शशांक के मृत्यु के बाद लगभग एक शताब्दी तक बंगाल में अव्यवस्था का माहौल बना रहा इसी अव्यवस्था को “मतस्य न्याय” कहा जाता है। इससे छुटकारा पाने के लिए बंगाल में वहाँ से स्थानीय लोगों ने गोपाल नामक एक योग्य व्यक्ति को राजा बनाया और इसी ने पाल वंश की स्थपाना की।
पाल वंश (गोपाल, 750 से 770 ई०)
गोपाल ने 750 ई० में पाल वंश की स्थापना किया और मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया| गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था। तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार गोपाल ने ओदंतपुरी में एक बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था।
धर्मपाल
धर्मपाल ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने बाला प्रथम शासक था। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट शासक वत्सराज तथा गुर्जर प्रतिहार शासक ध्रुव दोनों ने धर्मपाल को पराजित किया।
इन्होने अपने प्रतिष्ठा का बनाए रखने के लिए युद्ध का मुख्य कारण रहे कन्नौज पर बाद में अधिकार कर लिया और एक भव्य दरवार का आयोजन किया, इस दरवार में सभी अधिनस्त राजा उपस्थित हुए।
धर्मपाल भी बौद्ध धर्म का अनुयायी था और बौद्धों के लिए बड़े उत्सार से काम किया इसी उत्साह के कारण इसे परमसौगात की उपाधि दिया गया।
ग्यारहवीं शताब्दी में गुजराती कवि सोयाढल ने धर्मपाल को उतरापथ स्वामी की उपाधि दिया।
धर्मपाल ने भागलपुर में विक्रमशिला विश्व विद्यालय का निर्माण करवाया जोकि नालंदा विश्व विद्यालय के बाद दूसरा महत्वपूर्ण विश्व विद्यालय था। यह बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संवंधित था| इसके अलावे सोमपुर महाविहार का भी निर्माण करवाया।
पाल शासकों के शासनकाल में उत्तम किस्म के बड़े पैमाने पर कांस्य की मूर्ति बनाया गया था जिसकी तुलना नटराज की मूर्ति से किया जाता था।
प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरिभद्र धर्मपाल के दरवार में रहते थे। धर्मपाल ने नालंदा विहार को 200 गावँ को अनुदान दिया।
देवपाल
यह पाल वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था इसने बी परमसौगात की उपाधि धारण किया।
‘बादल स्तम्भ’ लेख के अनुसार देवपाल ने उत्कालों के प्रजाति का सफाया किया, हूणों जोकि अपने क्रूरता के लिये जाना जाता था। इसके अहंकार को भी खण्डित कर दिया, गुर्गर प्रतिहार शासक तथा द्रविड़ (दक्षिण भारत) शासकों के अभियानों को भी ध्वस्त कर कर दिया।
अरब यात्री सुलेमान पाल शासकों को रूहमा कहता था, इनने अपने यात्रा वृतांत में बताया है की देवपाल गुर्गर प्रतिहार तथा राष्ट्रकूट शासकों से सबसे शक्तिशाली शासक था।
जावा के शैलेन्द्र वंशी शासक बालपुत्रदेव ने नालंदा में बौद्ध विहार वनवाने के लिए देवपाल से अनुरोध किया जिसे देवपाल ने स्वीकार करते हुए 5 गावँ दान में दिया।
देवपाल ने जावा एवं सुमात्रा (इंडोनेशिया) में शैलेन्द्र वंशी शासक बालपुत्रदेव के द्वारा बनाये गए बौद्ध विहार के अनुराक्षा के लिए 5 गावँ दान में दिया।
नारायण पाल
देवपाल के उतराधिकारी विग्रह पाल था लेकिन अपने पुत्र नारायां पाल के पक्ष में सत्ता छोड़कर संन्यास ले लेता है। नारायण पाल ने भगवान् शिव के सम्मान में 1000 शिव मंदिरों का निर्माण करवाया।
महिपाल
महिपाल ने पाल वंश की शक्ति और प्रतिष्ठा का पुनजीवित किया, इसलिए इसे पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है। इसके शासनकाल में चोल शासक राजेन्द्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण कर महिपाल को जीत लिया।
महिपाल ने बौद्ध भिक्षु “अतीस” के नेतृत्व में तिब्बत में बौद्ध धर्म प्रचारक का एक मण्डल भेजा।
जीमूतवाहन जोकि हिन्दू काव्य दायभाग के जन्मदाता थे इन्हें महिपाल का संरक्षण प्राप्त था। महिपाल के मृत्यु के साथ ही पाल वंश का पतन शुरू हो गया|
रामपाल
तिब्बती इतिहास तारकनाथ ने बताया है की संध्याकर नंदी द्वारा रचित रामपाल चरित के कहा गया है की रामपाल पाल वंश का अंतिम शासक था|
कैवर्तो का विद्रोह रामपाल के शासनकाल में हुआ था, जिसका उल्लेख रामपाल चरित में मिलता है|
पाल वंश की विशिष्टा
- पाल मूर्तिकार कांस्य की मूर्तियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध थे।
- पाल शासक बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा के पक्षधर थे।
- संतरक्षित और दीपंकर नामक दो बौद्ध विद्वान को तिब्बत भेजा था और तिब्बत से धर्म स्वामी भारत आया था।
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