बहमनी साम्राज्य का इतिहास : Bahmani Samrajya

मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के अंतिम दिनों में दक्षिण भारत के आमीर-ए-सादा के विद्रोह के कारण बहमनी साम्राज्य की स्थापन हुई।

“इस्माइल मख नासिरुद्दीन शाह” इस नए स्वतंत्र सामराज्य के शासक बना किन्तु अधिक उम्र होने के कारण उन्होंने गद्दी को त्याग दिया तब वहाँ के अमीरों ने नासिरुद्दीन शाह के अनुयायी रहे जफ़र खां (हसन गंगू) को शासन चुना गया।

बहमनी साम्राज्य

जफ़र खां (हसन गंगू) एक अफगान था। इसने वर्ष 1347 ई० को “अबुल मुज्जफर अलाउद्दीन बहमन शाह” के नाम से शासक बना और “बहमनी साम्राज्य” की नीव रखी। इसने “गुलवर्ग” को राजधानी बनया और उसका नाम बदलकर “अहसानाबाद” रखा।

फ़रिश्ता के अनुसार हसन पहले एक ब्राह्मण के यहाँ नौकर था इसलिए इसे गंगू कहा गया। अन्य विचारो के अनुसार वह खुद को पौराणिक ईरानी यौद्धा “बहमन शाह” का बंसज मानता था।

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जफ़र खां (हसन गंगू) साम्रज्य को चार प्रान्तों (तरफ) गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार और बीदर में विभाजित किया और प्रत्येक प्रान्त (तरफ) तरफदार के अधीन हुआ करता था।

यह पहला शासक था, जिसने हिन्दू समुदाय से जजिया कर (धार्मिक कर) नहीं लिया, दूसरा जैनुल आबीदीन और तीसरा अकबर था।

मुहम्मद शाह प्रथम (1358 से 1373 ई०)

इसने बहमनी के प्रशासनिक व्यवस्था को पुनर्गठित किया तथा केन्द्रीय प्रशासन को 8 भागों में विभाजित कर अलग-अलग मंत्री नियुक्त किया।

वारंगल (तेलंगना) शासक “कंपा नायक” को युद्ध में पराजित किया। हार के परिणामस्वरुप कंपा नायक गोलकुंडा का प्रदेश और तख़्त-ए-फिरोजा, बहमनी साम्राज्य को दे दिया।

वर्ष 1367 में विजयनगर साम्राज्य के शासक रहे बुक्का प्रथम ने “रायचूर दोआब” को लेकर “मुदकल का किला” जो रायचूर दोआब में स्थित था, बहमनी साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।

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मुहम्मद शाह प्रथम बदला लेने के लिए विजयनगर साम्राज्य पर आक्रमण किया और निर्दोष हिन्दुओं की हत्या की और इसे जिहाद (धर्म युद्ध) का नारा दिया। इसी युद्ध में पहली बार बारूद का प्रयोग किया गया था।

इस घटना के बाद विजयनगर और बहमनी के बीच निहत्थे नागरिकों की हत्या ना करने की समझौता हुआ। मुहम्मद शाह प्रथम के बाद अलाउद्दीन मुजाहिद और दाउद खां कुछ समय के लिए शासक बना।

मुहम्मद शाह द्वितीय (1378 से 1397 ई०)

यह शांतिप्रिय और विद्वानों का संरक्षक था अतः इसके शासनकाल में कोई भी युद्ध व विद्रोह यादी नहीं हुआ। दर्शन और कविताओं के प्रति अधिक अभिरुचि के कारण मुहम्मद शाह द्वितीय को ‘दूसरा अरस्तु’ भी कहा जाता है।

ताजुद्दीन फिरोज शाह  (1397 से 1422 ई०)

फिरोज ने पक्षिमि एशिया के मुसलमानों को भी आमंत्रित किया और उसे ऊँचे प्रशासनिक पद भी दिया, जिससे अमीर वर्ग ‘अफाकी (विदेशी) और दक्कनी (देशी) दो गुटों में बट गया। जो बहमनी साम्राज्य के विघटन का मुख्य कारण बना।

विदेशी मुसलमान ईरान, अरब और तुर्क के शिया समुदाय से थे वहीँ दक्कनी (देशी) सुन्नी समुदाय का था।

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इसने अपने शासन काल में विजयनगर से तीन युद्ध किया, दो युद्ध में तो यह जीत गया लेकिन एक युद्ध में इसे विजयनगर शासक देवराय प्रथम से हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद फिरोज शाह प्रथम के भाई अहमद शाह प्रथम उसे सिंहासन से हटा दिया और स्वयं शासक बना इसने अपने शासन काल में विजयनगर से तीन युद्ध किया, दो युद्ध में तो यह जीत गया लेकिन एक युद्ध में इसे विजयनगर से हार का सामना करना पड़ा। इस समय विजयनगर का शासक देवराय प्रथम  था। फिरोज बहमनी साम्राज्य के अंतर्गत आने बेले गुलबर्गा का अंतिम शासक था।

शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम या अहमदशाह अली (1422 से 1435 ई०)

शासन सँभालते ही इसने राजधानी गुलबर्गा से बीदर स्थानांतरित कर दिया बीदर का नाम बदलकर “मुहम्मदाबाद” रखा।

इसने वारंगल के शासक की हत्या कर वारंगल को पूरी तरह से अपने साम्राज्य में मिला लिया। मालवा के शासक हुशंग शाह को भी पराजित किया। कोंकण विजय इसका अंतिम सैन्य अभियान था।

सेना में “मनसबदारी प्रथा” अहमद शाह ने शुरू किया था।

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अहमद शाह, सूफी संत “गेसुदराज” का शिष्य था, गेसुदराज के शिष्य होने के कारण अहमद शाह को वली (सन्त) कहा जाता था।

गेसुदराज को “बंदा नवाज” भी कहा जाता है यह दक्षिण का पहला विद्वान था जिसने उर्दू में “मिरात-उल-आशिकी” नामक ग्रन्थ की रचना किया।

अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436 से 1458 ई०)

इसने शिया समुदाय से संबंध रखने वाले एक ईरानी निवासी “महमूद गवां” को राज्य की सेवा में लिया। महमूद गवां पहले व्यापारियों का प्रमुख हुआ था।

हुमायूँ (1458 से 1461 ई०)

अलाउद्दीन का पुत्र हुमायूँ इतना क्रूर था की इसकी क्रूरता के कारण इसे “दक्कन का नीरो” कहा जाता था।

हुमायूँ के बाद इसके 8 वर्षीय पुत्र निजाम शाह शासक बना किन्तू दो वर्षों में ही इसकी मृत्यु हो गई।

महमूद शाह तृतीय (1463 से 1482) 

राज्यारोहन के समय यह 9 वर्ष का था। महमूद गवां इसका प्रधानमंत्री था। रुसी यात्री “निकितिन” ने मुहम्मद तृतीय के शासनकाल में ही बहमनी साम्राज्य की यात्रा की।

महमूद गवां

यह शासक के रूप में नहीं वल्कि आजीवन महमूद शाह तृतीय के प्रधानमंत्री के रूप में ही कार्य करता रहा।

इसने कुशल नेतृत्व और सैन्य शक्ति के बल पर गोवा, बेलगाम, दाभोल, मालवा आदि क्षेत्रों को को जीत कर बहमनी साम्राज्य का विस्तार किया। इसके समय में 8 प्रान्त हो गए जो पहले 4 प्रान्त हुआ करता था।

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गवां ने प्रांतीय गवर्नर के अधिकारों पर नियंत्रण रखा और उनसे कुछ प्रदेशों को लेकर उसे खालसा भूमि से परिवर्तित किया, भूमि की पैमाइश कराई व लगान निर्धारण की जाँच कराई, “तगा” नामक स्केल का विकास किया।

महमूद गवां देशी और विदेशी अमीरों के बीच चल रहे गुटबंदी का शिकार हो गया और महमूद तृतीय ने 1481 ई० में इसे मृत्युदण्ड दे दिया। इसके मृत्यु के साथ में बहमनी साम्राज्य का तेजी से पतन हो गया।

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FAQ Section :

बहमनी साम्राज्य के संस्थापक कौन थें?

वर्ष 1347 ई० को “अबुल मुज्जफर अलाउद्दीन बहमन शाह” के नाम से शासक बना और “बहमनी साम्राज्य” की नीव रखी। इसने “गुलवर्ग” को राजधानी बनया और उसका नाम बदलकर “अहसानाबाद” रखा।

बहमनी साम्राज्य की स्थापना किसने की थी उसका सैन्य अभियान क्या था?

इस साम्राज्य की स्थापना 1347 ई० को “अबुल मुज्जफर अलाउद्दीन बहमन शाह” ने किया था। दिल्ली सल्तनत के शासक रहे मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ हुए विद्रोह के कारण उसे कई सैन्य प्रमुखों ने मजबूती प्रदान की।

बहमनी साम्राज्य का पतन कैसे हुआ?

बाहरी खतरों के तौर पर विजयनगर साम्राज्य तथा 1482 ई० में मुहम्मद शाह तृतीय के मृत्यु के बाद उत्पन आन्तरिक अशांति के कारण बहमनी सामराज्य का पतन हो गया।

बहमनी साम्राज्य का कितने राज्यों में विभाजन हुआ?

1466 से 1481 ई० तक महमूद गवन के शासनकाल में बहमनी साम्राज्य अपने चरम पर था लेकिन प्रतिद्वंदी के तौर पर विजयनगर साम्राज्य और मुहम्मद शाह तृतीय के मृत्यु के बाद उत्पन आन्तरिक अशांति के कारण एक-एक कर बहमनी साम्राज्य 5 भागों में विभाजित हो गया।

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