लोदी वंश का इतिहास : Lodi vansh

सैय्यद वंश का पतन के बाद बहलोल लोदी ने दिल्ली पर लोदी वंश की स्थपाना किया जोकि करिव 75 वर्षो तक रहा।

लोदी वंश (बहलोल लोदी, 1451 से 1489 ई०)

बहलोल लोदी 1351 ई० में दिल्ली का शासक बना, शासक बनते ही गाजी की उपाधि धारण किया और अपने सत्ता के सबसे बड़े शत्रु हामिद खां की हत्या करवा दिया। किन्तु अलाउद्दीन आलमशाह की पुत्री व हामिद खां की बहन बीबी राजी और इसके पति महमूद शाह ने दिल्ली के सत्ता को हासिल करने के लिए बहलोल लोदी पर आक्रमण कर दिया।

युद्ध का परिणाम शार्की सुल्तान महमूद शाह के पक्ष के जा रहा था किन्तु महमूद शाह का सेनापति दरिया खां जोकि एक अफगानी था उसने अपना पला बदल दिया परिणाम स्वरुप बहलोल लोदी युद्ध जीत गया। जीत के बाद जौनपुर जोकि एक स्वतंत्र राज्य था जहाँ की महमूद शाह शासन कर रहा था उसे भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

इसके बाद आस-पास के छोटे-छोटे प्रान्तों को भी जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाता गया इसी सन्दर्भ में ग्वालियर अभियान से लौटते समय बहलोल लोदी को ‘लू’ लग गया और बीमार रहने लगा अंततः 12 जून 1489 ई० में बहलोल लोदी की मृत्यु हो गया।

बहलोल लोदी द्वारा स्थापित यह साम्राज्य दिल्ली पर स्थापित होनेवाला प्रथम अफगान साम्राज्य था।

अब्दुल्ला में अपनी पुस्तक तारीख-ए-दाउदी में वताया है की यह बड़ा ही उदार और योग्य शासक था।

सिकंदर लोदी (1489 से 1517 ई०)

इसका मूल नाम निजाम खां था और दिल्ली के गद्दी पर बैठने के बाद अपना नाम बदलकर सिकंदर लोदी कर लिया। इसने अपने सभी क्षेत्रों पर प्रभुत्व बनाये रखा साथ ही अपनी सीमा का विस्तार कर बंगाल तक पहुँचा दिया।

1504 ई० में सिकंदर लोदी ने आगरा शहर की स्थापना किया और इसी शहर में प्रसिद्ध बदलगढ़ के किले का निर्माण करवाया सभी व्यवस्था हो जाने के बाद 1506 में आगरा को अपनी राजधानी बनाया।

21 नवम्बर 1517 ई० में आगरा में इसकी मृत्यु हो गया, मृत्यु के बाद गृहयुद्ध जैसे स्थिति से बचने के लिए अफगान और अमीरों ने पुरे साम्राज्य को सिकंदर लोदी के दो पुत्र इब्राहीम लोदी और जलाल खां के बीच दो भागों में बाटा दिया इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान बना और जलाल खां जौनपुर का सुल्तान बना।

आर्थिक सुधार

इसने khaखाद्यान्नों पर लगने वाले कर को समाप्त कर दिया साथ ही व्यापारिक प्रतिवंधों को भी हटा दिया जिससे की तेजी से आर्थिक विकास हो सके। इसके अलावे भूमि में गड़े खजाने से प्राप्त धन पर लिए जाने वाले कर को भी समाप्त कर दिया।

सिंकन्दर लोदी ने राज्य के लेखा-जोखा रखने के लिए लेखा परीक्षण प्रणाली को भी इसने शुरू किया।

सिकंदर लोदी ने भूमि के माप के लिए एक नए पैमाने को बनाया जिसे गज-ए-सिकन्दरी कहा जाता था जोकि करीब 30 इंच का होता था।

अन्य कार्य

इसने एक आयुवेदिक ग्रन्थ को फरहंगे सिकन्दरी के नाम से फारसी भाषा में अनुवाद किया इसके अलावे यह गुलरुखी नाम से फारसी भाषा में कविताएँ भी लिखता था।

इसने ताजिया निकाने व मुस्लिम महिलायों को पीरों और संतों के मजारों पर जाने से प्रतिबंध लगा।

इसने हिन्दूओं के ऊपर जजिया कर पुनः लगा दिया।

इब्राहीम लोदी (1517 से 1526 ई०)

इब्राहीम लोदी शासक बनाने के बाद दमन की निति को अपनाया और शक्तिशाली सरदारों को दमन करने शुरू किया साथ ही अपने भाई जलाल खां की भी हत्या कर दिया और जौनपुर को अपने साम्राज्य में मिला लिया। जिस कारण यह जल्द ही लोगों के बीच जल्द ही अलोकप्रिय हो गया।

इसके अलावे ग्वालियर पर आक्रमण कर उसे भी अपने साम्राज्य में मिला लिया किन्तु राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के राज्य पर जब आक्रमण किया तो इस युद्ध में इब्राहीम लोदी बुरी तरह से हार गया पर इसी युद्ध में राणा सांगा ने अपना दायाँ हाथ भी खो दिए।

इस अशांति की स्थिति से परेशान होकर इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खां, दौलत खां और राणा सांगा बदले की भावना से बाबर को इब्राहीम लोदी पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रण किया। 21 अप्रैल 1526 ई० को दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया जिसे पानीपत का प्रथम युद्ध कहा जाता है।

इब्राहीम लोदी के पास शक्तिशाली सेना था किन्तु नेतृत्व का आभाव था वहीँ बाबर उतना शक्तिशाली नहीं था हालाँकि बाबर के पास शक्तिशाली तोपखाना था। बाबर ने युद्ध जीतने के लिए तुगलमा पद्धति और रूमी पद्धति को अपना, तुगलमा पद्धति से अपने तोपों को लगाया व रूमी पद्धति से अपने सैनिकों को लगाया।

अंततः इब्राहीम लोदी इसी युद्ध में मारा गया यह पहला सुल्तान था जोकि युद्ध लड़ते हुए युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुआ। इब्राहीम लोदी के मृत्यु के साथ ही लोदी वंश और दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया, उसके बाद दिल्ली पर बाबर ने मुग़ल वंश की स्थपाना किया।

नोट – इसी समय उस्वाद अली और मुस्तफा प्रसिद्ध तोपची था।

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