ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल

अंग्रेज और बंगाल : मुगलकालीन बंगाल में आधुनिक बांग्लादेश, पक्षिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा शामिल था। जहाँ डच, अंग्रेज और फ़्रांसिसी तीनों व्यापारिक कोठियां की थी, जिनमे हुबली सबसे महत्वपूर्ण था।

अंग्रेज और बंगाल

1670 से 1700 ई० में दौरान बंगाल में ‘अनधिकृत अंग्रेज व्यापारियों’ जिसे ‘Interlopers’ कहा जाता था, ने कंपनी नियंत्रण से मुक्त होकर व्यापार किया जो आगे चलकर अंग्रेज व मुग़ल संघर्ष का कारण बना।

सिराजुद्दौला (1756 से 57 ई०)

1756 ई० में अलीवर्दी खां के मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला बंगाल का नबाव बना, इसका वास्तविक नाम ‘मिर्जा मुहम्मद’ था।

सिराजुद्दौला के विरोधियों में पूर्णियां के फौजदार शौकत जंग, अलीवर्दी खां के बेटी घसीटी बगल व सेनापति मीर जाफर (अलीवर्दी खां का बहनोई) था।

सिराजुद्दौला ने अक्तूबर 1756 ई० में हुए ‘मनिहारी के युद्ध’ में पूर्णियां के फौजदार शौकत जंग (चचेरा भाई) को हुए पराजित कर हत्या कर दी। घसीटी बेगम को बंदी बना लिया तथा मीर जाफर की जगह मीर मदान को सेनापति नियुक्त किया।

गुटवाजी के कारण अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विरोधियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचने व अनादर करने लगा, जिस कारण अंग्रेजों के साथ कड़वाहट बढ़ गई।

15 जून, 1756 ई० में नबाव सिराजुद्दौला ने कलकाता पर आक्रमण कर दिया, जिससे गवर्नर रोजी ड्रेक को ‘फूलटा टापू’ पर शरण लेनी पड़ी।

सिराजुद्दौला कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर रख दिया और मानिकचंद को इस किले प्रभारी बना दिया।

20 जून, 1756 ई० में फोर्ट विलियम पर आक्रमण कर 146 अंग्रेजों को बंदी बनाकर उसे एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया और जब सुबह कमरे को खोला गया तो उसमे से केवल 23 ही जीवित बचे। इसी घटना को ‘काल कोठरी’ की घटना कहा जाता है।

अक्तूबर 1756 ई० में मद्रास से रॉबर्ट क्लाइब के नेतृत्व में एक सैन्य कलकत्ता भेजा। मानिकचंद जोकि किले का प्रभारी था अंग्रेजों से घुस लेकर कलकाता को पुनः अंग्रेजों को दे दिया।

9 फरवरी, 1757 ई० में हुए अलीनगर की सन्धि के तहत सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को वो सभी सुबधायें दिए जोकि में मुगलों के द्वारा अंग्रेजों को दिया गया था, साथ ही हर्जाने के रूप में ३ लाख रुपये भी देना पड़ा।

मानिकचंद ने अंग्रेजों और सिराज के विरोधियों के मध्य गुप्त समझौता करवया अंततः 1757 ई० में हुए प्लासी के युद्ध में विश्वासघात कर सिराजुद्दौला हत्या कर दी गई और अंग्रेजों के कठपुतली के रूप में मीरजाफर को बंगाल का नबाव बनाया गया।

मीरजाफर (1757 से 60 ई०)

क्लाइब ने मीरजाफर को 28 जून, 1757 ई० में बंगाल का नबाव बनाया। नबाव बनाने के उपलक्ष्य में मीरजाफर पुरस्कार के रूप में 24 परगना की जमंदारी अंग्रेजों को दे दी साथ ही बंगाल में मौजूद सभी फ़्रांसिसी व्यक्तियों को अंग्रेजों को सौंप दिया। मुग़ल बादशाह आलमगीर द्वितीय से क्लाइब को ‘उमरा’ की उपाधि दिलवाई।

मीरजाफर शीघ्र ही अंग्रेजों से दुःखी हो गया और डचों से साथ मिलकर षड्यंत्र रचने लगा लेकिन 1759 ई० में हुए ‘बेदरां के युद्ध’ में डच अंतिम रूप से पराजित हो गया।

1760 ई० में अंग्रेज गवर्नर ‘वेन्सिटार्ट’ ने मीरजाफर को हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नबाव बनाया। इस घटना को बंगाल की दूसरी क्रांति के नाम से जाना जाता है।

27 सितम्बर, 1760 ई० में मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच एक समझौता हुआ। समझौते के तहत मीर कासिम, अंग्रेजों को बर्दवान, मिदनापुर व चटगाँव देना स्वीकार तथा सिल्हट के चुना व्यापार में कंपनी को आधा भाग दिया। इसके अलावे दक्षिण के अभियानों में अंग्रेजों को 5 लाख रुपये देने का भी वादा किया।

मीरजाफर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में क्लाइव को तीन करोड़ रुपये व कई सारी भेंट दी।

मीर कासिम (1760 से 63 ई०)

मीर कासिम बंगाल का नबाव बनाने के बाद अंग्रेज गवर्नर ‘वेन्सिटार्ट’ को 5 लाख रुपये, हॉलवेल को 2 लाख 70 हजार रुपये व कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी भरपूर धन दिया।

बंगाल में अंग्रेजों के दबदबा को कम करने के लिए मीर कासिम कई कार्य किए

  • राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले आया।
  • सेना को यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया।
  • मुंगेर में तोप निर्माण हेतु कारखाने बनवाएं।
  • सभी आन्तरिक व्यापार को चुंगी मुक्त कर दिया।

मीर कासिम, अंग्रेजों को बर्दवान, मिदनापुर व चटगाँव को भी वापस मांगने लगा जोकि संघर्ष का कारण बना।

कलकाता कौंसिल ने अपने दो सदस्य ‘हे’ और ‘अमायत’ को मीर कासिक से बात करने के लिए भेजा किन्तु मीर कासिम ने ‘हे’ को बन्दी बना लिया और अमायत की हत्या कर दी।

अंग्रेजों ने 1763 ई० में मीर कासिम को हटाकर पुनः मीरजाफर को बंगाल का नबाव बनाया।

जुलाई 1763 ई० में मेजर एडम्स ने मीर कासिम को करवा नामक स्थान पर पराजित किया। इसके बाद गिरिया व उधौनला के युद्ध में मीर कासिम पराजित हो गया अंत में भाग कर पटना चला गया।

1763 ई० में जर्मन अफसर ‘वाल्टर रहेन हार्डर’ जो सुमरू के नाम भी जाना जाता है, ने मीर कासिम के आदेश पर 148 अंग्रेजों की हत्या कर दी। अंततः में दिसम्बर 1763 ई० में मीर कासिम ने अवध में जाकर शरण ले लिया।

Read More :

Leave a Comment