अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) : भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध लेखिका व कावयित्री जिनके कृतियों को भारतीय भाषाओँ समेत विश्व के लगभग 34 भाषाओँ में भी अनुवाद किया गया। इसके अलावे इनके कई कहानियों व निवंधों को फिल्मो, धारावाहिक व टीवी सीरियल के रूप में प्रस्तुत किया जा चूका है।
Amrita Pritam (अमृता प्रीतम)
अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को पाकिस्तान के गुजरावाला में हुआ था। अमृता प्रीतम पिता करतार सिंह और माता राज कौर की एकलौती संतान थी। राज कौर का बचपन में ही देहांत हो जाने के कारण इनका लालन पालन नानी के द्वारा किया।
अमृता और उनके परिवार ने 1947 के भारत विभाजन के दर्द को ना केवल शहा बल्कि इसे बहुत ही करीब से भी देखा। विभाजन के बाद इनका परिवार लाहौर से दिल्ली में आकर बस गया। अमृता प्रीतम जब 16 साल की ही थी तब इनका पहला संकलन प्रकाशन हुआ।
प्रारंभिक शिक्षा
अमृता की प्रारंभिक शिक्षा पाकिस्तान के लाहौर से शुरू हुआ, इन्होने ने बचपन से ही कविता, कहानी और निबंध लिखने शुरू कर दिए था। इनके महत्वपूर्ण रचनाओं को देश और विदेश के कई भाषाओँ में अनुबाद किया गया।
निजी जीवन
साल 1935 जब अमृता कौर 16 वर्ष की थी उसी समय इनका विवाह प्रीतम सिंह से हुआ। विवाह के बाद अमृता कौर, अमृता प्रीतम बन गयी यानी अपना नाम बदलकर अमृता प्रीतम रख लिया।
विवाह के 25 साला बाद साल 1960 में अपने पति को छोड़ दिया। अपनी आत्मकथाओं में अमृता ने कवि साहिर लुधिवी के प्रति हो रहे आकर्षण को अपनी आत्मकथा में भी लिखा है।
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कुछ समय बाद इनका मुलाकात लेखक और कलाकार इमरोज से हुआ और अपना शेष जीवन इसी के साथ गुजारी। इमरोज के साथ जितना भी जीवन बिताया उस पर अमृता ने खुद “अमृता ए लव स्टोरी” नाम की एक पुस्तक लिखी।
साहित्यिक जीवन
भारत विभाजन के समय अमृता 16 वर्ष की थी और इन्होने वो सभी दर्द और भयानक दृश्य को देखा और महसूस किया था जोकि की इनके लेखों व कविताओं में स्पस्ट देखने को मिलाता है।
अमृता प्रीतम को प्रख्याति 1950 में प्रकाशित हुई “’पिंजर” से मिली, इस पर 2003 में एक अवार्ड विनिंग फिल्म पिंजर भी बनाई गई थी। साल 1956 में पंजाब साहित्यों में उन्हें महिलाओं की मुख्य आवाज से नवाजा गया।
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अमृता साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थी यह पुरस्कार उनके कविता “सुनेहदे” के लिए दिया गया था।
साल 1980 से 1990 के बीच पंजाब की घटनाओं पर 24 कहानीकारों की कहानियों का संपादन किया गया, जिसका नाम था “एक उदास किताब” जिसका विमोचन तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने किया था।
पुरस्कार एवं सम्मान
अपने 6 दशकों के साहित्यिक करियर में लगभग 100 से अधिक रचना किया। इन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
- 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1969 में पद्म श्री
- 1982 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
- 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार
- 2000 में शताब्दी सम्मान
- 2004 में पद्म विभूषण सम्मान
Amrita Pritam का निधन
अमृता लम्बे समय से बीमार चल रही था, 31 दिसंबर 2005 को 86 साल की उम्र में लम्बी बिमारी के कारण नींद में ही थी जब Amrita Pritam की मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु नई दिल्ली में हुई थी।
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FAQ Section :
‘रसीदी टिकट’ इनकी आत्मकथा है इस आत्मकथा में इन्होंने भारत के विभाजन ने उन्हें किस तरह से प्रभावित किया उसका भी जिक्र किया गया है।
अमृता और इमरोज बिना शादी के ही लगभग 40 वर्षो तक साथ रहे। वर्ष 2005 में अमृता की निधन के समय तक वह दोनों साथ रहे, उसके बाद इमरोज भी कवि बन गए और अमृता के प्रति अपने प्रेम कहानी के बारे में कविताएँ लिखने लगें।
इन्द्रजीत सिंह, जिन्हें इमरोज के नाम से जाना जाता है, 22 दिसंबर 2023 को लगभग 97 वर्ष की आयु में इनका भी निधन हो गया।
वर्ष 1935 अमृता की शादी, प्रीतम सिंह से हुआ, इनके दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी।