वातपी या बादामी के चालुक्य : Badami ke Chalukya

चालुक्यों के विभाजन के बाद जिस दुसरे भाग पर पुलकेशिन द्वितीय शासक बना इसकी राजधानी बादामी या वातापी हुआ करती थी इसलिए इस शाखा का नाम वातपी या बादामी के चालुक्य (Badami ke chalukya) नाम पड़ा।

वातपी या बादामी के चालुक्य (Badami ke chalukya)

नर्मदा नदी के तट पर पुलकेशिन द्वितीय और हर्षवर्धन के बीच युद्ध होता है जिसमे पुलकेशिन द्वितीय विजयी होता है।

पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लवों की राजधानी काँची पर आक्रमण कर देता है, जहाँ पल्लव वंश के शासक महेंद्र वर्मन शासन कर रहा होता है।

इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय विजयी होता है और पल्लवों के उत्तरी क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लेता है। अतः इसी के शासनकाल में पल्लवों और चालुक्यों के बीच संघर्ष की शुरुआत हुआ।

पुलकेशिन द्वितीय पुनः पल्लवों पर आक्रमण कर देता है जहाँ इस समय महेंद्र वर्मन का पुत्र नरसिंह वर्मन प्रथम शासन कर रहा होता है। यह अपने पिता के अपमान का बदला लिया और पुलकेशिन द्वितीय  को बहुत बुरी तरह से पराजित किया।

इसने “सत्याश्री पृथ्वी बल्लभ महाराज”, “परमभट्टाकर”, “दक्षिणापथेस्वर” एवं महाराधिराज की उपाधि धारण किया।

पुलकेशिन द्वितीय के दरवारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित एहोल प्रशस्ति शिलालेख में पुलकेशिन द्वितीय के उपलव्धियों का वर्णन किया गया।

चीनी यात्री हेन्सांग 641 ई० में पुलकेशिन द्वितीय के दरवार में आता है। 

विक्रमादित्य प्रथम चालुक्य (655 से 680 ई०)

पुलकेशिन द्वितीय 13 वर्षो के राजनीतिक व्यावधान बने रहने के बाद 655 ई० में विक्रमादित्य प्रथम राजा बना।

विक्रमादित्य प्रथम का भाई जयसिंह ने हमेशा विक्रमादित्य प्रथम का साथ दिया इसलिए विक्रमादित्य प्रथम जब राजा बना तो जयसिंह को “लाट” का गवर्नर बना दिया और जिससे चालुक्यों की लाट (गुजरात) शाखा स्दथापित हुई।                       

विक्रमादित्य प्रथम अपने पिता पुलकेशिन द्वितीय का बदला लेने के लिए पल्लवों पर आक्रमण करता है और नरसिंह वर्मन प्रथम के पुत्र की हत्या कर देता है।

विनायादित्य (680 से 696 ई०)

इसने भी पल्लवों के साथ संघर्ष को जारी रखा। इसके अभिलेखों से पता चलता है की इसने चोल, पांड्य एवं केरल के शासकों को युद्ध में पराजित किया था। संभवतः उत्तरापथ पर भी आक्रमण किया और इसी युद्ध में विनायादित्य मारा गया।

विजयादित्य (696 से 733 ई०)

इसने सबसे लम्बा शासन किया, इस शासनकाल के दौरान पल्लव वंश के शासक परमेश्वर वर्मन द्वितीय से युद्ध कर पर्याप्त मात्रा में धन प्राप्त किया।

अपने शासनकाल में पट्टकल में एक शिवमंदिर का निर्माण करवाया।

विक्रमादित्य द्वितीय (733 से 746 ई०) चालुक्य

इसने गंग सामंत श्री पुरुष की सहायता से पल्लव शासक नन्दिवर्मन को पराजित किया और काँचीकोंड (काँची का विजेता) की उपाधि धारण किया। विक्रमादित्य द्वितीय ने चोल, पांड्य, केरल और कलभ्रो के शासकों को भी पराजित किया।

इसी के शासनकाल में राष्ट्रकूटों ने लाट (गुजरात) पर अधिकार कर वहाँ से चालुक्यो के शासन को समाप्त कर किया।

विक्रमादित्य द्वितीय की दो पत्नी थी लोक महादेवी एवं त्रैलोक्य महादेवी। पट्टकल में लोक महादेवी ने लोकेश्वरनाथ मंदिर तथा पट्टकल में ही त्रैलोक्य महादेवी ने त्रैलोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।

कीर्तिवर्मन द्वितीय (746 से 757 ई०)

चालुक्यों तथा पल्लवों के साथ लगातार हो रहे संघर्ष के कारण चालुक्यों की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण हो गई, और एक समय चालुक्यों के सामंत दन्तिदुर्ग ने चालुक्य के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया और राष्ट्रकूट नामक एक नए राजवंश का उदय हो गया।

इसके साथ ही बादामी/वातपी के चालुक्य वंश समाप्त हो गया अतः कीर्तिवर्मन द्वितीय इस वंश का अंतिम शासक बना।

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