भ्रष्टाचार शब्द के योग में दो शब्द है भ्रष्ट और आचार, भ्रष्ट का अर्थ है बड़ा या बिगड़ा हुआ और अचार का अर्थ है आचरण, भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ हुआ वह आज आचरण जो किसी प्रकार से अनैतिक और अनुचित है।
भ्रष्टाचार
हमारे देश में भ्रष्टाचार दिनों दिन बढ़ता जा रहा है यह हमारे समाज और राष्ट्र के सभी अंगों को बहुत ही गंभीरता पूर्वक प्रभावित किया जा रहा है। राजनीति, समाज, धर्म, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, व्यापार, उद्योग, कला प्रशासन यदि में आज इतनी पैठ बना चुकी है कि इससे मुक्ति मिलना बहुत कठिन लग रहा है। चारों ओर दुराचार व विचार, बलात्कार, आनाचार यदि सभी एक ही है जिन्हें हम अलग-अलग नाम से तो जानते हैं लेकिन वास्तव में यह सब भ्रष्टाचार की जड़े हैं इसलिए भ्रष्टाचार के कई नाम हो गए हैं लेकिन उनके कार्य और प्रभाव लगभग समान है या एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं।
कारण
भ्रष्टाचार के कारण क्या हो सकता है यह सर्वविदित है भ्रष्टाचार के मुख्य कारणों में व्यापक संतोष इसका पहला कारण है जब किसी को कुछ अभाव होता है और उसे वह अभाव अधिक कष्ट देता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है।
दूसरा कारण स्वास्थ्य सहित परस्पर समानता है। यह असमानता चाहे आर्थिक और सामाजिक हो या सम्मान पद प्रतिष्ठा यदि में से जो भी। शहरी जीवन पर निबंध
जब एक व्यक्ति के मन में दूसरे के प्रति हीनता और इर्ष्या की भावना उत्पन्न होती है तो इससे शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए वाध्य हो जाता है। अन्याय और निष्पक्षता के अभाव में भी भ्रष्टाचार का जन्म होता है।
अन्याय
जब प्रशासन या समाज किसी व्यक्ति या वर्ग के प्रति अन्याय करता है। उसके प्रति निष्पक्ष नहीं हो पता है तब से प्रभावित हुआ व्यक्ति या वर्ग अपनी दुर्भावना को भ्रष्टाचार को उत्पन्न करने में लगा देता है। इसी तरह से जातीयता, सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भाषा, भाई-भतीजाबाद यदि के फलस्वरूप भ्रष्टाचार का जन्म होता है। इससे चोर-बाजारी, सीन जोरी, दल बदल, रिश्वतखोरी अव्यवस्थाएं प्रकट होती है।
असमानता
भ्रष्टाचार के को परिणाम स्वरुप समाज और राष्ट्र में व्यापक रूप से असमानता और अव्यवस्था का उदय होता है इसे ठीक प्रकार से कोई कार्य पद्धति नहीं चल पाती है और सब के अंदर भाई आक्रोश और चिंता के लहरें उठने लगती है।
असमानता का मुख्य प्रभावित है भी होता है कि यदि एक व्यक्ति या वर्ग बहुत प्रसन्न है तो दूसरा व्यक्ति या वर्ग बहुत ही निराशा और दुखी हो जाता है भ्रष्टाचार के वातावरण में ईमानदारी और सत्यता को छूमंतर की तरह गायब हो जाते हैं और उनके स्थान पर केवल बेईमानी और कपट का प्रचार और प्रचार हो जाता है इसलिए हम कर सकते हैं कि भ्रष्टाचार का केवल दुष्प्रभाव ही होता है और इसे दूर करना एक बड़ी चुनौती होती है।
भ्रष्टाचार के द्वारा केवल दुष्प्रवृति और दुश्चचरित्र को ही नहीं बढ़ावा मिलता है बल्कि इससे सच्चरित्रता और सद्दप्रवृत्ति की जड़े समाप्त होने लगती है।
यही कारण है कि भ्रष्टाचार की राजनीतिक आर्थिक व्यापारिक प्रशासनिक और धार्मिक की जे इतनी गहरी और मजबूत हो गई है कि इन्हें उखाड़ना और इसके स्थान पर साफ सुथरा समाज का निर्माण करना आज प्रत्येक राष्ट्र के लिए लोहे के चने चबाने के समान कठिन हो जाए हो रहा है।
नकली माल बेचना, खरीदना, वस्तुओं में मिलावट करना, धर्म का नाम ले लेकर अधर्म का आश्रय ग्रहण करना, कुर्सीवाद का समर्थन करते हुए इस दल से उसे दल में आना-जाना, दूसरी और अपराधी तत्वों को घूस लेकर छोड़ देना और रिश्वत लेने के लिए निरपराधी तत्वों को गिरफ्तार करना। किसी पद के लिए की निश्चित सीमा का निर्धारण करके रिश्वत लेना पैसे की मोह और आकर्षण के कारण हत्या पर लूटपाट चोरी कालाबाजारी तस्करी आदि सब कुछ भ्रष्टाचार के मुख्य कारण है।
भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जा सकता है?
अपराध की जड़ों को उखाड़ने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि हम इनके दोषी तत्वों को ऐसी कड़ी से कड़ी सजा दें की फिर दूसरा सर ना उठा सके। इसके लिए सबसे सार्थक और सही कदम होगा प्रशासन का सख्त और चुस्त होना।
न केवल सरकार अभी तो सभी सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं समाज और राष्ट्र के ईमानदार कर्तव्य निष्ठा सच्चे सेवकों और मानवता एवं नैतिकता के पुजारी को प्रोत्साहन और पारितोषिक दे देकर मनोबल को प्रेरित करना चाहिए।
जिससे सच्चाई कर्तव्य परायण और कर्मठता कि वह दिव्या ज्योति जल सके जो भ्रष्टाचार के अंधकार को समाप्त करके सुंदर प्रकाश कर सके।