अर्जुन लाल सेठी का जन्म 8 सितंबर 1880 को राजस्थान के जयपुर जिले के एक प्रतिष्ठित जैन परिवार में हुआ था| सेठजी के नाम से जाने जानेवाले अर्जुन लाल सेठी अपने विद्यार्थी में के प्रतिभा संपन्न विद्यार्थी रहे थे|
इनका प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ था थे किन्तु चाय के पश्चात भी इन्होंने सरकारी सेवा त्याग दी| नौकरी त्यागते हुए उन्होंने जयपुर के राजा माधव सिंह द्वितीय से कहा कि यदि अर्जुन लाल नौकरी करेगा तो फिर अंग्रेजों को इस देश से बाहर कौन निकलेगा|
कुछ समय के लिए भी जो मुंह के ठाकुर देवी सिंह की निजी सच्ची भी रहे हैंउन्हें कई भाषाओं का भी ज्ञान था हिंदी अंग्रेजी संस्कृत अरबी फारसी उर्दू पर उनका महत्वपूर्ण नियंत्रण था| अर्जुन लाल सेठी राजस्थान में राजनीतिक चेतना के सूत्रधार थे|
1905 में जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की1907 में अजमेर में जैन शिक्षा समिति की स्थापना की जो बाद में 1908 में जैन वर्तमान पाठशाला के नाम से जयपुर में स्थान्तरित की गई|
अर्जुन लाल सेठी का क्रांतिकारी जीवन
रासबिहारी बोस की प्रेरणा से उन्होंने राजस्थान में शास्त्र क्रांति के लिए संगठन का निर्माण किया | अर्जुन लाल सेठी ने जयपुर में वर्धमान विद्यालय, जैन शिक्षा समिति, जो क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करती थी की स्थापना की इसे क्रांतिकारी की पाठशाला कहा जाता था |
विष्णु दत्त, मोती चंद, माणक चंद, देवी लाल, प्रताप सिंह बारहट, ईश्वर सिंह आसिप इसी विद्यालय के प्रशिक्षक विद्यार्थी थे|
सेठ जी ने प्रताप सिंह इस वरदान एवं छोटेलाल को हथियार एवं प्रशिक्षनों एक हेतु दिल्ली भेजा| सेठ जी दिल्ली एवं राजपूताने के अधिकारियों के मध्य घड़ी का कार्य कर रहे थे |
क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन की प्राप्ति हेतु 20 मार्च 1913 को नीमेज के महन्त भगवान दास की हत्या कर दी| इस हत्याकांड के कारण सेठ जी को जीवन उसका करवा हुआउन्हें बैलून में रखा गया | उन्हें के शिष्य रामकरण ने सरकारी गवाह बनाना स्वीकार कर लिया|
यहां पर रात में यह हत्याकांड एक उलझन बना रहा परंतु 1914 में अमीरचंद के घर से बड़े छापे में पुलिस ने लिबर्टी पंपलेट (राज बिहारी बोस द्वारा प्रकाशित) के नाम से जो दस्तावेज प्राप्त किया | उनमें सेठ जी का नाम था इसी कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया |
सेठजी अंतिम दिनों में
1920 में जेल से रिहाई के बाद उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र अजमेर को चुना | वे गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया | वे हिंदू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे, उन्होंने शौकत उस्मानी एवं अशफ़ाकउल्ला खान जैसे क्रांतिकारियों को अपने यहाँ शरण दीया |
सेठजी के अंतिम दिन कठिनाइयों से गुजरे, वे अजमेर की दरगाह में बच्चों को अरबी फारसी पढ़ाकर अपना जीवन व्यतीत करते रहें | मुंशी प्रेमचंद
मृत्यु
23 दिसंबर 1941 को अजमेर में उनका निधन हो गया उन्हें मुस्लिम समझकर दफना दिया गया | उन्होंने श्रवण कुमार, महेंद्र कुमार, मदन पराजय, शूद्र मुक्ति एवं स्त्री मुक्ति जैसे नाटक एवं पुस्तकों की रचना की | अर्जुन लाल सेठी के बारे में कहा जाता है कि वे दधीची जैसा त्याग और दृढ़ता लेकर जन्म में थे और उसी दृढ़ता के साथ उन्होंने मृत्यु को गले लगाया |