गया। यहीं से सर्वप्रथम बौद्ध संघ में प्रवेश शुरू हुआ। गौतम बुद्ध के पांच शिष्यों में आनंद सबसे प्रिय शिष्य था।

ज्ञान प्राप्ति के 8वें वर्ष वैशाली के लिच्छवियों ने बुद्ध को आमंत्रित किया तथा कुटाग्रशाला नामक विहार दान में दिया। ज्ञान प्राप्ति के 20वें वर्ष बाद श्रावस्ती पहुंचे और वहाँ अंगुलिमाल नामक डाकू को अपना शिष्य बनाया।

बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कोशल की राजधानी श्रावस्ती में दिए और अपना अंतिम उपदेश कुशीनगर में सुभद्दद को दिए।

महापरिनिर्वाण

अपने शिष्य चुंद के यहाँ सुकरमाद्ददव भोज्य सामग्री खाने के बाद अतिसार रोग से ग्रसित हो गए और 483 ई० पूर्व में 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मृत्यु हो गया। जिसे बौद्ध परम्परा में महापरिनिर्वान कहा जाता है। बुद्ध के मृत्यु के बाद उनके अस्थि अवशेष के 8 भाग किए गए और उनके 8 स्तूप बनवाए गएँ।

Baudh Dharm की शिक्षाएँ व प्रतीक चिन्ह

बुद्ध में लोगों को पाली भाषा में उपदेश दिए उन्होंने ने कहा की संसार दुखमय, क्षणिक व आत्महीन है।

घटनाएँप्रतीक चिन्ह
जन्मकमल एवं सांड
गृह त्यागघोड़ा
ज्ञानपीपल का वृक्ष
निर्वाणपदचिन्ह
मृत्युस्तूप

बौद्ध दर्शन के अनुसार मानव का शारीर भौतिक तथा मानसिक तत्वों के पांच स्कंधों से निर्मित है रूप, संज्ञा, वेदना, विज्ञान, एवं संस्कार।

उपदेश के दौरान उन्होंने जीवन में चार आर्य सत्य के बारे में बताएँ

  • जीवन में दुःख है
  • दुःखों का समुदाय
  • दुःख निरोध अर्थात दुःख को समाप्त किया जा सकता है
  • दुःख निरोध का मार्ग भी है

दुखों का कारण उन्होंने तृष्णा को बताया अर्थात जीवन में जब तक लालसा बनी रहेगी तब तक जीवन में दुःख बना रहेगा। इस तृष्णा का सामपन अष्टांगिक मार्गो को पालन कर किया जा सकता है जो इस प्रकार है।

नोट विश्व दुखों से भरा है यह उपनिषद से लिया गया है।

अष्टांगिक मार्ग

गौतम बुद्ध में चतुर्थ आर्य सत्य में दुःख निरोध का उपाय बताया है इसे दुःख निरोध गामिनी प्रतिपाद कहा जाता है। इसके अलावे मध्यमा प्रतिपाद या माध्यम मार्ग भी कहा गया है। उनके इस मध्यमा प्रतिपाद में 8 सोपान है इसलिए इसे अष्टांगिक मार्ग कहते है।

  • सम्यक दृष्टि – चार आर्य सत्य पर विश्वास करना
  • सम्यक संकल्प – नैतिक और मानसिक विकास का संकलन करना
  • सम्यक वाक्य – ना झूट बोलना और नाही अपनी वाणी से किसी को कष्ट पहुँचाना
  • सम्यक कर्मात – किसी को अपने कर्म से कष्ट ना पहुँचाना
  • सम्यक अजीव – जीवकोपार्जन से किसी को हानि ना होना
  • सम्यक व्यायाम – स्वंय को वेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहना
  • सम्यक समृति – ज्ञान को समझाने के लिए बूढी का उपयोग करना
  • सम्यक समाधी – निवाण प्राप्त करना

इसके अलावे इन्होने 10 सिल या आचरण भी बताएँ जिसे मनुष्यों को अपने जीवन में लाने चाहिए सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य. अपरिग्रह, अस्ते आदि

बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति, दीवाप का बुझ जाना अर्थात जीवन मृत्यु से मुक्ति पा लेना।

त्रिरत्न

बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) के त्रिरत्न को पालन किया जाना चाहिए

  • बुद्ध
  • धम्म
  • संघ

गौतम बुद्ध के अनुसार जीवन का सबसे अंतिम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति होना चाहिए और तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को ही बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) में निर्वाण कहा गया है।

दस शील

बौद्ध धर्म में निर्वाण की प्राप्ति के लिए सदाचार व नैतिक जीवन पर अधिक बल दिया है यह दस शीलों (शिक्षपाद) का अनुशीलन नैतिक जीवन का आधार है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, असमय भोजन ना करना, व्यभिचार ना करना, मध सेवन ना करना, आरामदायक सय्या का त्याग एवं आभूषणों का त्याग।

बौद्ध संघ (Baudh Sangh)

बौद्ध धर्म में त्रिरत्न बुद्ध, धम्म व संघ का संघ महत्वपूर्ण अंग है बुद्ध ने सारनाथ में घोषित किया था की धम्म एवं संघ के निर्धारित नियम ही उनके उत्तराधिकारी हैं। इसका विवरण महापरिनिर्वान में मिलता है। 

प्रारंभ में बौद्ध संघ में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं थी किन्तु आनंद के कहने पर महिलायों को बौद्ध संघ में प्रवेश की अनुमति दिएँ। किन्तु बुद्ध ने यह भी भविष्यवाणी कर दिए थे की महिलायों के प्रवेश के 500 से 1000 वर्षों के बाद बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) का प्रभाव कम होने लगेगा।

महिलाओं को अनुमति मिलने के वाद प्रजापति गौतमी बौद्ध संघ में प्रवेश करने वाली प्रथम भिक्षुणी थी उसके बाद गौतमी की पुत्री नन्दा, यशोधरा, क्षेमा एवं आम्रपाली भी बुद्ध की शिष्य बन गई।

बौद्ध संघ में शामिल होनेवाले को उपसम्पदा कहा गया है जिसके लिए न्यूनतम आयु 15 वर्ष होनी चाहिए थी। संघ में चोर, राजा का सेवक, रोगी, ऋषि व्यक्ति आदि का प्रवेश वर्जित था

भिक्षुक – बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जो सन्यास ले लिए हो उनसे भिक्षुक कहा गया।

उपासक – गृहस्त जीवन विताते हुए जो बौद्ध धर्म का प्रचार करता हो उसे उपासक कहा गया।

किसी खास अवसर पर बौद्ध भिक्षुकों को एकत्र होकर चर्चा करने को उपोसथा कहा गया है।

बौद्ध धर्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन व त्याहार वैशाखी पूर्णिमा है क्यों की इसी दिन जन्म, ज्ञान की प्राप्ति, मृत्यु तीनों ही वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ इसलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

स्तूप चैत्य एवं विहार

स्तूप का शाब्दिक अर्थ है – किसी वास्तु का ढेर, स्तूप का विकास संभवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ जिसका निर्माण मृत्यक के चुनी हुई अस्थियों से रखने के लिए किया जाता था। मुख्यतः इसे चार भागों में विभाजित किया गया है।

शारीरिक स्तूपयह प्रधान स्तूप होता था जहाँ बुद्ध के शरीर, दन्त एवं केस आदि रखे जाते थे।

पारिभोगिक स्तूपइस स्तूप में महात्मा बुद्ध के द्वारा उपयोग किए गए वस्तुओं जैसे की भिक्षा पात्र, संघाटी एवं पादुका आदि।

उद्देशिका स्तूपइसका संवंध बुद्ध के जीवन से जुड़े घटनाओं को स्मृत से जुड़े स्थानों से था।

पुजार्थक स्तूपजिसका निर्माण बुद्ध के श्रधा वशीभूत धनवान व्यक्तियों के द्वारा तीर्थ स्थानों पर होता था।

चैत्यअंतिम संस्कार के बाद बचे हुए अवशेषों को जमीन में गाढ़कर उन्ही के ऊपर जो समाधियाँ बनाई गई उसे ही चैत्य या स्तूप कहा गया ।

विहारचैत्य या स्तूपों के समीप बौद्ध भिक्षुओं के लिए जो आवास बनाया जाता था उसे विहार कहा गया। चैत्य के उपासना स्थल में परिवर्तन हो जाने के कारण विहार का निर्माण होने लगा।

स्तूप निर्माण के महत्वपूर्ण हिस्से

  • वेदिका (रेलिंग) का निर्माण स्तूप के सुरक्षा के लिए होता है।
  • मघी (कुर्सी) वह चबूतरा जिस पर स्तूप का मुख हिसा आधारित होता है।
  • अण्ड स्तूप का अर्ध गोलाकार हिस्सा होता है।
  • छत्र धार्मिक चिन्ह का प्रतीक होता है।
  • यष्टि छत को सहारा देने के लिए होता है।
  • सोपान मगही पर चढ़ने-उतरने के हेतु सीढ़ी

बौद्ध धर्म का प्रचार (Baudh Dharm ka Prachar)

गौतम बुद्ध के मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए चार संगीतियों का आयोजन किया गया। किन्तु बौद्ध धर्म के विभाजन के लक्ष्ण द्वितीय सभा के दौरान ही दिखनी लगी एक महासंगिक जोकि बदलते समय के अनुसार बौद्ध धर्म में नए विचारधारा को जोड़ना चाहते थे तो वहीँ दुसरा पक्ष हीनयान या रुढ़िवादी थे और वह गौतम बुद्ध के द्वारा दिए गए उपदेशो के अनुसार पुराने विचारधार को मानते थे। अतः आगे चलकर बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) दो भागों में विभाजित हो गया एक हिनायाण तथा दूसरा महायाण ।

क्रमवर्षस्थानशासनकालअध्यक्षप्रमुख्य कार्य
प्रथम483 ईसा पूर्वराजगृह (बिहार)अजातशत्रुमहाकल्पबुद्ध के उपदेशों को सुतपिटक और विनयपिटक में अलग-अलग सकलित किया गया
द्वितीय383 ईसा पूर्ववैशाली (बिहार)कालाशोकशावाकामीभिक्षुओं में मतभेत के कारण स्थविर एवं महासंघिक में विभाजन
तृतीय247 ईसा पूर्वपाटलिपुत्र (बिहार)अशोकमोगलीपुत्र तीस्यअभिधम्मपीटक का संकलन
चतुर्थ102 ईस्वीकुण्डलवन (कश्मीर)कनिष्कवसुमित्र (अध्यक्ष)/अश्वघोषबौद्ध संघ का हीनयान एवं महायान में विभाजन

प्रथम सांगीति – 483 ईसा पूर्व में अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह (बिहार) में महाकल्प के अध्यक्षता में किया गया महत्वपूर्ण घटना – बुद्ध के उपदेशों को सुतपिटक और विनयपिटक में अलग-अलग सकलित किया गया।

द्वितीय संगीति – 383 ईसा पूर्व में कालाशोक के शासनकाल में वैशाली (बिहार) में शावाकामी के अध्यक्षता में किया गया। महत्वपूर्ण घटना – भिक्षुओं में मतभेत के कारण स्थविर एवं महासंघिक में विभाजन ।

तृतीय संगीति – 247 ईसा पूर्व में अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र (बिहार) में मोगलीपुत्र तीस्य के अध्यक्षता में किया गया। महत्वपूर्ण घटना – अभिधम्मपीटक का संकलन ।

चतुर्थ संगीति – 102 ईस्वी में कनिष्क के शासनकाल में कुण्डलवन (कश्मीर) में वसुमित्र एवं अश्वघोष (अध्यक्ष) के अध्यक्षता में किया गया। महत्वपूर्ण घटना – बौद्ध संघ का हीनयान एवं महायान में विभाजन ।

माना जाता है की अभिधम्मपिटक का संकलन अशोक के समय आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति के दौरान मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा किया गया।

हीनयान

हीनयाण रूढ़िवादी विचारधार के थे उनका मानना था की गौतम बुद्ध ने जो उपदेश दियें है हम उन्ही विचारों को मानेंगे। इस शाखा के अनुसार गौतम बुद्ध को केवल एक महापुरुष के रूप में माना गया, देवता के रूप में कभी नहीं स्वीकारा क्योंकी बुद्ध नास्तिक साम्प्रदाय को स्वीकारा थें अतः देवता के अस्तित्व को नहीं मानतें थे इसलिए मूर्ति पूजा नहीं करते थे। हीनयाण के लोग श्रीलंका, दक्षिण भारत, वर्मा, थाईलैंड आदि में पाए जातें हैं।

हीनयान के दो प्रमुख सम्प्रदाय है – वैभाषिक और सौतान्त्रिक

वैभाषिकविश्वास्शास्त्र पर आधारित होने के कारण इसे वैभाषिक कहा गया इस सम्प्रदाय की उत्तपत्ति मूल रूप से कश्मीर में हुआ।

सौतान्त्रिकइस सम्प्रदाय का आधार सूत्र (सूत) पीटक है अतः इसे सौतान्त्रिक कहा गया इसके प्रवर्तक कुमारलात थे।यह चित एवं बाह्य जगत दोनों की सत्ता में विश्वास करते हैं।

इसके अलावे स्थविरवादी, सर्वास्तिवादी एवं समित्या हीनयान के अन्य प्रमुख उपसम्प्रदाय है।

नोट हीनयान की सबसे बड़ा विशेषता था की वो बोधुसत्व को प्राप्त करना चाहते थे अर्थात ऐसा व्यक्त जो स्वंय निर्वाण प्राप्त कर चूका है पर अन्य लोगो की सहायता करता है जैसे बुद्ध खुद निर्वाण प्राप्त कर गए और दूसरों को भी निर्वाण प्राप्त करने के लिए मदद करते रहें।

महायान

महायाण परिवर्तन को स्वीकार करतें थे और स्थितियों के अनुसार धर्म में बदलाब को स्वीकार करतें थे! इस शाखा ने गौतम बुद्ध को एक देवता तथा अवतार के रूप में मानतें थे अतः बुद्ध की मूर्ति बनाकर पूजा करने लगें। महायाण के लोग उत्तर भारत, चीन, जापान, तिब्बत आदि में पाए जाते हैं ।

महायान सम्प्रदाय के दो मुख भाग है – शून्यवाद या माध्मिका एवं विज्ञानवाद या योगाचार।

शून्यवाद या माध्मिका इसके प्रवर्तक नागार्जुन थे इनकी प्रसिद्ध कृति माध्मिक कारिका है इसे ही सापेक्षवाद कहा जाता है। इनके अनुसार प्रत्येक वस्तु का अर्थ विनाशवाद नहीं है वल्कि शुन्यता के दो प्रकार के स्तित्व शुन्यता एवं विचार शुन्यता माना गया है।

विज्ञानवाद या योगाचार – इसका विकाश ईस्वी के तीसरी सदी में मैत्रेयनाथ द्वारा किया गया यह मत चित अथवा विज्ञान को ही एकमात्र सत्ता मानता है। इसमें योगाभ्यास तथा आचरण पर ही अधिक बल दिया गया है। असंग द्वरा लिखित सुत्रलंकार इससे संवंधित सबसे प्रचीनतम ग्रन्थ है।

आगे चलकर गुप्त काल के पश्चात बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) पर तांत्रिक प्रभाव के कारण महायान सम्प्रदाय – मंत्रयान, वज्रयान एवं सहजपान आदि में विभाजित हो गया।

नोटमहासायण सम्प्रदाय में गौतम बुद्ध की मूर्तियों की निर्माण की एक परम्परा शुरू हुआ और सबसे अधिक मुतियाँ गंधार शैली में बनाया गया था अतः गंधार शैली को बुद्ध से भी जोड़कर देखा जाता है।

हीनयान एवं महायान में अंतर

हीनयानमहायान
बुद्ध एक महापुरुषबुद्ध एक देवता
आदर्श – अर्हत को प्राप्त करनाआदर्श – बोधिसत्व को प्राप्त करना
मूर्ति पूजा एवं भक्ति में विश्वास नहींमूर्ति पूजा एवं मोक्ष्य के लिए बुद्ध की कृपा
साहित्य – पाली भाषा मेंसाहित्य – संस्कृत भाषा में
व्यक्तिवादी धर्म (सभी को अपने प्रयत्यनों से मोक्ष प्राप्त करना चाहिए)परसेवा एवं परोपकार पर बल (उद्देश्य – समस्त मानव जाती का कल्याण)

वज्रयान सम्प्रदाय

बौद्ध धर्म में तंत्र-मन्त्र व कर्म-कांड बढ़ने के कारण 6ठी शताब्दी अर्थात गुप्त काल में वज्रयान सम्प्रदाय को उदय हुआ जोकि बाद में बौद्ध धर्म के पतन का कारण बना।

8वें शताब्दी में कश्मीर के सर्वज्ञमित्र नामक व्यक्ति ने बौद्ध सम्प्रदाय में तंत्रवाद को अपनाया इस पन्थ में पुरुष के साथ – साथ स्त्री की कल्पना भी जोड़ी गई।

बौद्ध साहित्य (Baudh Sahitya)

महात्मा बुद्ध के मृत्यु के बाद आयोजित बौद्ध संगीतियों में संकलित किए गए त्रिपटक बौद्ध धर्म का पवित्र ग्रन्थ है संभवतः यह बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन धर्म ग्रन्थ भी है। इन तीनों पुस्तकों की रचना पाली भाषा में किया गया है। त्रिपिटक – सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक

सुत्तपिटक का अर्थ है – धर्मोपदेश यह पांच निकार्यों में विभाजित है।

  • दीर्घ निकायगध एवं पध दोनों में रचित दीर्घनिकाय में अन्य धर्मों के सिद्धांतों को खण्डन और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का समर्थन किया गया है।
  • मझिम निकाय इसमें बुद्ध को कहीं साधारण तो कहीं अलौकिक देव के रूप में वर्णन किया गया है।
  • संयुक्त निकायगध और पध दोनों शैलियों के प्रयोग वाला इस निकाय अनेक संयुक्तों का संकलन किया गया है।
  • अंगुतर निकाय बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में कही जानेवाली बातों का वर्णन है इसी में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
  • खुद्दक निकाय इसे कई ग्रंथों का संकलन माना जाता है जैस कि – जातक धम्मपद, यथा, विभंवनवत्थु, थेरीगाथा एवं सुत्तनिपात आदि।

विनयपिटक बौद्ध मठों में रहने वाले भिक्षु व भिक्षुणियों के अनुशासन संबंधी नियम तथा संघ की कार्य प्रणाली व्यवस्था का उल्लेख किया गया है ।

अभिधम्मपिटकइसमें बुद्ध के उपदेशों, सिद्धांतों तथा बौद्ध संतों की दार्शनिक व्याख्या किया गया है।

पीटकसंवंध
सूत पीटकबुद्ध के उपदेश का संग्रह
विनय पीटकसंघ के नियमो का संग्रह
अभिधम पीटकबुद्ध के दार्शनिक विचार

माना जाता है की इस पिटक का संकलन अशोक के समय आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति के दौरान मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा किया गया।

मिल्लिंदपन्होंयह नानसेन की रचना है इस रचना में यूनानी शसक मिनान्डर ने नानसेन से बौद्ध धर्म से संवंधित कुछ प्रश्न किए और नानसेन ने उसके उत्तर दिए उसी प्रश्नों और उत्तरों का संकलन मिलिन्दपन्हो में किया गया है। (इसके बाद मिनान्डर बौद्ध धर्म को अपना लिया)

इसके अलावे प्रथम दो शताब्दीयों के भारतीय जनजीवन के विषय के बारे में भी जानकारी मिलती है।

दीपवंशचौथी शताब्दी में रचित सिंहल द्वीप के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करने वाल संभवतः यह प्रथम ग्रन्थ है।

महावंश5वीं व 6ठी शताब्दी में रचित इस ग्रन्थ में मगध के राजयों के क्रमबद्ध सूचि मिलती है।

महावस्तुयह विनयपिटक से संबंधित ग्रन्थ है।

Baudh Dharm ka Patan

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के तो कई कारण रहें किन्तु जो सबसे बड़े कारण रहे वह है बौद्ध धर्म लोगों का विश्वास क्योंकी जब बौद्ध धर्म की स्थापना हुई उस समय ब्राह्मण व क्षत्रिय के बीच वर्चस्व का संघर्ष था साथ ही कर्म-कांड भी बढ़ गया था अतः समाज में अशांति होने के कारण भारत में बौद्ध धर्म का तेजी से विस्तार हुआ हालाँकि इसका सर्वाधिक अधिक प्रभाव महिलायों व शुद्रो पर पड़ा।

प्रारंभ में बौद्ध धर्म में कर्म-कांड नहीं था किन्तु बाद में इस धर्म में भी कर्म-कांड बढ़ गया साथ ही बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया अतः लोगों जिस प्रसानी के कारण बौद्ध धर्म में आये थे वह स्थास्थिति हो गया इस कारण बौद्ध धर्म से लोगों का विश्वास कम होने और भारत में बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) का पतन हो गया। इसके अलावे और भी कई कारण रहें जैसे कि –

  • बौद्ध भिक्षु आम लोगो से दूर रहने लगें
  • भक्तों से अधिक दान लेना
  • मूर्ति पूजा का आरंभ
  • ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान
  • बौद्ध विहारों में कुरीतियाँ
  • शासकों का बौद्ध विरोधी दृष्टिकोण

Baudh Dharm अन्य तथ्य

  • गौतम बुद्ध के द्वारा पहला उपदेश सारनाथ में दिया गया इसलिए सारनाथ को ऋषिपतन भी कहा जाता है।
  • बौद्ध और जैन धर्म दोनों ही पूर्व जन्म पर पर विश्वास करती है शुरुआत में ये दोनों धर्म मूर्ति पुर्जा को नहीं मानती थी किन्तु बाद में मानने लगी।
  • जातक कथा में बुद्ध के पूर्वजन्म के बारे में जनकारी मिलती है। अतः इसे बौद्धों का रामायण कहा जाता है।
  • पाली भाषा का प्रयोग बुद्ध के अनुयायी ने बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) के प्रचार-प्रसार के लिए किया।
  • बुद्ध चरित, सौन्द्रानंद, शारिपुत्र प्रकरण अश्वघोष की रचना है।
  • चैत्य पूजा स्थल को कहा जाता है।
  • जहाँ मृत्यु के अवशेष रखे जाते हैं उसे स्तूप कहा जाता है।
  • बौद्ध मठों को विहार कहा जाता है।
  • बौद्ध धर्म (Baudh Dharm) ईस्वर की आत्मा पर विश्वास नहीं करता इसलिए इसे अनीश्वरवादी और अनात्मवादी कहा गया है।
  • बौद्ध सिद्धांत क्षणभंगवार के अनुसार सृष्टी नश्वर है।

FAQ Section :

बौद्ध धर्म की स्थापना किसने किया?

गौतम बुद्ध ने

धर्मचक्रप्रवर्तन क्या है?

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् बुद्ध में सारनाथ में अपना पहला उपदेश पांच ब्राह्मण सन्यासियों को दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्म चक्र प्रवर्तन कहा गया। यहीं से सर्वप्रथम बौद्ध संघ में प्रवेश शुरू हुआ। गौतम बुद्ध के पांच शिष्यों में आनंद सबसे प्रिय शिष्य था।

बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे?


प्रारंभ में बौद्ध धर्म में कर्म-कांड नहीं था किन्तु बाद में इस धर्म में भी कर्म-कांड बढ़ गया साथ ही बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया अतः लोगों जिस प्रसानी के कारण बौद्ध धर्म में आये थे वह स्थास्थिति हो गया इस कारण बौद्ध धर्म से लोगों का विश्वास कम होने और भारत में बौद्ध धर्म का पतन हो गया। इसके अलावे और भी कई कारण रहें जैसे कि –

बौद्ध भिक्षु आम लोगो से दूर रहने लगें
भक्तों से अधिक दान लेना
मूर्ति पूजा का आरंभ
ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान
बौद्ध विहारों में कुरीतियाँ
शासकों का बौद्ध विरोधी दृष्टिकोण

भारत में बौद्ध धर्म के सफलता के क्या कारण थें?

जब बौद्ध धर्म की स्थापना हुई उस समय ब्राह्मण व क्षत्रिय के बीच वर्चस्व का संघर्ष था साथ ही कर्म-कांड भी बढ़ गया था अतः समाज में अशांति होने के कारण भारत में बौद्ध धर्म का तेजी से विस्तार हुआ हालाँकि इसका सर्वाधिक अधिक प्रभाव महिलायों व शुद्रो पर पड़ा।

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