प्राचीन विदेशी आक्रमण : ग्रीक, शक, पहलव और कुषाण

प्राचीन विदेशी आक्रमण : भारत में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कई छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ जोकि इतना सक्षम नहीं थे, जितना की मौर्य साम्राज्य हुआ करता था और इसी का लाभ उठाकर कई विदेशी आक्रमणकारीओं भारत पर आक्रमण किया।

प्राचीन विदेशी आक्रमण

प्राचीन भारत में कई आक्रमणकारीओं ने भारत पर आक्रमण किया भारत में जब तक मौर्य साम्राज्य के रूप में शक्तिशाल साम्राज्य था तब तक भारत सुरक्षित था लेकिन इसके कमजोर होने ही मौर्योत्तर काल में कई आक्रमणकारीओं ने आक्रमण किया जो निम्न है – हिन्द-यूनानी, शक, पलहव, और कुषाण आया

हिन्द-यूनानी या ग्रीक या बैक्ट्रिया

यह मध्य एशिया से भारत मे प्रवेश किया। भारत पर आक्रमण करने बाला पहला पहले हिन्द-यूनानी शासक डेमेस्ट्रीय था। जिसने 190 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमन किया और भारतवर्ष के उत्तर-पक्षिमी क्षेत्र अगानिस्तान, सिंध और पंजाब को जीतकर भारत में अपना शासन स्थापित किया तथा शाकल (स्यालकोट) को अपनी राजधानी बनाया।

हिन्द-यूनानी शासकों में सबसे प्रमुख शासक मिनान्डर था जिसे मिलिन्द भी कहा जाता है इसने 168 ईसा पूर्व से 145 तक शासन किया।

शुंग शासक पुष्मित्र शुंग ने इन दोनों शक शासक, डेमेस्ट्रीय और मिनान्डर। पराजय के बाद भी मिनान्डर भारत में अपने सत्ता को मजबूत करने का प्रयास किया इसी क्रम में मिनान्डर का परिचय एक बौद्ध दार्शनिक नागसेन से हुआ।

मिनान्डर नागसेन से बौद्ध धर्म से जुड़े कुछ प्रश्न पूछ्तें है और नागसेन उन सभी प्रश्नों का उत्तर देता है। इस प्रश्न और उत्तर के के बाद नागसेन से प्रभावित होकर मिनान्डर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। मिनान्डर और नागसेन मध्य हुए इस वार्तालाप का संग्रह नागसेन ने मिलिंद्पन्हो नामक पुस्तक में किया गया है।

प्रभाव

भारत में सबसे पहले हिन्द-यानानीयों ने ही सोने के सिक्को जारी किया। इनके द्वारा जारी किए गए सिक्कों को देखकर ये आसानी से ज्ञात हो जाता था की ये सिक्के किस राजा के शासनकाल में बनाया गया।

  • नाटकों में पर्दे का प्रचलन।
  • गंधार कला का विकास
  • हेलिनिस्टिक आर्ट (भारतीय और यूनानी कला का संयुक्त रूप)

शक

इन पांच शाखाओं में सबसे महत्वपूर्ण शाखा था पक्षिम की शाखा। रुद्रदामन इसी शाखा से संबंधित था जो शकों का का सबसे प्रमुख और प्रतापी शासक हुआ। इसने ही सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया जिसे मौर्य काल के दौराण सिंचाई के लिए निर्माण करवाया गया था।

गुजरात से चल रहे समुद्री व्यापार के कारण शकों के पक्षमी शाखा अधिक लाभ्वान्ति हुआ और भारी मात्रा में चाँदी के सिक्के जारी किए।

रुद्रदामन संस्कृत से सबसे अधिक प्रभावित था इसने ही सबसे पहले संस्कृत भाषा में अभिलेख जारी किया। जिसे गिरनार अभिलेख कहा जाता है। इस अभिलेख के माध्यम से मौर्य वंश के बारे में जनकारी मिलती है।

58 ईसा पूर्व में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शको को पराजित किया इसी उपलक्ष्य में स्थानीय राजा ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की तब सेस विक्रमादित्य की उपाधि काफी लोकप्रिय बन गया। साथ ही इस विजय के उपलक्ष्य में विक्रम संवत् नामक कैलेण्डर को जारी किया।

पहलव या पार्शियन

शकों के बाद पलहव आया जो मूल रूप से ईरान का निवास था। मिथ्रडेट्स प्रथम भारत में पहलव राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था, इनकी राजधानी और तक्षशिला थी। इन्होने 170 ईसा पूर्व से 130 ईसा पूर्व तक अर्थात करीब 40 वर्षों तक शासन किया थी।

गोंणडोफर्निशज पहलव का सबसे शक्तिशाली शासक था जिसका वर्णन तख़्त-ए-वाही में नामक शिलालेख में किया गया गया जोकि वर्तमान में पाकिस्तान ने स्थिति है। गोंणडोफर्निशज को भारत में पहलवों का वास्तविक संसथापक माना जाता है।

इनका शासनकाल करीब 20 से 40 ई० तक रहा। इसी के शासनकाल के दौराण सेंट थॉमस नामक पाद्री (इसाई) पहलीवार इसाई धर्म का प्रचार व प्रसार के लिए भारत आया था। जिनकी हत्या दक्षिण भारत में कर दिया गया। अंततः पार्शियन ने बौद्ध धर्म को अपना लिया।

भारत में जब कुषाण आये तो कुषाणों ने पहलावों को पूरी तरह से नष्ट कर और इन्ही के ध्वंसावशेष पर कुजुल कडफिसेस ने कुषाण वंश की स्थापना किया गया।

कुषाण

कुषाणों का संवंध यूंची/तोख़ारी नामक कबीला से था जोकि की चीन में पाया जाता था। यह कबीला पांच भागों में बटा था और उसी में से एक था कुषाण जो चीन और भारत के मध्य हिमालय पर्वत आ जाने के कारण मध्य एशिया के रास्ते भारत आया।

कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था जिसकी मृत्यु के बाद विम कडफिसेस शासक जो शैव धर्म को अपना लिया।

कनिष्क

इस वंश का सबसे प्रमुख और प्रतापी शासक कनिष्क था। कनिष्क जो 78 ईस्वी में कुषाण वंश का शासक बना और पुरुषपुर यानी की आज के पेशावर को राजधानी बनया। अपने राजा बनने के उपलक्ष्य में इन्होने शक संवत् नामक कैलेण्डर चलाया जिसे वर्तमान में भारत सरकार द्वारा रास्ट्रीय कैलेण्डर के रूप में प्रयोग किया जाता है।

कनिष्क के शासन के समय रेशम मार्ग पर भारत का नियंत्रण था। इस मार्ग से होकर चीन का रेशम मध्य एशिया की ओर जाता था जिस पर कर लागाकर कुषाणों अधिक मात्रा में धन अर्जित किया। योग्य शासक और आर्थिक स्थिति थी मजबूत होने के कारण कुषाणों के क्षेत्र का विस्तार हुआ अतः मथुरा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।

कनिष्क ने भारत में सबसे शुद्ध सोने के सिक्के जारी किए जवकि सबसे अधिक मात्रा में सोने के सिक्के गुप्त शासको ने जारी किया।

  • तांबे के सिक्के सबसे अधिक कुषाण शासकों ने जारी किया।
  • कनिष्क भारत में आने के बाद बौद्ध धर्म के माहायाण शाखा को स्वीकार किया।
  • कनिष्क के शासनकाल में ही चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया इसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने किया था।
  • गंधार कला और मथुरा कला का विकास कनिष्क के शासनकाल में हुआ।
  • गंधार कला का सवंध बौद्ध धर्म से है और मथुरा कला का संवंध जैन धर्म से है।
  • अश्वघोष, चरक, नागार्जुन, वसुमित्र, पाशर्व, महाचेत, संघरक्ष आदि कनिष्क के दरवार में रहते थे।
  • 102 ईस्वी में कनिष्क की मृत्यु हो गया कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था।

कुषाणों के दरवारी

अश्वघोष – यह कनिष्क का राजकीय कवि था इसने बुद्ध चरित्र की रचना किया जिसे बौद्धों का रामायण कहा जाता है।

चरक – यह कनिष्क का राजवैध था इसने चरक संहिता की रचना किया चरक को भारतीय चिकित्सा का जनक माना जाता है।

वसुमित्र – इसने महाविभाष सूत्र की रचना किया इसे बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है।

नागार्जुन – नागार्जुन ने शून्यवाद/सापेक्षता वाद के सिधांत की खोज किएँ, इन्हें भारत का आइन्स्टाइन कहा जाता है।

शुश्रुत – इसने शुश्रुत संहिता की रचना किएँ, भारत में शुश्रुत को शैल चिकित्सा का जनक माना जाता है।

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