गहड़वाल वंश का इतिहास : Gahadavala vansh

कन्नौज जोकि कभी त्रिपक्षीय संघर्ष का केंद्र हुआ करता था जिस पर गुर्जर प्रतिहार वंश, पाल वंश और राष्ट्रकूट वंश के शासक अपना-अपना दावा करते थे। लेकिन गुर्जर प्रतिहार वंश और राष्ट्रकूट वंश के पतन के बाद चन्द्र देव ने गहड़वाल वंश की स्थपाना किया साथ ही पाल शासक गोपाल से युद्ध कर उसे पराजित किया और कन्नौज की सत्ता अपने हाथों में ले लिया।

गहड़वाल वंश

सत्ता आने के बाद चन्द्र देव ने कन्नौज पर गहड़वाल वंश की स्थापना किया। इसी युद्ध जीतने के उपलक्ष्य में चन्द्र देव ने अपने आप को महाराधिराज की उपाधि से सम्मानिक किया।

कन्नौज के अंतर्गत काशी भी आता था इसलिए यहाँ के शासकों को काशी नरेश भी कहा जाता है। दिल्ली के तोमर शासक ने भी गहड़वाल वंश की अधीनता को स्वीकार कर लिया। संभवतः चन्द्र देव एक शक्तिशाली शासक रहा था।

मदनपाल (1104 से 1114 ई०)

इसने अपनी राजधानी कन्नौज से स्थानांतरित कर वनारस ले आया। इसी बीच तुर्कों ने कन्नौज पर आक्रमण कर मदनपाल को पराजित कर दिया और उसे बंदी बना लिया जिसे बाद मदनपाल के पुत्र गोविन्द चन्द्र छुड़वाकर लाया।

गोविन्द चन्द्र (1114 से 1155 ई०)

इसने तुर्कों से कन्नौज को जीतकर पुनः अपने प्रतिष्ठा का स्तापित किया इसके अलावे मालवा तथा पाल शासक धर्मपाल को युद्ध में पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

गोविन्द्र चन्द्र को लेखों में विविध विद्याधर वाचस्पति कहा गया है। इनके एक मंत्री लक्ष्मीधर ने कृत कल्पतरु ग्रंथ की रचना किया।

विजय चन्द्र (1154 से 1170 ई०)

यह कमजोर शासक था अतः चौहानों इनसे दिल्ली को जीत लिया। विजय चन्द्र के दरवारी कवि श्री हर्ष ने इनके सम्मान में विजय प्रशस्ति काव्य की रचना किया।

जयचन्द (1170 से 1194 ई०)

इसने देवगिरी के यादव वंशी तथा गुजरात के सोलंकी वंश के राजाओं को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में राजसूर्य यज्ञ करवाया।

दिल्ली जोकि पहले गहड़वाल वंश का क्षेत्र हुआ करता था जिसे चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान छीन लिया था। जिसे वापस हासिल करने की क्षमता जयचन्द के पास नहीं थी।

उसी दिल्ली को वापस प्राप्त करने के उदेश्य से जयचन्द ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान के ऊपर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। साथ ही सैनिक सहायता देने का आश्वाशन भी दिया।

मोहम्मद गोरी ने 1191 ई० में पृथ्वीराज चौहान तृतीय से युद्ध किया, जिसे तराईन का प्रथम युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में भी पृथ्वीराज चौहान तृतीय जीत गया। लेकिन मुहम्मद गौरी को क्षमा कर उसे जीवित छोड़ दिया।

1192 ई० में मुहम्मद गौरी ने पुनः पृथ्वीराज चौहान तृतीय से युद्ध किया, इसे तराईन का द्वितीय युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान तृतीय की हार हो गया और उसे बंदी बना लिया।

इसके 2 साल बाद 1194 में गौरी ने जयचन्द से भी युद्ध किया जिसे चन्दावर का युद्ध कहा जाता है। इसी युद्ध में जयचन्द मारा गया। इसके बाद भारत में तुर्की राज्य की स्थापना हो जाता है।

इसके दरवारी कवि श्री हर्ष ने नैषधचरित और खण्डनखाद्य की रचना कर लिया। गहड़वाल वंश के वाद कन्नौज पर चन्देल शासकों का अधिकार हो गया।

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