बेरोजगारी पर निबंध

बेरोजगारी : भूखा मनुष्य क्या पाप नहीं करता। धन से क्षीण मनुष्य दयनीय हो जाता है। उसे कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक नहीं होता। वही दशा आज के युग में विद्यमान है। चारों ओर चोरी डकैतियों के दुर्घटनाएँ, छिना-झपटी, लुट खसोट जैसी घटनाएँ आये दिन सुनने और पढ़ने को मिलता है।

बेरोजगारी पर निबंध

आज देश में स्थान स्थान पर उपद्रव और हड़तालें हो रही है हर व्यक्ति को अपनी और अपने परिवार की रोटियां की चिंता है चाहे उनका उपार्जन सदाचार से हो या दुराचार से। आज चाहे फावड़ा चलाकर तथा पसीना बहा कर रोटियां खाने वाले श्रमिकों हों, चाहे अनवरत बौद्धिक श्रम करने वाले, समाज के शत्रु ,विद्वान, सभी बेकरी और बेरोजगारी के शिकार है।

निरीक्षण तो किसी तरह अपना पेट भर लेते हैं किंतु पढ़े-लिखों की आज बुरी हालत है वे विचारक क्या करें कैसे जीवन चलाएं यह आज की बड़ी कठिन समस्या है। आज हमारे समाज के शिक्षितों में बेरोजगारी है और कृषि के क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी, एक आदमी के काम को चार आदमी मिलकर कर रहा है। वसंत ऋतु पर निबंध

आज कॉलेज की डिग्रियां प्राप्त कर शिक्षित नवयुवक नौकरियों की तलाश में भटक रहे हैं वैभवशाली भावी जीवन की उपलब्धि की आशा में उन्होंने अपने आत्मबल को खो दिया है। इस कारण समाज में बेकारों की संख्या तीब्र गति से बढ़ रही है। शिक्षित बेरोजगारों के लिए शिक्षा वरदान नहीं अभिशाप बन गई है।

प्राचीन काल में हमारे देश में हजारों छोटे-छोटे गृह उद्योग में लोग अपना जीवकोपार्जन करते थे लेकिन अंग्रेजों की नीति ने गृह उद्योगों को नष्ट कर दिया तथा मशीनों के बाहुल्य के कारण हम अकर्मण्य हो गए।

देश की दिनों-दिन बढ़ती हुई जनसंख्या बेकारी की समस्या को और भी बढ़ा रही है। साधन की सुविधा और उत्पादन तो नहीं बढ़ा परंतु उपभोक्ता अधिक हो गए हैं।

बेरोजगारी के कारण युवा आक्रोश और असंतोष ने समाज में अर्थव्यवस्था और अराजकता पैदा कर दी है। यदि इस भयानक समस्या का समाधान शीघ्र नहीं निकला तो देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति और भी अधिक भयानक हो जाने की सम्भावनाएं है। यह एक भयावाह स्थिति है और राष्ट्राध्यक्षों के लिए खतरे खतरे की घंटी।

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