यूरोपीय कंपनियों का आगमन के उद्देश्य

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन के ना केवल व्यापारिक वल्कि कई अन्य उद्देश्य भी थी जिसे पूरा करने के लिए भारत आना उनकी व्यवस्ता थी’ जहाँ तक व्यारिक संबंधो की रही तो भारत और यूरोप के बीच प्राचीन काल से ही व्यापार होता था। यह व्यापरिक संबंध यूनानियों से साथ आरम्भ हुए, जिनके कई प्रमाण भी मिलते हैं।

मध्य काल भारत यूरोप के साथ परोक्ष रूप से व्यापर करता था क्योंकि उस समय एशिया और भारतीय क्षेत्रों पर अरबों का वर्चस्व था अतः अरब भारत से वस्तुएँ खरीदते थे और उसे यूरोप में बेचते थे मध्यकाल में भारत और यूरोप के बीच व्यापार कई मार्गों से होता था।

स्थल मार्ग

  • भारत के उत्तरी पक्षिमी सीमा की ओर से जोकि परम्परागत स्थल मार्ग थी। इस मार्ग से भारत पहुँचने के लिए टर्की > इराक > ईरान > अफानिस्तान > साथी ही कई सारे दर्रों जैसे की कहिबर दर्र्रा, कुर्रम दर्रा, बोलन दर्रा आदि को पार भारत आते थे।

समुद्री मार्ग

  1. फारस की खाड़ी से होकर
  2. लाल सागर से होकर

लाल सागर वाले व्यापारिक मार्ग काफी दुर्गम था अतः फारस की खाड़ी से वाले व्यापरिक मार्ग प्रचलित थी।

मध्यकाल में एशिया का व्यापार अरबों के हाथों में था और यूरोप का व्यापार रोमन साम्राज्य (इतालवी व्यापारिओं) के हाथों में था।

भारत आगमन के उद्देश्य

यूरोप में मांस के अधिक उपभोग के कारण मसलों की मांग काफी थी खासकर काली मिर्च और यह काफी महगें बिकते थे। यह व्यापार लम्बे समय तक चलता रहा किन्तु 15बीं शताब्दी में अरबों का प्रसार के कारण इस मार्ग से व्यापार करना काफी दुर्गम हो गया।

1453 ई० में अस्मानियाँ ने कुस्तुतूनिया को जीत कर तुर्क साम्राज्य में मिला लिया और धीरे-धीरे दक्षिण पक्षिम एशिया और दक्षिण पूर्वी यूरोप पर अधिकार कर लिया। जिस कारण भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक मार्ग बंद हो गएँ। तब यूरोपियों ने भारत के साथ व्यापार करने के लिए नए जल मार्गों की तलाश करना आरम्भ किया।

इस समय यूरोप में पूर्णजागरण का दौर था जिससे लोगों के बीच आगे बढ़ने की होड़ मची थी इस कारण लोगों ने नए अविष्कार तथा समुद्री जहाजों पर काफी निवेश किया।

यूरोप के लोगों को इस बात के पूर्ण जानकारी थी कि काली मिर्च का आयत पूर्व में भारत नामक देश से किया जाता है हालाँकि इंडोनेशिया व अन्य अन्य देशों में भी मसलों को उगाया जाता था किन्तु भारत समृद्ध और एक प्रभावशाली देश था इसलिए लोग भारत के साथ व्यापार करना चाहते थें।

पुर्तगाल और स्पेन

नए अविष्कारों और व्यापारिक खोजे में पुर्तगाल तथा स्पेन दोनों अग्रणी देश थे पुर्तगाल के प्रिंस हेनरी के प्रयोसों से दिशा सूचक यंत्र की खोज किया गया अतः प्रिंस हेनरी को ‘द नेविगेटर’ कहा गया। इस खोज ने भागोलिक खोजों में बड़ा परिवर्तन लाया।

पुर्तगाल और स्पेन का प्रतिस्पर्धी था अतः आगे रहने की होड़ में पुर्तगाल ने 1487 ई० में अपने नाविक ‘बार्थोलोमोडियाज’ को भारत की खोज में भेजा ये अफ्रीका का दक्षिणतम बिन्दु ‘उत्तरमाशा अंतरीप’ पहुँच गए जहाँ चक्रवात और तूफानों का सामना करना पड़ा जिस कारण वह वहीँ से वापस पुर्तगाल लौट गएँ।

1494 ई० में स्पेन नाविक कोलम्बस ने भारत की खोज में निकलें किन्तु वह उत्तरी अमेरिका पहुँच गएँ अतः कोलम्बस में उत्तरी अमेरिका की खोज की।

1498 ई० में पुर्तगाल नाविक ‘वास्कोडिगामा’ को भारत की खोज में भेजा वह उत्तरमाशा अंतरीप’ होते हुए भारत के कालीकल (केरल) पहुंचे और इस मार्ग को ‘केप ऑफ़ गुड हॉप’ कहा गया। लेकिन वास्कोडिगामा को भारत तक पहुँचाने (पथ प्रदर्शक) में गुजरात के निवासी अब्दुल मनीद की भूमिका महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसी ने वास्कोडिगामा को उत्तरमाशा अंतरीप’ से कालीकट के तट पर लाया।

भारत की व्यपारिक स्थिति

भारत के मालाबार तट पर कई बंदरगाह कालीकट, काम्बे, बडौच, सूरत एवं कोच्ची थे जोकि पक्षिमी देशों के साथ व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।

बंगाल की खाड़ी से मलक्का तक चेट्टियार समुदाय (मुस्लिम) तथा विशिष्ट व्यापारिक मार्गों पर चुलिया मुस्लिम समुदाय का प्रभुत्व था। इन दोनों ने बाहरी प्रवेश को विरोध किया। विरोध के बावजूद भी स्थानियें राजा जमोरिन ने वास्कोडिगामा का भव्य स्वागत किया।

वास्कोडिगामा के वापसी के समय जमुरिन ने काफी सारे मसाले और जडीबुटी दी जिसे यूरोप में बेचने पर लगभग 60 गुना का मुनाफा हुआ जिससे पुरे यूरोप में हलचल बढ़ गई इस ख़ुशी में पुर्तगाल के राजा मनुएल प्रथम ने वास्कोडिगामा को वाणिज्य प्रधान कह कर संबोधित किया और पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन को व्यापारिक केंद्र घोषित कर दिया।

पुर्तगालियों ने भारत में अपना एकाधिकार प्राप्त करने के लिए अरब जहारों तथा नौपोतो को नष्ट कर अपनी स्थिति मजबूत किया। 1501 ई०  में पुर्तगाल के राजा मैनुअल प्रथम ने स्वंय को भारत, अरब और फारस के साथ व्यापार का मालिक घोषित कर लिया। अर्थात इन देशों के साथ केवल पुर्तगाल ही व्यापार करेगा कोई अन्य देश नहीं कर सकता। आगे चलकर कई यूरोपीय कम्पनी भारत आये जो इस प्रकार है –

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